मोदी का ‘नोट लो वोट दो’ स्कीम! मोदी की मुहिम Expose, अब क्या होगा?

मोदी सरकार पर आरोप... योजनाओं के नाम पर वोटों की खरीद-फरोख्त! विपक्ष बोला.. ‘नोट लो वोट दो’ स्कीम से मोदी-नीतीश का असली चेहरा उजागर..  

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों बिहार में वोट खरीदने के लिए वोटरों को कैश बांटा जा रहा है.. बिहार में चुनाव होने वाला है.. क्या इसलिए नोट बंट रहा है की वोट खरीदा जा सके.. वहीं इससे लगता है कि बिहार में वोट चोरी के मुद्दे को ठंडा करने के लिए वोटरों के खातों में रुपए भेजा जा रहा है.. जिसे पता भी नहीं जिसने मांगा भी नहीं उसके खाते में भी बिहार सरकार द्वारा रुपए भेजे जा रहे है.. वहीं बिहार में जिस रफ्तार से रुपए बांटा जा रहा है.. जिससे लगता है कि चुनाव आते-आते सभी सात करोड़ वोटरों की जेब में सरकार का रुपया पहुंच जाएगा.. या हर वोटर के परिवार के खाते में रुपया पहुंच चुका होगा.. किसी को 1000 किसी को 1100 किसी को 1500 किसी को 10 हजार तो किसी को 15 हजार रूपये बांटे जा रहे हैं..

आपको बता दें किसी को पेंशन.. किसी को मानदेय किसी को अनुदान किसी को स्मार्टफोन के लिए रुपए बांटे जा रहे हैं.. जानकारी के मुताबिक जुलाई से लेकर सितंबर तक बिहार सरकार ने रुपए बांटने के लिए.. और वोटरों को खरीदने के लिए ऐसी ऐसी योजनाएं खोज निकाली है.. कि आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि पैसा देने के लिए नए-नए वर्ग समूह का पता लगाया जा रहा है.. या यूं कहें की लगाया जा चुका है.. कहीं वकील के नाम पर.. तो कहीं बाबू के नाम पर.. धड़ल्ले से रुपए बांटे जा रहे हैं.. ऐसा लगता है कि करीब 9 साल पहले.. मोदी चुनाव के समय वोट खरीदने के लिए ही जीएसटी लेकर आए थे.. मुझे तो ऐसा लगता है कि जीएसटी से कमाई करने के बाद.. मोदी अब चुनाव जीतने के लिए अपने सहयोगियों को बोरा भर भर कर रुपए दे रहे हैं.. और बिहार में हर वोटर के परिवार के किसी न किसी सदस्य के खाते में तेजी से रुपया पहुंच रहा है..

वहीं हम हमेशा से कहते आ रहे हैं.. या यूं कहे की बताते आ रहे हैं.. की समाज में हर कमजोर या गरीब तबके के लोगों को सरकार द्वारा आर्थिक मदद की जानी चाहिए.. लेकिन जिस तरह से बिहार में चुनाव के ठीक 3 महीने पहले.. जिस तरह से रुपए बांटे जा रहे हैं.. उसका मकसद जनकल्याण तो कतई नहीं लगता.. इसका सीधा मकसद चुनाव में वोट खरीदना है.. और राज्य के विकास का बजट वोट खरीदने के लिए उड़ाया जा रहा है.. रुपए को हवा में उछाला जा रहा है.. ताकि रुपए लूटने के चक्कर में जनता इधर से उधर भागती दौड़ती रहे.. और एक जगह खड़ी ना रह सके.. इसलिए साफ है की बिहार में वोट जनता के रुपए से खरीदा जा रहा है.. जनता का ही रुपया जनता को ही वोट खरीदने में इस्तेमाल किया जा रहा है..

आपको बता दे की 17 सितंबर को बिहार सरकार ने 16 लाख मजदूरों के खातों में 800 करोड़ रुपए भेज दिए.. और हर मजदूर को 5 हजार रूपये दिए गए.. जिससे वे अपनी वर्दी खरीद सकें.. अब आप ही बताइए की बिहार में कौन से मजदूर वर्दी पहनकर काम करने जाते हैं.. इसका कोई पता नहीं है.. लेकिन कपड़े खरीदने के नाम पर 16 लाख से ज्यादा मजदूरों को पांच- पांच हजार रूपये बांटे गए..

