एनडीए के वादों की बारिश में तेजस्वी प्रण बना छतरी

  • संकल्प बनाम प्रण-दो घोषणापत्र, दो सोचें, दो बिहार
  • एनडीए के चुनावी मैनिफेस्टो में वादों का अंबार
  • वादों की पिच पर इस बार बिहार में चल रहा है तेजस्वी बल्ला

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पटना। आज बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जारी किया गया एनडीए का संकल्प पत्र किसी इंजीनियरिंग ब्लूप्रिंट जैसा दिखता है। मेट्रो, एक्सप्रेस-वे, मेगा स्किल सेंटर, महिला सशक्तिकरण, लाखपति दीदी, एक करोड़ नौकरियों का वादा बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में किया है। यह वायदा बड़ा सपना है पर जमीन पर खड़ा करने की मशीनरी धुंधली दिखाई देती है। वहीं तेजस्वी का ‘प्रण’ ज्यादा भावनात्मक और सामाजिक दिखाई दे रह है। हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का कानून, पुरानी पेंशन योजना की बहाली, माइग्रेंट श्रमिकों और युवाओं के लिए सुरक्षित भविष्य का वादा किसी साफ्टवेयर प्रेजेंटेशन की तरह नहीं बल्कि बिहार की गली मुहल्लों में लिखी गई तकलीफों की डायरी जैसा लगता है। एनडीए ने अपने संकल्प पत्र में वायदों का ऐसा अंबार लगा दिया है कि गिनते गिनते पसीना आ जाए। मगर जनता के बीच चर्चा तेजस्वी यादव के ‘प्रण’ की चल रही है। जिस तेजस्वी को कभी अनुभवहीन कहकर नकारा गया था वही अब विपक्षी मैदान में अपने होमवर्क और युवा रणनीति से एनडीए के अनुभवी मंत्रियों पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। डिजिटल प्रचार हो, सीट-शेयरिंग की सटीक गिनती हो या टिकट वितरण की सूक्ष्म गणना तेजस्वी ने एक एक कदम फूंक फूंक कर रखा है।

तेजस्वी प्रण

1. हर परिवार को एक सरकारी नौकरी — कानूनी गारंटी के साथ
2. 50 प्रतिशत आरक्षण, सुरक्षा, कार्यस्थल पर समानता
3. एमएसपी कानून, कृषि ऋ ण माफी, ग्रामीण उद्योग नीति
4. 20 महीने में बेरोजगारी घटाने का रोडमैप
5. पुरानी पेंशन योजना बहाल, माइग्रेंट वर्कर्स के लिए रजिस्टर
संकल्प पत्र
1. एक करोड़ नौकरियां — बिना समयसीमा, बिना विधायी आश्वासन
2. लखपति दीदी योजना और स्वरोजगार बढ़ावा
3. ड्रोन, टेक्नोलॉजी और सिंचाई मिशन की घोषणाएं
4. डिजिटल समाज कल्याण योजनाओं को शुरू करने की बात
5. राज्य में पांच औद्योगिक कॉरिडोर बनाए जाने का वायदा। गया, बक्सर, समस्तीपुर, हाजीपुर और भागलपुर होंगे मुख्य केंद्र

जनता बोली- पुल नहीं पगार चाहिए

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान ग्रामीण इलाकों में एनडीए के प्रति थकान दिख रही है। 17 साल की सत्ता, बार-बार के वायदे, अधूरी योजनाएं सरकार पर भारी पड़ रही है। जनता अब वादे नहीं रिपोर्ट कार्ड मांग रही है। जबकि युवा वोटर्स पहली बार रोजगार को लेकर सवाल खड़ा कर रहे हैं। अगर ग्राउंड रिपोर्ट की माने तो यह तय है कि पलायन मुद्दा इस बार काफी तीव्रता से काम कर रहा है। पटना, गया, भागलपुर, सीवान, और दरभंगा में युवाओं का बयान लगभग एक जैसा है। सभी बस एक ही बात कर रहे हैं कि हमें पुल, सड़कें नहीं, पगार चाहिए।

मोदी-नीतीश ज्यादा, बिहार कम

एनडीए के कई वरिष्ठ नेता जनता के मुद्दों से कटे हुए नजर आ रहे हैं। उनके भाषणों में मोदी-नीतीश ज्यादा हैं और बिहार कम सुनाई पड़ रहा है। जेडीयू और बीजेपी में सीटों को लेकर थोड़ा असंतुलन है। छोटे दल, जैसे हम और रालोसपा, अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस बार बिहार में मुद्दा कौन प्रधानमंत्री के करीब है नहीं, बल्कि कौन जनता के करीब है बनता दिख रहा है। तेजस्वी ने तेजस्वी प्रण को सिर्फ एक दस्तावेज नहीं बल्कि राजनीतिक करार की तरह पेश किया है। उनका यह डायलाग कि अगर हम सरकार बनाएंगे तो नौकरी हक बनेगी, उपहार नहीं काफी चर्चा बटोर रहा है वहीं दूसरी तरफ एनडीए के एक करोड़ नौकरियों वाले वादे को लोग जुमला रीमिक्स कह रहे हैं क्योंकि 2015, 2020 और अब 2025 तीनों चुनाव में इसी वादे का संस्करण दोहराया गया है।

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