गृह मंत्रालय छिनने के बाद स्पीकर पर शुरु भयंकर रार, एनडीए में टूट के असार
दोस्तों बिहार में नीतीश कुमार से गृह मंत्रालय छिनते ही न सिर्फ सरकार में बल्कि जनता के बीच ये चर्चा शुरु हो गई कि नीतीश की ताकत बहुत कम हो गई है तो वहीं दूसरी ओर एनडीए के अदंरखाने में भी भयंकर रार’-तकरार का दौर शुरु हो गया।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों बिहार में नीतीश कुमार से गृह मंत्रालय छिनते ही न सिर्फ सरकार में बल्कि जनता के बीच ये चर्चा शुरु हो गई कि नीतीश की ताकत बहुत कम हो गई है तो वहीं दूसरी ओर एनडीए के अदंरखाने में भी भयंकर रार’-तकरार का दौर शुरु हो गया।
एक ओर जहां नीतीश लॉबी के सीनियर नेताओं ने बैठक कर फैसला लिया है कि स्पीकर का पद किसी भी कीमत पर जदयू के खाते से नहीं निकलना चाहिए तो वहीं दूसरी ओर अंदरखाने से जो खबरें आ रही है कि पीएम साहब के चाणक्य ने जो रातों रात मीटिंग के लिए ललन सिंह और संजय झा को बुलाया था, उस सीक्रेट मीटिंग में यह पहले ही तय हो गया था प्रेम कुमार ही स्पीकर होंगे यानि कि ये पद पहले से ही बीजेपी के खाते में है। ऐसे में स्प्ीकर पद को लेकर भयंकर सिर फुटव्वल के बीच एनडीए में टूट के आसार दिखाई देने लगे हैं। गृह मंत्रालय छिनने के बाद क्यों अचानक नीतीश लॉबी के नेता एक्टिव हुए हैं और कैसे स्पीकर को लेकर नई लड़ाई एनडीए मेें शुरु हो गई है, ये हम आपको आगे अपनी इस आठ मिनट की रिपोर्ट में बताएंगें।
दोस्तों बिहार के विधान सभा चुनाव में एनडीए को बड़ी जीत मिली, बीजेपी को 89 तो जदयू को 85 सीटें मिली तो ऐसा लगा कि शायद नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच बराबर का मामला रहेगा। शुरुआत में जो खबरें आईं उसमें भी कहीं न कहीं इसका असर दिखाई दिया क्योंकि बीजेपी बड़ी पार्टी होने के बाद भी सीएम का पद नीतीश कुमार को दे दिया। इससे पूरे बिहार और देश में मैसेज ये गया कि शायद नीतीश कुमार पीएम साहब के चाणक्य को सबक सिखाने में कामयाब हो गए क्योंकि जो बीजेपी पूरे चुनाव ये ऐलान करती रही कि वो चुनाव के बाद विधायक दल की बैठक में अपना नेता चुनेगी तो आखिर में उसको नीतीश को अपना नेता चुनना पड़ा लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार ने शपथ ली, ठीक कुछ ही घंटे बाद उनको जोर का झटका लग गया क्योंकि नीतीश की पावर आधी या उससे भी कम हो गई। उनसे नीतीश से गृह मंत्रालय छीन लिया गया।
हालांकि आपको बता दें कि ये बात जदयू के कुछ नेताओं को पहले से ही मामलू थी। अंदरखाने से खबर है कि नीतीश कुमार ने जब सम्राट चौधरी से उनके मंत्रियों की सूची मांगी और सम्राट चौधरी ने अपने विभाग के आगे गृह विभाग का नाम लिखकर दिया तो जदयू में हड़कंप मच गया। खासतौर से नीतीश कुमार के करीबी नेताओं में तो काफी रोष देखने को मिला लेकिन क्योंकि ये बात पहले से डील में फाइनल थी तो इस वजह से आखिर में यही हुआ। हां, इतना जरुर था कि कुछ घंटे रार तकरार का दौर चला लेकिन बाद में फिर से सबकुछ ठीक हो गया। लेकिन पूरे घटनाक्रम में नीतीश के करीबी नेताओं को जोर का झटका लगा है और अब वो आगे के लिए अलर्ट मोड में आ चुक हैं।