जिसका बीजेपी बिहार ने पोस्टर जारी किया है.. इतना ही नहीं नए वकीलों को भी बिहार सरकार द्वारा योजनाओं की सौगात दी गई है.. जिसके अंतर्गत नए वकीलों को पांच हजार रूपये प्रति महीने स्टाइपेंड दिया जाएगा.. आपको बता दें 1 जनवरी 2024 से नामांकन हुए.. नए वकीलों को 3 साल तक हर महीने पांच हजार दिया जाएगा.. वहीं अगर इस समय चुनाव का समय नहीं होता.. तो क्या बिहार सरकार वकीलों के खाते में 1 लाख 80 हजार रुपए भेजती.. क्या नए वकीलों का ध्यान चुनाव के समय ही आया है.. इससे पहले क्या नए वकीलों का ध्यान नहीं था..

आपको बता दें जुलाई की खबर है की टैक्स देने वाले व्यवसायी की अगर दुर्घटना में मौत हो जाती है.. तो उसके आश्रित को पांच लाख रूपये दिए जाएंगे.. जिससे सवाल खड़ा होता है की सभी करदाताओं को यह सहायता क्यों नहीं दी जा रही है.. क्या बाकी लोग टैक्स नहीं देते हैं.. आपको बता दें 21 सितंबर को महादलित विकास मिशन के लिए जो काम करते हैं.. जिनको बिहार विकास मित्र के नाम से जाना जाता है.. उनके खाते में एक बार में 25 हजार रुपये दिया जा रहा है.. जिससे वे टैबलेट खरीद सकें..

वहीं शिक्षा सेवक और तालीमी मरकज को स्मार्टफोन खरीदने के लिए 10 हजार रूपये दिए जा रहे हैं.. जिससे वे डिजिटल कार्य कर सकें.. वहीं विकास मित्र का ट्रांसपोर्ट भत्ता 1900 से बढ़कर 2500 कर दिया गया है.. और स्टेशनरी भत्ता 900 से बढ़कर 1500 कर दिया गया है.. जिससे उन्हें स्टेशनरी का सामान खरीदने में किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना रहे.. आपको बता दें की एक तरफ मोदी सरकार जीएसटी काम करने का डंका पीट रही है.. और जीएसटी कम करने को लेकर उत्सव मना रही है.. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण स्टेशनरी दुकानदारों से मिलकर.. स्टेशनरी के सामानों पर जीरो फीसदी जीएसटी करने को लेकर गुलदस्ता आदान-प्रदान कर रही हैं.. और जनता को गुमराह किया जा रहा है..

वहीं दूसरी तरफ बिहार में कर्मचारियों का स्टेशनरी भत्ता बढ़ाया जा रहा है.. बीजेपी के सभी नेता इस समय जीएसटी को लेकर पूरे जोर शोर से प्रचार कर रहे हैं.. योगी से लेकर मोदी तक पम्पलेट बांट रहे हैं.. जिसको सभी गोदी मीडिया और सभी प्रमुख अखबारों द्वारा बड़ी-बड़ी और मोटी- मोटी हैडलाइन चलाई जा रही है.. और जनता से जीएसटी उत्सव मनाने की बात कही जा रही है.. फिर बिहार में चुनाव से ठीक तीन महीने पहले स्टेशनरी भत्ता बढ़ाना कुछ हजम नहीं हो रहा है.. कि मोदी किस तरह से देश की जनता को मूर्ख बना रहे हैं.. और योजनाओं के नाम पर रुपए बांटकर सीधे वोट की खरीदारी कर रहे हैं..

सभी को पता है की बिहार में इस समय वोट खरीदने के लिए ही रुपए बांटे जा रहे हैं.. लेकिन लीगल तरीके से योजनाओं के नाम पर.. मोदी जी का इस तरह से जनता को गुमराह करना, वोट खरीदना, चंदा लेना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना.. सब कुछ.. लेकिन लीगल तरीके से.. या फिर योजनाओं के नाम से लोगों को रुपए पहुंचाना हो.. लेकिन मोदी का मिशन खास फलता फूलता दिखाई नहीं दे रहा है.. युवा मोदी के सामने उनका विरोध करने लगे हैं.. शाह की रैली में वोट कर के नारे लगने लगे हैं..

जिससे पूरी बीजेपी और गुजरात लॉबी पूरी तरह से डर गई है.. और अब चुनाव में हार दिखाई देने लगी है.. जिसके चलते अब वोट खरीदने के लिए योजनाओं के माध्यम से वोटरों के खातों में रुपया पहुंचा जा रहा है.. की जब तक चुनाव नहीं हो जाता है.. तब तक वोटरों के खातों में रुपए पहुंचाते रहो.. जिससे रुपए के लालच में आकर गरीब बेरोजगार वोटर अपना वोट बीजेपी.. और उसके सहयोगी पार्टियों को दें.. और चुनाव जीतने के बाद सभी योजनाओं को बंद कर दिया जाए.. और फिर 5 साल तक जनता को लूटा जाए.. उनका शोषण किया जाए.. रोजगार मांगने पर पढ़े-लिखी युवाओं पर लाठियां बरसाई जाए.. उनका प्रदर्शन करने से रोका जाए.. अपना हक मांगने पर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जाए.. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं देश की जनता कह रही है.. और आप खुद देख रहे हैं की बिहार में युवाओं पर किस तरह से लाठियां बरसाई जा रही हैं..

