ब्राह्मण या OBC… BJP अध्यक्ष पर मंथन खत्म! RSS की पसंद पर लगी मुहर

BJP के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर मंथन अब खत्म हो गया है... सूत्रों के मुताबिक अंतिम फैसला RSS की पसंद पर हुआ है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दिल्ली से लेकर नागपुर तक.. बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम को लेकर महीनों चली जातीय.. और संगठनात्मक रस्साकशी अब अपने अंतिम मोड़ पर पहुंच गई है.. राजनीतिक गलियारों में यह खबर आग की तरह फैल रही है कि.. आखिरकार संघ की पसंद ने पार्टी के भीतर चले ब्राह्मण बनाम ओबीसी युद्ध को समाप्त कर दिया है.. मोदी और शाह जो अक्सर पार्टी में अपने प्रभाव के लिए जाने जाते हैं.. इस बार संघ के फैसले के आगे हाथ जोड़ने को मजबूर दिखे..

आपको बता दें कि बीजेपी के सियासी महाभारत में ब्राह्मण बनाम ओबीसी की जंग ने आखिरकार थमने का संकेत दे दिया है.. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी पसंद पर मुहर लगा दी.. और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह भी इस फैसले को टाल नहीं पाए.. पार्टी अध्यक्ष पद पर लंबे मंथन के बाद संघ की इच्छा के आगे सत्ता के शीर्ष नेता झुक गए.. यह घटना भारतीय जनता पार्टी की आंतरिक गतिशीलता को उजागर करती है.. जहां वैचारिक मां- संघ का प्रभाव राजनीतिक निर्णयों पर भारी पड़ता है.. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह संघ का अंतिम फैसला है.. या फिर यह सिर्फ एक तात्कालिक समाधान है.. जो आने वाले चुनावों की आग में झुलस जाएगा..

आरएसएस और बीजेपी का रिश्ता मां-बेटे जैसा बताया जाता है.. लेकिन हकीकत में यह एक सियासी सौदेबाजी का खेल है.. आरएसएस 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित हुआ.. हमेशा से हिंदू राष्ट्रवाद की वैचारिक धुरी रहा है.. लेकिन बीजेपी के उदय के साथ यह संगठन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का शिकार हो गया.. 1980 में बीजेपी के गठन से लेकर आज तक.. अध्यक्ष पद पर आरएसएस की राय अंतिम सत्य मानी जाती है.. वर्तमान में जेपी नड्डा ब्राह्मण हैं.. उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है..

लोकसभा चुनाव 2024 के बाद से ही नया अध्यक्ष चुनने की चर्चा जोरों पर थी.. लेकिन जातिगत समीकरणों ने इसे उलझा दिया.. मोदी ओबीसी पृष्ठभूमि से हैं, नड्डा ब्राह्मण.. और अमित शाह भी ओबीसी से है.. ऐसे में दलित या महिला चेहरा चुनना था.. लेकिन आरएसएस ने ब्राह्मण उम्मीदवार पर जोर दिया.. यह फैसला लखनऊ से नागपुर तक के समीकरणों को साधने का प्रयास है.. जहां ब्राह्मण वोटों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के खेमे में रहा है..

ब्राह्मण बनाम ओबीसी की यह जंग नई नहीं है.. बीजेपी की स्थापना से ही जाति कार्ड खेला जाता रहा है.. 2014 में मोदी के ओबीसी कार्ड ने पार्टी को उत्तर भारत में मजबूत किया.. लेकिन ब्राह्मणों में असंतोष पनपने लगा.. आरएसएस मूल रूप से ब्राह्मण-प्रधान संगठन माना जाता है.. उसने हमेशा ब्राह्मण नेताओं को प्राथमिकता दी.. उदाहरण के तौर पर 2020 में नड्डा को अध्यक्ष बनाना आरएसएस की पसंद थी.. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में यूपी और महाराष्ट्र में हार ने साबित कर दिया कि ओबीसी-केंद्रित रणनीति पर्याप्त नहीं है..

आरएसएस ने अब ब्राह्मण चेहरा थोप दिया.. जो मोदी-शाह की पसंद के खिलाफ था.. सूत्रों के मुताबिक, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (ओबीसी) और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के नाम आगे थे.. लेकिन आरएसएस ने इन्हें खारिज कर दिया.. यह संघ का संदेश था.. हम सलाह देते हैं, लेकिन फैसला हमारा नहीं.. लेकिन हकीकत में संघ का असहमत होना ही फैसला टालने का कारण था..