आपको बता दें कि अभी सीएम- डिप्टी सीएम और विभागों के बंटवारे के बाद एक बड़ा पद स्पीकर का बचा है, जिसपर नीतीश लॉबी के नेतओं की नजर है। एनडीए के भीतर यह पद किसे मिलेगा, इसे लेकर दावेदारी और सक्रिय राजनीतिक कोशिशें तेज हो गई है नीतीश लॉबी ने पूरी ताकत झोंक दी है। एक ओर जहां जदयू के सीनियर नेताओं ने बैठक ही है तो सीएम नीतीश कुमार से सीधे इस मामले में दखल देने की बात ही है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी अपनी दावेदारी को लेकर बिलकुल बिंदास है। क्योंकि बीजेपी के सूत्रों हवाले से ही ये खबर सामने आई है कि अमित शाहकी जो दिल्ली में ललन सिंह और संजय झा को लेकर बैठक हुई थी उसमें बीजेपी के खाते में स्पीकर का पद जाने के दावे किए जा रहा हैं।
हालांकि अभी दोनों ओर से कोई अधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है, इसलिए असमंजस का माहौल बना हुआ है। कुछ बड़े नेताओं के मुताबिक़, जल्द ही एक विशेष विधानसभा सत्र बुलाया जाएगा जिसमें सभी 243 निर्वाचित सदस्य शपथ लेंगे और उसके बाद अध्यक्ष का चुनाव कराया जाएगा। इसे लेकर राज्यपाल पहले ‘प्रोटेम स्पीकर’ नियुक्त करेंगे जो नए सदस्यों को शपथ दिलाएगे उसके बाद ही सदन में स्पीकर पद के लिए मतदान हो सकेगा। आपको बता दें कि स्पीकार का पद सियासी समीकरणों की दृष्टि से यह पद सिर्फ एक प्रतीक भर नहीं है, बल्कि विधानसभा की कार्यवाही और गठबंधन-निहित शक्तियों को संतुलित करने की दिशा में एक बड़ा हथियार हो सकता है. दोनों पार्टियां, बीजेपी और जेडीयू इस निर्णय को लेकर हर एक कदम पर सावधान दिख रही हैं और दावेदारी को लेकर दोनों दलों में रणनीतिक गतिविधि बढ़ गई है।
बीजेपी की ओर से गया टाउन के नौवीं बार चुने गए विधायक प्रेम कुमार का नाम सबसे आगे बताया जा रहा है। वो एनडीए सरकारों में मंत्री रह चुके हैं और विधानसभा के सबसे वरिष्ठ विधायकों में शामिल हैं। दूसरी ओर, जेडीयू की तरफ से झाझा से विधायक दामोदर रावत का नाम चर्चा में है। पार्टी के कई नेता मानते हैं कि विधानसभा में स्थिरता और अनुभव के लिहाज से उनका नाम भी मजबूत विकल्प है। एनडीए के भीतर यह पद किसे मिलेगा, इस पर अभी दोनों दलों के बीच उठापटक का खेल चल रहा है। जेडीयू में नीतीश लॉबी के नेताओं का तर्क है कि चूंकि विधान परिषद में सभापति पद बीजेपी के पास है। इसलिए विधानसभा अध्यक्ष का पद जेडीयू को मिलने की संभावना पर चर्चा होनी चाहिए। दूसरी तरफ बीजेपी के अंदर यह राय भी मजबूत है कि सबसे वरिष्ठ विधायक प्रेम कुमार इस जिम्मेदारी के योग्य हैं और पार्टी उन्हें आगे बढ़ाना चाहती है।
