संघ की लाठी जेन Z के आगे टुकड़े-टुकड़े! RSS को भी डराने लगी नई सोच!

नई पीढ़ी यानी जेन Z अब सवाल पूछ रही है... परंपरा, विचार और सियासत पर.. लाठी भांजने वाला आरएसएस अब उन्हीं सवालों से घिर गया है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों रोज सुबह-सवेरे लाठी भांजने.. और शस्त्र पूजा के नाम पर जंग खाये भाले-तलवारों को पूजने वाले आरएसएस को भी.. क्या जेन ज़ी के आक्रोश से डर लगने लगा है.. आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक प्रमुख मोहन भागवत के दशहरा भाषण से तो यही साफ पता चलता है.. उन्होंने अपने सालाना भाषण में नेपाल के हालिया ज़ेन जी आंदोलन को अराजक बता कर उसकी निंदा की.. लेकिन बीजेपी के लिए  अफसोस कि बात ये है कि अपने कुतर्क को सही ठहराने के लिए उन्होंने संविधान निर्माता.. और वंचितों के अधिकारों के पैरोकार डॉ. भीमराव आंबेडकर की कथन का सहारा लिया..

दरअसल, लद्दाख के जेन जी भी केन्द्रशासित लेह लद्दाख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.. और गृहमंत्री अमित शाह से रोजगार ही मांग रहे थे.. कभी छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के ‘मावा नाटे-मावा राज’ की तर्ज़ पर लेह लद्दाख की जेन ज़ी.. अपनी आदिवासी बहुल धरती को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की ही मांग शांतिपूर्ण प्रदर्शन के ज़रिए कर रहे थे.. क्या भागवत इस बुनियादी तथ्य से भी अनजान हैं कि लद्दाखी युवाओं का आंदोलन लोक आविष्कारक सोनम वांगचुक के सत्याग्रही नेतृत्व में पूरी तरह से अहिंसक रूप में चल रहा था.. जेन ज़ी आंदोलन को अराजक बताते हुए.. क्या भागवत ये भी भूल गए कि लद्दाखी जेन ज़ी के अहिंसक प्रदर्शन पर आंसू गैस के गोले.. उन्हीं की शाखा की राजनीतिक पैदाइश गृह मंत्री अमित शाह के अर्धसैनिक बलों ने दागे.. क्या भागवत ये भी नहीं जानते कि निहत्थी लद्दाखी जेन जी के चार सदस्य शाह के बलों की खोपड़ी में मारी गई गोली से ही मरे हैं..

आपको बता दें कि भागवत क्या इस तथ्य से भी अनजान हैं कि लेह लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा.. साल 2019 में लेह लद्दाख सहित तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य में धारा 370 निरस्त करने की घोषणा के अंतर्गत ही मोदी सरकार ने किया था.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह तब से न जाने कितनी बार ख़ुद लेह लद्दाख की युवाओं से वोट लेने के लिए.. उन्हें छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा कर चुके है..

क्या भागवत इतना भी नहीं जानते.. यदि इन तमाम तथ्यों की जानकारी के बावजूद भागवत जेन ज़ी के आंदोलन को अराजक बता रहे हैं.. तो इसके पीछे या तो राजनीति है या फिर युवाओं की सोच बदल जाने की घबराहट है.. ज़ाहिर है कि राजनीति तो भागवत कम से कम अपने वार्षिक भाषण में करेंगे नहीं.. क्योंकि वो तो आरएसएस नामक कथित सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन के मुखिया हैं.. जो राजनीति में लिप्त होकर भी उससे कथित रूप से दूर रह कर समाज निर्माण करता है.. तो फिर भागवत जेन जी के आंदोलन से इतने विचलित क्यों हो गए.. कि डॉ. आंबेडकर के हवाले से आंदोलनकारियों को अराजकता का पोषक बताने में भी उन्हें संकोच नहीं हुआ.. भागवत को कहीं नेपाल और लेह लद्दाख के जेन जी आंदोलनों से ये डर तो नहीं लगने लगा.. कि भाजपा सहित उनके तमाम अनावस्यक रूप से साथ देने वाले संगठनों द्वारा.. साम्प्रदायिक बंटवारे में उलझाए जा चुके गोबर पट्टी के युवा कहीं रोज़गार, शिक्षा.. और स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग के लिए सड़क पर न उतर आएं..

जाहिर है कि भारत जैसे बदलाव वाले युवा बहुल देश में राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन की संभावना हमेशा ही प्रबल रहती है.. इसलिए भागवत की चिंता स्वाभाविक है.. वे यह जानते हैं कि युवाओं को हमेशा ‘आई लव मोहम्मद’ और ‘राम आयेंगे’, ‘काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि लेकर रहेंगे.. जैसे सामाजिक बंटवारे वाले नारों में उलझा कर नहीं रखा जा सकता है.. आखिर कभी तो रोजगार, महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर सड़कों पर उतरेंगे.. भागवत को शायद यही डर अंदर ही अंदर से खाए जा रहा है कि कहीं लेह लद्दाख और नेपाल के जेन जी आंदोलन कहीं देश व्यापी न हो जाएं.. क्योंकि जनता द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों.. और शाह की अलोकतांत्रिक कार्यशैली के खिलाफ अपना आक्रोश 2024 में भाजपा को बहुमत से वंचित करके जताया जा चुका है..

 

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