मोदी को सताने लगा हार का डर? विपक्ष पर हमला करते करते ये क्या बोल गए?

पहले चरण की वोटिंग से पहले जो मोदी मंच से कट्टा, छर्रा और दुनाली कर रहे थे वो बात अब सीधा छाती पर गोली मारने तक आ गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों प्रधानमंत्री इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं?

4पीएम न्यूज नेटवर्क: जैसे-जैसे बिहार का चुनाव आगे बढ़ता जा रहा है प्रधानमंत्री मोदी की भाषा का स्तर उतना ही गिरता जा रहा है। पहले चरण की वोटिंग से पहले जो मोदी मंच से कट्टा, छर्रा और दुनाली कर रहे थे वो बात अब सीधा छाती पर गोली मारने तक आ गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों प्रधानमंत्री इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं? क्या वो पहले चरण की वोटिंग देखकर बेहद डर गए हैं या फिर रैली में खाली कुर्सियां देखकर बौखला रहे हैं? आखिर क्यों एक देश के प्रधानमंत्री को निम्न स्तर की भाषा बोलनी पड़ रही है, सब बताएंगे आपको इस वीडियो में।

जब से बिहार चुनाव में पहले चरण की वोटिंग हुई है तब से भाजपा नेताओं का मानसिक संतुलन हिला हुआ लग रहा है। क्योंकि किसी को उम्मीद नहीं थी कि बिहार की जनता इस बार रिकॉर्ड तोड़ 64% से ज्यादा वोट डालने वाली है। आमतौर से जब इतनी भारी संख्या में वोटिंग होती है तो ये माना जाता है कि जनता बदलाव चाहती है। यही कारण है कि एनडीए,जिसको लग रहा था कि वो आसानी से चुनाव जीतने वाली है, उसको अब घबराहट हो रही है। और यही घबराहट प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में भी साफ झलक रही है।

तभी आप सोचिए पहले चरण से पहले जहां मोदी मंच से कट्टा, छर्रा, दुनाली की बात कर रहे थे वो अब सीधा छाती पर गोली मारने की बात करने लगे हैं । जी हां पहले चरण की वोटिंग के बाद जब चुनाव प्रचार करने मोदी मंच पर पहुंचे तो वो अपने विकास का कार्यों को गिनाने के बजाय विपक्ष पर हमला बोलने लगे। हमला बोलते-बोलते मोदी विपक्ष के गानों की बात करने लगे।

अब आपने अभी मोदी जी का पूरा भाषण सुना। अब पूरी कहानी का ट्विस्ट देखिए। अपने भाषण में मोदी जिस ‘मारब सिक्सर के 6 गोली छाती में’ भोजपुरी गाने का जिक्र कर रहे हैं वो गाना दरअसल भोजपुरी स्टार पवन सिंह का गाना है। जी हां वही पवन सिंह जो इन दिनों बिहार में भाजपा के स्टार प्रचारक बने घूम रहे हैं। अब ऐसे में ये समझना मुश्किल हो रहा है कि मंच से मोदी जी अपने स्टार प्रचारक का गाना प्रमोट कर रहे थे या विपक्ष पर हमला। अब जो भी हो लेकिन एक देश के प्रधानमंत्री के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर सबको हैरानी हो रही है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि मोदी के भाषणों इस तरह की बौखलाहट दिखाई दे रही है?

तो आपको हम इसके पीछे की वजह भी समझाते हैं। आप इस तस्वीर को देखिए और इस तस्वीर में खाली पड़ी कुर्सियों को भी दखिए। बिहार के सीएम नीतीश कुमार की रैली में ये खाली पड़ी लाल कुर्सियां एनडीए के लिए खतरे की घंटी बजा रही हैं। रैली में छाई शांति चीखचीख नारे लगा रही हैं- “अबकी बार नो मोर नीतीश सरकार।” आपको बता दें कि ये वीडियो रैली के खत्म होने का या शुरू होने से पहले का नहीं है, बल्कि ये वीडियो उस वक्त का है जब बिहार के सीएम नीतीश कुमार का मंच पर स्वागत किया जा रहा था।

अब सोचिए जब बिहार के सीएम की रैली का ये हाल है तो बाकि प्रत्याशियों का तो क्या ही हाल होगा। अब देखिए, ‘मोदी की रैलियों में जनसैलाब उमड़ पड़ा’, टीवी पर ये दिखाने के लिए तो दूसरे राज्यों से ट्रेनें भर भर भाजपा कार्यकर्ताओं को लाया जा रहा है, उन्हें मोदी-मोदी करने के लिए पांच-पांच सौ रुपए दे दिए जा रहे हैं, लेकिन नीतीश की रैलियों में ये टेक्नीक लागू नहीं हो पा रही है। यही कारण है की एनडीए का प्लान एक्सपोज़ हो रहा है। अब देखिए मोदी भी जानते हैं कि उनकी रैली में भीड़ को कैसे इखट्टा किया जा रहा है, उनको भी अब तक समझ आ गया है कि बिहार चुनाव उनके हाथ से फिसलता जा रहा है।

यही कारण है कि मोदी के पास अब विपक्ष पर हमला करने के लिए जितने भी हथियार है उनका इस्तेमाल करना पड़ रहा है। जैसी भी भाषा उनको बोलनी पड़े वो बोल रहे हैं। इससे उनके पद की गरिमा गिरे या न गिरे इससे उनका कोई लेना देना नहीं है। उनको जनता को जंगलराज-जंगलराज कह कहकर डराना पड़े तो वो भी करेंगे। साम, दाम, दंड, भेद जिससे भी जनता को गुमारह किया जा सकता है वो करने को तैयार हैं।

अब सोचिए, एक वक्त हुआ करता था जब देश के नेता भाषण देते वक्त अपनी भाषा का बहुत ख्याल करते थे। बुरा से बुरा  राजनेता भी अपनी गरिमा का ख्याल करते हुए शब्दों का ठीक से चयन करता था। किसी भी पूर्व प्रधानमंत्री ने आज तक ऐसी भाषा नहीं बोली जिससे उनके पद को ठेस पहुंचे। वो सभी जानते थे कि प्रधानमंत्री के शब्द केवल राजनीतिक हथियार नहीं, बल्कि राष्ट्र के नैतिक स्वर होते हैं। लेकिन आज भारत के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों को यह देखकर गहरा दुख होता होगा कि देश के सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति चुनाव जीतने के लिए मंच से कुछ भी बोल रहा है।

दोस्तों, बिहार चुनाव के इस पूरे माहौल को देखने के बाद साफ़ समझ आ रहा है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग अब अपनी जमीन खिसकती देख घबराने लगे हैं। जब राजनीति मुद्दों, कामों और योजनाओं से नहीं चल पाती, तब नेता भाषा को हथियार बना लेते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में यही बौखलाहट साफ झलक रही है। जहां एक तरफ जनता रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग करके बदलाव का संदेश दे रही है, वहीं दूसरी तरफ सत्ता पक्ष उसे डराने, भटकाने और गुमराह करने की कोशिश कर रहा है।

खाली कुर्सियाँ, फीकी रैलियाँ और जनता की चुप्पी बहुत कुछ कह रही है। बिहार की जनता ने कई दौर और कई तरह की राजनीति देखी है। वो जानते हैं कि कौन उनके लिए काम करता है और कौन सिर्फ़ भाषणों से खेलता है। इसलिए इस बार फैसला सिर्फ सत्ता बदलने का नहीं, बल्कि राजनीतिक संस्कार, भाषा और संवाद के स्तर को बचाने का भी बन गया है।

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