देव उठनी एकादशी 2025: भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागेंगे, जानें विस्तार से
हिंदू धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी को देव उठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः हिंदू धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी को देव उठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं और पुन: सृष्टि संचालन का कार्य आरंम्भ करते है।
हिंदू धर्म में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं और सृष्टि संचालन का कार्य पुनः आरंभ करते हैं. इस दिन से ही विवाह और अन्य शुभ कार्यों का आरंभ होता है. आइए जानते हैं देव उठनी एकादशी की तिथि, महत्व और व्रत-पूजन के नियम.
देव उठनी एकादशी 2025 तिथि
तिथि प्रारंभ: 9 नवंबर 2025, रविवार, सुबह 06:12 बजे
तिथि समाप्त: 10 नवंबर 2025, सोमवार, सुबह 04:55 बजे
उपवास/व्रत दिनांक: 9 नवंबर 2025 (रविवार)
देव उठनी एकादशी का महत्व
इस दिन भगवान विष्णु शयन अवस्था से जागते हैं. चतुर्मास का समापन होता है और शुभ कार्यों की शुरुआत होती है. तुलसी विवाह और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन इसी दिन से आरंभ होता है. इस दिन व्रत रखने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसे हिंदू धर्म में सबसे पुण्यकारी एकादशी माना गया है.
पूजन विधि
सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें. भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं. तुलसी पत्र, पुष्प, फल, पंचामृत और गंगाजल से भगवान विष्णु का पूजन करें. देव उठनी कथा सुनें और आरती करें. रात्रि जागरण करना विशेष शुभ माना जाता है. देव उठनी एकादशी पर क्या करें? तुलसी माता की पूजा और तुलसी विवाह करें. भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता का भजन-कीर्तन करें.
दान-पुण्य करें, विशेषकर अन्न और वस्त्र दान. व्रत में फलाहार या निर्जला व्रत करें. देव उठनी एकादशी पर क्या न करें? इस दिन तामसिक भोजन (मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन) का सेवन वर्जित है. परनिंदा, क्रोध और झूठ बोलने से बचें. इस दिन शैय्या पर सोना अशुभ माना जाता है. किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत व्रत पूरा होने से पहले न करें.