दोनों पार्टियां, बीजेपी और जेडीयू, इस निर्णय को लेकर हर एक कदम पर सावधान दिख रही हैं। बता दें कि कि पिछले विधान विधानसभा में स्पीकर बीजेपी के नंद किशोर यादव थे जबकि उपाध्यक्ष पद पर जेडीयू के नरेंद्र नारायण यादव थे। ऐसे में दोनों दलों के बीच रार-तकरार का दौर शुरु होता दिख रहा है। और जिस तरह से नीतीश के सीनियर लीडर एक्टिव हुए हैं, उससे तो एक बात पूरी तरह साफ है कि स्पीकर पद को लेकर भयंकर रार तकरार का दौर शुरु होने वाला है। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार के अंतिम संकेत और एनडीए बैठक का निर्णय ही तय करेगा कि इस बार सत्ता समीकरणों में स्पीकर की कुर्सी किसके खाते में जाती है।
जबकि माना जा रहा है कि गवर्नर और कैबिनेट की अहम बैठकों के बाद यह साफ हो सकेगा कि राष्ट्रपति विशेष सत्र की तारीख तय करने में किस हद तक सहमति बनाते हैं और स्पीकर के पद को किस दावेदार को सुप्रीम शक्ति मिलती है। इस लड़ाई का नतीजा आने वाले दिनों में पूरे बिहार की सत्ता नीतियों और विधानसभा ड्रामे को भी आकार दे सकता है. फिलहाल इतना साफ है कि इस बार किसी भी कीमत पर समझौता करने को तैयार नहीं है। और यही वजह है कि नीतीश कुमार अपनी ताकत को बढ़ाने में जुट गए हैं । कहा जा रहा है कुछ दलों और विधायकों को एनडीए में शामिल करा सकते है। खबर तो यहां तक है कि नीतीश लॉबी चाहती है कि उसकी संख्या 100 के करीब हो जाए, जिससे वो बीजेपी से सीधे दो टूक बात कर सके।
कहा जा रहा है कि शायद इसलिए ही नीतीश कुमार ने अपने 8 मंत्रियों की संख्या पर किसी को शपथ नहीं दिलाई है और वो हर आने वालों का मंत्री पद देकर स्वागत कर सकते हैं। वैसे आपको बता दें कि स्पीकर के पद पर रार तकरार भयंकर है। अगर ये पद बीजेपी के खाते में गया तो इस बार एनडीए में सिर फुटव्वल पड़ना तय है। वैसे भी नीतीश कुमार का इतिहास रहा है कि उन्होंने कभी किसी के अंडर प्रेशर में काम नहीं किया है और अगर गुुजरात लॉबी का प्रेशर बहुत ज्यादा नीतीश पर पड़ा तो सिर्फ बिहार नहीं बल्कि दिल्ली की भी कुर्सी हिलना तय है। क्योंकि नीतीश कुमार सिर्फ बिहार में एनडीए के साथी नहीं है मोदी की कुर्सी की बैसाखी भी नीतीश कुमार ही हैं।
ऐसे में बीजेपी को जोर का झटका नीतीश दे सकते हैं और स्पीकर पर इसलिए भी उनकी दावेदारी नीतीश कुमार की ज्यादा हैै क्योंकि वो अब तक उनके पास एक दिखावटी सीएम के आलावा कुछ नहीं हाथ लगा है। ऐसे में अमित शाह की ललन सिंह और संजय झा के साथ हुई दिल्ली डील का क्या होगा, ये सबसे बड़ा सवाल है लेकिन पूरे मामले में एक बात को बिल्कुल साफ है कि कहीं न कहीं स्पीकर को लेकर जोर की सिर फुटव्वल चल रही है और इसमें एनडीए के कुछ अलग अलग बयानों ने हड़कंप मचा दिया है। इसमें जीतने राम मांझाी का बयान कि गठबंधन की सरकार में कुछ कहा नहीं जा सकता है चर्चाओं में है।
सुना आपने कि जीतन राम मांझी का कहना है कि गठबंधन मंे कुछ कहा नहीं जा सकता है। ऐसे में जदयू ही नहीं एनडीए में भी कहीं न कहीं गृह विभाग और स्पीकर को लेकर जद्दो जहद चल रही है। और ये सीधा इशारा है कि दो दिन की सरकार में इस तरह की बात सामने आ रही है तो क्या ये सरकार पांच साल चल पाएगी। पूरे मामले पर आपका क्या मानन है, क्या नीतीश कुमार की पार्टी को स्पीकर का पद मिलना चाहिए या नहीं । क्या नीतीश कुमार की पार्टी स्पीकर के पद पर पूरी जोर आजमाईश करेगी।



