ट्रंप के आगे फिर झुके मोदी, तेल आयात रोकने के आदेश, महंगा होगा पेट्रोल! 

रूसी तेल पर कड़े अमेरिकी प्रतिबंध और उसके सामने भारत के सरेंडर की पुष्टि हो गई है... रिलायंस और इंडियन ऑयल जैसी भारतीय दिग्गज कंपनियों...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः अमेरिका ने रूस पर नए और कड़े प्रतिबंध लगाकर वैश्विक ऊर्जा बाजार में हलचल मचा दी है.. रूसी तेल पर कड़े अमेरिकी प्रतिबंध.. और उसके सामने भारत के सरेंडर की पुष्टि हो गई है.. पूरी गुजरात लॉबी ट्रंप के आगे नतमस्तक है.. मोदी का दावा काम नहीं कर रहा है.. दोस्त मोदी को लगातार कमजोर कर रहा है.. रोज नए- नए नियम बना रहे है.. और मोदी ट्रंप के सभी नियमों का पालन कर रहे है.. आखिर गुजरात लॉबी को ट्रंप का कौन सा डर सता रहा है.. यह अभी सामने आना बाकी है.. वहीं बिहार चुनाव का रिजल्ट आते ही.. मोदी का ट्रंप से डरने का कारण भी सामने आ जाएगा…

अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने 22 अक्टूबर को रूसी तेल दिग्गजों रोसनेफ्ट.. और लुकोइल पर सख्त वित्तीय प्रतिबंध घोषित किए.. जिससे भारत की प्रमुख तेल कंपनियों को बड़ा झटका लगा है.. इन प्रतिबंधों के तहत कंपनियों को 21 नवंबर तक रूसी कंपनियों के साथ सभी लेन-देन बंद करने का आदेश दिया गया है.. उसके बाद अगर कोई कंपनी रूसी तेल खरीदती रही.. तो उसे अमेरिकी बैंकों से वित्तीय मदद मिलना बंद हो जाएगा.. यह कदम रूस-यूक्रेन युद्ध को और तेज करने का प्रयास लगता है.. लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर भारत जैसे उभरते बाजारों पर पड़ रहा है..

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है.. और रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद ने पिछले तीन सालों में देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी थी.. लेकिन अब ये प्रतिबंध भारत की निजी क्षेत्र की रिलायंस इंडस्ट्रीज.. और सार्वजनिक क्षेत्र की इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड जैसी कंपनियों को रूसी तेल की खरीद कम करने या पूरी तरह बंद करने पर मजबूर कर देंगे.. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारत को वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ेगी.. जो महंगे साबित होंगे.. लंदन की एनर्जी आस्पेक्ट्स कंसल्टेंसी के अनुसार रिलायंस को रूसी तेल से पिछले तीन सालों में करीब 6 अरब डॉलर का फायदा हुआ था.. अब यह स्रोत बंद होने से कंपनियों की कमाई पर असर पड़ेगा..

आपको बता दें कि ये प्रतिबंध अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन की सख्त रूस नीति का हिस्सा हैं.. ट्रंप ने रूस को ‘युद्ध अर्थव्यवस्था’ का केंद्र बताते हुए कहा है कि ये सैंक्शंस मॉस्को को तुरंत युद्धविराम के लिए मजबूर करेंगे.. लेकिन रूस ने इनकी निंदा की है.. और कहा है कि ये उसके तेल निर्यात को नहीं रोक पाएंगे.. वैश्विक तेल कीमतें इन प्रतिबंधों के बाद पिछले दो दिनों में 5 प्रतिशत चढ़कर 66 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं.. अगर यह सिलसिला जारी रहा.. तो कीमतें 90-100 डॉलर तक जा सकती हैं.. जो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को ठप कर सकती हैं..

रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत 2022 में हुई थी.. जब रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला.. उस समय पश्चिमी देशों ने रूस पर भारी प्रतिबंध लगाए.. जिससे रूसी तेल की कीमतें गिर गईं.. भारत ने इस मौके का फायदा उठाया.. और सस्ते रूसी तेल की खरीद शुरू कर दी.. युद्ध से पहले, भारत अपनी तेल जरूरतों का सिर्फ 2-3 प्रतिशत रूस से आयात करता था.. वजह थी परिवहन लागत अधिक होना.. लेकिन युद्ध के बाद यह आंकड़ा तेजी से बढ़ा.. सितंबर 2025 तक रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका था.. जो कुल आयात का 33.3 प्रतिशत हिस्सा रखता था.. कुछ महीनों में यह 35-40 प्रतिशत तक पहुंच गया..

