दलितों की जमीन हड़पने पर पार्थ पवार पर प्रहार

  • महार वतन को लेकर विपक्ष के निशान पर महायुति सरकार
  • तहसीलदार का पुणे सौदे को लेकर अवैध बेदखली नोटिस

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पुणे। पिछले हफ़्ते उपमुख्यमंत्री अजित पवार के परिवार में उनके बेटे की कंपनी द्वारा किए गए एक ज़मीन सौदे को लेकर राजनीतिक विवाद छिड़ गया, जिससे एनसीपी कानूनी पचड़े में पड़ गई और महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी भाजपा के साथ भी मतभेद हो गए। इस विवाद के केंद्र में पुणे की सरकारी ज़मीन दलितों के लिए आरक्षित है, जिसके चलते पार्थ पवार की अमाडिया होल्डिंग्स एलएलपी पर ज़मीन चोरी का आरोप लगा। एक और आरोप सौदे के तुरंत बाद स्टाम्प शुल्क माफ़ी का था, जिससे उन्हें करोड़ों की बचत हुई और यह आरोप भी लगे कि मंत्री का बेटा होने के कारण उन्हें अनुचित लाभ मिला।
विपक्ष द्वारा इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश के बीच, भाजपा ने मामले को रफा-दफा करने का प्रयास किया और जांच शुरू कर दी। इस मामले में घिरे अजित पवार ने सार्वजनिक रूप से अपनी किसी भी भूमिका से इनकार किया। उन्होंने कहा कि उनके बेटे को कानूनी पहलुओं की जानकारी नहीं थी और इस बात की पुष्टि की कि अब यह सौदा रद्द कर दिया गया है। इसके अलावा अजित पवार के बेटे पार्थ से जुड़ी एक कंपनी के विवादास्पद भूमि सौदे के मामले में निलंबित तहसीलदार ने लंबे समय से किरायेदार रहे भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (बीएसआई) से जमीन खाली करने को कहा था। बीएसआई को बेदखली नोटिस में, तत्कालीन तहसीलदार सूर्यकांत येओले ने केंद्रीय संगठन को सूचित किया था कि कंपनी, अमाडिया एंटरप्राइजेज एलएलपी ने ‘‘कानूनी रूप से’’ संपत्ति हासिल की है। पुणे के कलेक्टर जितेंद्र डूडी ने कहा कि यह नोटिस ‘‘अवैध’’ है। पुणे के पॉश मुंधवा इलाके में 40 एकड़ जमीन 300 करोड़ रुपये में एक कंपनी को बिक्री की गई, जिसमें अजित पवार के बेटे पार्थ पवार के पास सबसे अधिक हिस्सेदारी है। इस सौदे को लेकर अनियमितताओं और जरूरी मंजूरी नहीं होने के आरोप लगे हैं।

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