निष्क्रिय बैंक खाते में जनता के फंसे हजारों करोड़, SC ने केंद्र से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने किया है.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः लगभग 3.5 लाख करोड़ रुपये के निष्क्रिय बैंक खाते, बीमा, लाभांश और पेंशन फंड जैसे पैसे फंसे हुए हैं. ये अपने मालिकों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. उनकी वापसी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. एक जनहित याचिका में मांग की गई है कि इन भूले-बिसरे पैसों को ट्रैक करने और मालिकों को लौटाने के लिए एक केंद्रीकृत वेबसाइट बनाई जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने 3.5 लाख करोड़ रुपये की अघोषित वित्तीय संपत्तियों-जिनमें निष्क्रिय बैंक खाते, अघोषित लाभांश, भविष्य निधि और बीमा राशि शामिल है. उसकी पहचान की है. साथ ही इसके समाधान और उन्हें उनके असली मालिकों को लौटाने के लिए बड़े स्तर पर कानूनी ढांचा तैयार करने की मांग है. कोर्ट ने उससे संबंधित याचिका पर नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता का तर्क है कि केंद्रीकृत व्यवस्था का अभाव अनुच्छेद 14, 19(1)(a), 21 और 300A का उल्लंघन करता है. इसकी वजह से नागरिकों विशेषकर गरीबों और बुजुर्गों को उनकी असली संपत्ति से वंचित किया जा रहा है.
सभी फाइनेंशियल असेट्स की लिस्ट के लिए एक केंद्रीकृत पोर्टल के गठन की मांग की गई है. इसी मांग की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस भेजा है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने किया है. सरकार से इसके लिए 4 हफ्ते में मांगा जवाब मांगा गया है.
याचिका में आरबीआई, आईआरडीएआई, राष्ट्रीय बचत संस्थान या पेंशन निधि नियामक एवं विकास प्राधिकरण द्वारा विनियमित संस्थाओं में रखी गई सभी वित्तीय परिसंपत्तियों की सूची तक पहुंचने के लिए एक केंद्रीकृत पोर्टल की मांग की है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा?
इस याचिका में बताया गया है कि बिखरे हुए खातों, नामांकन विवरणों की कमी और एकीकृत रजिस्टर के अभाव के कारण करोड़ों नागरिकों का पैसा पहुंच से बाहर है. जनवरी में याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था. कोर्ट ने इस मुद्दे की महत्वता को स्वीकारते हुए कहा कि इसमें न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है.
याचिकाकर्ता को संबंधित अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए. इसके बाद गोयल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि बैंकों, बीमा कंपनियों, म्यूचुअल फंड्स और पेंशन स्कीमों में नागरिकों का भारी पैसा पहुंच से बाहर है. वरिष्ठ वकील मुक्ता गुप्ता, जो गोयल की ओर से पेश हुईं ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट ने समस्या की गंभीरता को माना था, लेकिन इसे अधिकारियों पर छोड़ दिया कि वे नीति पर विचार करें. हालांकि, कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया और लाखों लोगों का पैसा अब भी फंसा हुआ है.