वहीं सभी को पता है की बीजेपी, सत्ता में आने के बाद अपने किए सारे वादे भूल जाती है.. और जनता फिर उन्हीं वादों की आस में पांच साल गुजार देती है.. और फिर चुनाव आ जाता है.. और फिर वोट खरीदने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं.. आप चाहे देख लो मोदी ने सत्ता में आने से पहले 15 लाख रुपए हर व्यक्ति के खाते में आएंगे का वादा किया हो.. या फिर दिल्ली चुनाव में तमाम तरह के प्रलोभन देना हो जग जाहिर है..

आपको बता दें कि मोदी दिल्ली की सत्ता में आने के लिए गला फाड़ फाड़कर मोदी की गारंटी देते थे.. लेकिन सत्ता में आते ही सभी गारंटी हवाहवाई हो गई.. और वहां की महिलाएं आज भी 25 सौ के आस में बैठी हैं.. दिल्ली की जनता सुशासन का रास्ता देख रही है.. लेकिन दिल्ली की जनता को कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है.. अब मोदी अपनी गारंटी पूरी नहीं कर पा रहे हैं.. और वहां की स्थिति दिन ब दिन बद से बदतर होती जा रही है..

आपको बता दें मोदी सत्ता में आने से पहले वादों को झड़ी लगा देते हैं.. लेकिन सत्ता में आते ही कुंडली मारकर बैठ जाते हैं.. और सारे वादे धरे के धरे रह जाते हैं.. और जनता अपने बदहाली के आंसू रोती रहती हैं.. सरकार बहरी बनकर अपने सत्ता के मद में चूर.. जनता को कीड़ा समझती है.. वहीं चुनाव आते ही उसी जनता की याद आती है.. और फिर वोट खरीदने के लिए तमाम योजनाएं लांच करती हैं.. और उनके माध्यम से जनता को रुपए देकर उनका वोट खरीदने का काम करती है.. लेकिन अब जनता जाग चुकी है.. और अब कोई भी चाल कामयाब होने वाला नहीं है..

वहीं अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि करोड़ों लोगों के खाते में रुपए भेजने के लिए.. बिहार के पास कहां से इतना सारा रुपया आ रहा है.. इसकी परवाह किसी को नहीं है.. और जनता को भी नहीं है.. वहीं जनता को ये भी होश नहीं है कि अब सरकार पांच साल तक आराम करेंगी.. और पांचवे साल रुपए बांटकर वोट खरीदेंगी.. और तमाम योजनाओं का शिलान्यास करेंगी..

आपको बता दें नीतीश कुमार दो हजार पांच से बिहार के मुख्यमंत्री हैं.. अगर इनके विकास से बिहार कर जन जीवन बदल चुका होता.. आर्थिक तरक्की हो गई होती.. रोजगार पैदा हुआ होता.. तब फिर कैसे बिहार में 94 लाख परिवार 6 हजार रुपए ही तक क्यों कमाते.. ये हमारा आंकड़ा नहीं है.. 2 अक्टूबर 2023 को बिहार में जाति जनगणना की रिपोर्ट में लिखा है कि.. बिहार में 94 लाख परिवार 6 हजार तक ही कमाता है.. जाहिर है इसमें ज्यादातर 6 हजार तक ही कमाते हैं.. पूरे 6 हजार भी नहीं.. इसमें कोई दो हजार कोई 3 हजार तो कोई 5 हजार ही कमाता होगा..

आपको बता दें कि बिहार सरकार 6 हजार तक ही कमाने वाले को गरीब मानती है.. वहीं 6 हजार से 10 हजार के बीच कमाने वाले.. बिहार में करीब 20 हजार परिवार ही हैं.. अगर आप इन दो वर्गों को जोड़ दें तो.. करीब 64 फीसदी आबादी एक दम गरीबी या गरीबी रेखा के ठीक ऊपर जी रही है.. बिहार में इतना विकास कर दिया है.. नीतीश कुमार ने की 64 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से होकर गुजर रही है.. बल्कि इस पर बहस होनी चाहिए कि बिहार में इतनी भयंकर गरीबी क्यों है.. कहीं ऐसा तो नहीं है कि बिहार में विकास दिखाने के नाम पर केवल बिल्डिंग का निर्माण हो रहा है..

 

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