बिहार में पहली बार हिंसा-मुक्त मतदान, नतीजों में NDA का पलड़ा भारी
बीजेपी और जेडीयू ने हमेशा निशाना साधा कि लालू यादव के शासन में जंगलराज पनपा. यही वजह है कि प्रदेश के हर चुनाव में हिंसा आम बात हो गई.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: बिहार में शांतिपूर्ण मतदान कराना चुनाव आयोग के लिए हमेशा से एक चुनौती रहा है। बीजेपी और जेडीयू ने हमेशा निशाना साधा कि लालू यादव के शासन में जंगलराज पनपा. यही वजह है कि प्रदेश के हर चुनाव में हिंसा आम बात हो गई. लेकिन 2025 की वोटिंग में ना तो हिंसा दर्ज हुई और ना किसी बूथ पर दोबारा वोटिंग की नौबत आई.
बिहार चुनाव के आज नतीजे का दिन है. 243 विधानसभा सीटों पर वोटों की गिनती जारी है. सरकार किसकी बनेगी, ये फाइनल आंकड़ा आने के बाद साफ होगा, फिलहाल एनडीए ने रुझानों में बढ़त बना ली है. एनडीए का सत्ता में बने रहना अपने आप में एक रिकॉर्ड कहलाएगा. वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि इस बार बिहार चुनाव में एक नया रिकॉर्ड बन गया है. पिछले तीस साल में यह पहला मौका है कि बिहार में मतदान के दौरान हिंसा नहीं हुई है. इस बार बिहार चुनाव में पहली बार कई सुधार भी किए गए थे. हिंसा मुक्त मतदान की एक बड़ी वजह यह भी है.
साल 1985 से 2005 के दौर को बीजेपी और जेडीयू जंगलराज बताती रही है. हिंसा और पुनर्मतदान बिहार चुनाव
की पहचान बन गया था लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव के दोनों चरणों के दौरान कोई हिंसा देखने को नहीं
मिली. और यही वजह है कि बिहार में इस बार शांतिपूर्ण मतदान हुआ. 243 सीटों में से एक भी सीट पर री-पोल
यानी दोबारा मतदान कराने की नौबत नहीं आई. चुनाव आयोग इसे अपने लिए बड़ी उपलब्धि मान रहा है.
SIR पर खूब हंगामा भी हुआ
जाहिर है चुनाव आयोग ने बिहार में एक नया रिकॉर्ड बना लिया है. पिछले तीस साल में पहली बार किसी भी बूथ
से हिंसा की कोई बड़ी खबर नहीं आई. हालांकि मतदान से पहले बिहार में खूब हंगामा हुआ. एसआईआर यानी मतदाता सूची शुद्धिकरण को लेकर चुनाव आयोग को बिहार में विपक्षी दलों का जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था. मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. तमाम आरोपों के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस करके अपना पक्ष रखा. एसआईआर से मतदान में गड़बड़ी की आशंका जताई गई थी. वहीं चुनाव आयोग के मुताबिक, यह पहला चुनाव है जो पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा. दोनों ही चरणों के मतदान में कहीं हिंसा या तोड़फोड़ नहीं हुई.
बिहार में चुनाव के दौरान पहले हिंसा आम बात थी. हिंसा के चलते मतदान रद्द भी होते रहे हैं. चुनावी हिंसा में
लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. चुनाव आयोग के आंकड़ों पर गौर करें तो 1985 के विधानसभा चुनाव में जमकर हिंसा हुई थी. इस दौरान 63 लोगों की मौत हुई थी. चुनाव आयोग को 156 पोलिंग बूथों पर दोबारा मतदान करवाना पड़ा था. वहीं साल 1990 के विधानसभा चुनाव में भी खूब हिंसा हुई. इस दौरान 87 लोगों की मौत हो गई. 1990 में ही लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने.
1995 में टीएन शेषन ने दिखाई सख्ती
बिहार चुनाव के इतिहास के पन्ने पलटें तो साल 1995 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में सबसे यादगार था. इस साल चुनाव के ऐलान के बाद पूरे राज्य में जमकर हिंसा हुई थी. मतदान के दौरान जमकर गड़बड़ियां हुईं. ज्यादातर बूथों पर बवाल, हिंसा हुई थी. हालात को देखते हुए तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को एक दो बार नहीं बल्कि चार बार चुनाव को टालना पड़ा था. यह साल बिहार के लिए बहुत ही अराजकता वाला साल था. टीएन शेषन ने जिस तरह से सख्ती दिखाई, उससे उनकी साफ सुथरी छवि निखर कर सामने आई. उन्हें एक सशक्त चुनाव आयुक्त के तौर पर गिना गया. आज भी गिना जाता है.
2005 से नीतीश हर चुनाव में सीएम
हालांकि इसके बाद भी बिहार विधानसभा के चुनाव में हिंसा बदस्तूर जारी रही. साल 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में भी छिटपुट हिंसा दर्ज की गई थी. इसके बाद 2005 के विधानसभा चुनाव भी हिंसा मुक्त नहीं रहा. इस साल दो बार चुनाव हुए थे. पहले फरवरी-मार्च के दौरान और दूसरा अक्टूबर-नवंबर के दौरान. अक्टूबर-नवंबर में हुए मतदान के बाद से ही हर चुनाव में बिहार में नीतीश कुमार लगातार मुख्यमंत्री चुने जा रहे हैं. हालांकि इस चुनाव में भी बिहार में हिंसा और चुनावी गड़बड़ियों की शिकायतें सामने थीं. जिसके चलते 660 बूथों पर दोबारा मतदान कराया गया था.