मोदी-शाह की जोड़ी 2014 से बीजेपी पर काबिज है.. अब संघ के आगे लाचार नजर आ रही है.. 2019 के बाद मोदी-शाह का वर्चस्व बढ़ा.. लेकिन 2024 की हार ने संतुलन बिगाड़ दिया.. आरएसएस ने साफ कर दिया कि बीजेपी को संगठनात्मक मजबूती चाहिए.. न कि मोदी-शाह की कठपुतली.. मोहन भागवत ने कहा कि हम मतभेद रख सकते हैं.. लेकिन मनभेद नहीं है… लेकिन यह बयान सिर्फ दिखावा था.. संघ ने ब्राह्मण चेहरे पर मुहर लगाई.. जो यूपी, बिहार जैसे राज्यों में ब्राह्मण वोटों को मजबूत करेगा.. यह बिल्कुल मोदी की हार है.. शाह खुद ओबीसी हैं.. उन्होंने दलित या ओबीसी चेहरा चाहा.. लेकिन संघ ने ब्राह्मण को चुना.. यह जंग सत्ता के शीर्ष पर आरएसएस की वापसी का संकेत है..

आपको बता दें कि आरएसएस की पसंद ब्राह्मण नेता है.. जेपी नड्डा का नाम फिर से चर्चा में है.. लेकिन दूसरा कार्यकाल संभव नहीं.. देवेंद्र फडणवीस या दिनेश शर्मा जैसे नाम उभर रहे हैं.. फडणवीस, महाराष्ट्र के सीएम, ब्राह्मण हैं.. और संगठन में मजबूत पकड़ रखते हैं..  शर्मा, यूपी से ब्राह्मण चेहरा हैं.. आरएसएस चाहता है कि अध्यक्ष ऐसा हो जो मोदी के बाद पार्टी को संभाल सके.. लेकिन ओबीसी लॉबी चुप नहीं बैठेगी.. शिवराज सिंह चौहान या धर्मेंद्र प्रधान जैसे नाम अभी भी लटके हैं.. यह चयन तीन समीकरण साधेगा.. उत्तर भारत में ब्राह्मण, दक्षिण में संतुलन.. और दलित-ओबीसी को संदेश कि आरक्षण सुरक्षित है.. लेकिन क्या यह फैसला 2025 के बिहार चुनावों को प्रभावित करेगा..

आरएसएस का इतिहास ब्राह्मण-केंद्रित रहा है.. संस्थापक हेडगेवार ब्राह्मण थे.. और शुरुआती प्रचारक महाराष्ट्रीय ब्राह्मण.. लेकिन मंडल कमीशन के बाद ओबीसी को महत्व मिला.. मोदी का उदय इसी का नतीजा था.. फिर भी आरएसएस ब्राह्मणवाद से मुक्त नहीं.. 2015 में भागवत का आरक्षण पर बयान ने ओबीसी-दलितों को भड़काया.. अब 2025 में संघ ब्राह्मण चेहरा थोपकर पुरानी गलती दोहरा रहा है.. बीजेपी में ब्राह्मण साइडलाइन हो रहे हैं.. जैसा 2019 में हुआ.. और प्रियंका गांधी की एंट्री ने ब्राह्मण वोट कांग्रेस की ओर मोड़े.. आरएसएस की यह पसंद उल्टी पड़ सकती है..

2024 की हार ने आरएसएस को मजबूत किया.. यूपी में 33 सीटें, महाराष्ट्र में झटका.. ये सब संघ की निष्क्रियता का नतीजा बताया गया.. अब संघ संगठन पर कब्जा जमाना चाहता है.. जिसको लेकर भागवत का बयान कि हम निर्णय नहीं लेते.. झूठा प्रचार है.. संघ ने मोदी-शाह को चेतावनी दी… हमारी सलाह मानो, वरना हारो.. यह जंग बीजेपी को कमजोर करेगी.. ओबीसी लॉबी बगावत कर सकती है.. दलित असंतुष्ट रहेंगे..

वहीं इस फैसले के राजनीतिक संकेत गहरे हैं.. बिहार 2025 में नीतीश-चुनावी गठबंधन के खिलाफ ब्राह्मण चेहरा मदद करेगा.. लेकिन ओबीसी वोट खिसक सकते हैं.. यूपी में योगी (ठाकुर) के साथ ब्राह्मण अध्यक्ष संतुलन लाएगा.. लेकिन आरएसएस की ब्राह्मण-प्राथमिकता दलित-ओबीसी को अलग करेगी.. विपक्ष इसका फायदा उठाएगा..

 

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