वहीं इस बदलाव के पीछे कई कारण थे.. पहला, रूसी तेल पर डिस्काउंट मिल रहा था.. ब्रेंट क्रूड से 10-15 डॉलर सस्ता.. दूसरा, भारत की रिफाइनरियां जैसे जामनगर (रिलायंस की) रूसी ग्रेड के तेल को आसानी से प्रोसेस कर सकती हैं.. तीसरा, वैश्विक तेल बाजार में कमी न हो.. इसके लिए अमेरिका ने भारत को छूट दी थी.. पूर्व अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बाइडेन प्रशासन ने जानबूझकर भारत को रूसी तेल खरीदने की अनुमति दी.. ताकि कीमतें न बढ़ें.. लेकिन ट्रंप प्रशासन ने यह नीति पलट दी.. अगस्त 2025 में ट्रंप ने रूसी तेल खरीद के लिए भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी थी..

रिलायंस जैसी कंपनियों ने इस डिस्काउंट का पूरा फायदा उठाया.. कंपनी का रोसनेफ्ट के साथ 10 साल का अनुबंध है.. जिसमें रोजाना 5 लाख बैरल तेल खरीदने का प्रावधान है.. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां जैसे आईओसीएल और बीपीसीएल मुख्य रूप से स्पॉट मार्केट से खरीदती रहीं.. सितंबर 2025 में रूस ने भारत को 1.75 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल सप्लाई किया.. लेकिन अब ये प्रतिबंध इस सिलसिले को तोड़ देंगे.. रिलायंस के प्रवक्ता ने द टेलीग्राफ को बताया कि हम अमेरिकी निर्देशों का पालन करेंगे.. और 21 नवंबर तक लेन-देन समाप्त करेंगे.. फाइनेंशियल टाइम्स को दिए बयान में कंपनी ने कहा कि रूसी आयात का पुनर्मूल्यांकन चल रहा है.. और भारत सरकार के दिशानिर्देशों का सम्मान किया जाएगा..

ये आंकड़े दिखाते हैं कि भारत की तेल रणनीति कितनी तेजी से बदली.. युद्ध से पहले रूस का हिस्सा कम था.. लेकिन अब यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा का अहम हिस्सा बन गया.. अगर रूसी तेल बंद हुआ.. तो भारत को मध्य पूर्व के देशों पर निर्भरता बढ़ानी पड़ेगी.. जहां प्रतिस्पर्धा पहले से ही तेज है.. यूरोपीय संघ ने भी युद्ध के बाद मध्य पूर्व की ओर रुख किया है..

वहीं इन प्रतिबंधों का सबसे सीधा असर भारत की तेल कंपनियों पर पड़ेगा.. रोसनेफ्ट पर सैंक्शंस लगने से रिलायंस का 10 साल पुराना अनुबंध खतरे में है.. कंपनी को अब वैकल्पिक स्रोत ढूंढने पड़ेंगे.. जो डिस्काउंट पर नहीं मिलेंगे.. एनर्जी आस्पेक्ट्स के मुताबिक, रिलायंस को रूसी तेल से 6 अरब डॉलर का लाभ हुआ.. लेकिन अब यह बंद होने से मार्जिन कम हो सकता है.. रिलायंस के शेयरों में गिरावट देखी गई.. हालांकि कंपनी ने इसे संभालने का भरोसा जताया..

नायरा एनर्जी भी प्रभावित होगी.. जो रोसनेफ्ट की हिस्सेदार है.. यह कंपनी रूसी तेल पर निर्भर है.. और सैंक्शंस से उसके आयात पर रोक लग सकती है.. सार्वजनिक क्षेत्र की आईओसीएल, बीपीसीएल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम स्पॉट मार्केट से खरीदती हैं.. लेकिन वे भी ट्रेडर्स के जरिए रूसी तेल लेती रहीं.. हर 1 डॉलर प्रति बैरल कीमत बढ़ने से आईओसीएल का ईबीटीडीए 10 प्रतिशत, बीपीसीएल का 9 प्रतिशत और एचपीसीएल का 7 प्रतिशत कम हो सकता है..

वहीं ये कंपनियां मिलकर भारत की 80 प्रतिशत रिफाइनिंग क्षमता संभालती हैं.. प्रतिबंधों से तेल की लागत बढ़ेगी.. जो पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर असर डालेगी.. उपभोक्ताओं को महंगे ईंधन का सामना करना पड़ सकता है.. लेकिन कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि यह भारत के लिए लंबे समय में फायदेमंद हो सकता है.. क्योंकि रिस्की स्रोतों से दूर रहना स्थिरता लाएगा.. रॉयटर्स के अनुसार भारतीय रिफाइनरियां रूसी तेल को 50 प्रतिशत तक कम कर चुकी हैं.. लेकिन पूर्ण बंदी मुश्किल है..

कंपनियों को अब नए अनुबंध बनाने होंगे.. रिलायंस ने कहा है कि वह सरकार के साथ मिलकर रणनीति बनाएगी.. आईओसीएल और बीपीसीएल ने ट्रेडर्स के जरिए खरीद जारी रखने का संकेत दिया.. लेकिन अमेरिकी बैंकों से दूरी का डर है.. कुल मिलाकर, ये प्रतिबंध भारतीय तेल क्षेत्र की कमाई को 5-7 प्रतिशत तक प्रभावित कर सकते हैं..

बता दें कि प्रतिबंधों की घोषणा के तुरंत बाद वैश्विक तेल बाजार हिल गया.. ब्रेंट क्रूड 5.4 प्रतिशत चढ़कर 65.99 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ.. जबकि डब्ल्यूटीआई 5.6 प्रतिशत बढ़ा.. पिछले दो दिनों में 3 डॉलर की तेजी आई.. ट्रेडर्स को डर है कि रूसी तेल की सप्लाई कम होने से वैश्विक कमी हो जाएगी.. रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है.. और उसके निर्यात में भारत-चीन का बड़ा हिस्सा है..

विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर सैंक्शंस सख्त हुए, तो कीमतें 90 डॉलर तक जा सकती हैं.. लेकिन हाल ही में कीमतें 90 से गिरकर 60 डॉलर पर आ चुकी थी.. जिससे अमेरिकी उत्पादकों को नुकसान हो रहा था.. अमेरिकी तेल कंपनियां 62 डॉलर से नीचे कीमतों का विरोध कर रही हैं.. क्योंकि उनकी उत्पादन लागत अधिक है.. ट्रंप प्रशासन के लिए यह दुविधा है.. रूस को दबाना है, लेकिन घरेलू उद्योग को बचाना भी है..

मध्य पूर्व के बेंचमार्क तेल की कीमतें भी चढ़ीं.. क्योंकि भारत जैसे देश अब इराक-सऊदी की ओर देखेंगे.. लेकिन ईयू की मांग बढ़ने से मुकाबला तेज हो गया.. कुल मिलाकर, ये प्रतिबंध ऊर्जा बाजार को अस्थिर बना देंगे.. जो महंगाई बढ़ा सकता है.. ईयू और ब्रिटेन भी रूस के खिलाफ कार्रवाई तेज कर रहे हैं.. ईयू ने 19वें सैंक्शंस पैकेज में रूसी एलएनजी पर बैन लगाया.. 2025 की पहली छमाही में 5.22 अरब डॉलर के एलएनजी आयात पर रोक लगेगी.. शॉर्ट-टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स 6 महीने बाद और लॉन्ग-टर्म 2027 से बंद होंगे.. ईयू ने 200 से ज्यादा शैडो फ्लीट जहाजों पर प्रतिबंध लगाए.. कुल 558 जहाज अब यूरोपीय बंदरगाहों और बैंकों से वंचित हैं..

ईयू आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि पहली बार हम रूस के गैस क्षेत्र को निशाना बना रहे हैं.. जो उसके युद्ध का केंद्र है.. हम यूक्रेन को शांति मिलने तक नहीं रुकेंगे.. ब्रिटेन ने भी रोसनेफ्ट, लुकोइल और 44 टैंकरों पर सैंक्शंस लगाए.. ये कदम रूसी ऊर्जा निर्यात को 20 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं.. भारत के लिए रूसी तेल की कमी का मतलब मध्य पूर्व पर अधिक निर्भरता है.. इराक दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है.. सऊदी तीसरा.. कुवैत और यूएई भी विकल्प हैं.. लेकिन ईयू की मांग से कीमतें बढ़ेंगी.. ट्रंप ने दावा किया कि मोदी ने रूसी तेल कम करने का वादा किया.. लेकिन भारत ने इसे अस्वीकार किया..

 

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