कौन है सुनाली खातून और उसका परिवार, जिसे भेज दिया गया बांग्लादेश, अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा- वापस लेकर आओ

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले की एक गर्भवती महिला सुनाली खातून (Sunali Khatun) समेत 6 लोगों को उनकी नागरिकता के वेरिफिकेशन के बिना ही बांग्लादेश भेज दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खासी नाराजगी दिखाई. देश की सबसे बड़ी अदालत ने मंगलवार (24 नवंबर) को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से कई तीखे सवाल किए. साथ ही केंद्र को निर्देश दिया कि इन सभी लोगों को वापस भारत लाया जाए.
25 साल की सुनाली खातून और 5 अन्य लोगों को, जिन्हें इस साल जून में दिल्ली से हिरासत में लिया गया था. हिरासत में लिए जाने के 3 दिन के अंदर ही उन्हें बांग्लादेश भेज दिया गया. सुनाली के साथ-साथ उनके पति दानिश और उनके 8 साल के बेटे के अलावा एक और परिवार के 3 सदस्यों को बांग्लादेश भेज दिया गया था.
पहले लाओ, फिर नागरिकता पर फैसला करो
सुप्रीम कोर्ट के नवनियुक्त चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान जब केंद्र सरकार ने एक और दिन की मोहलत मांगी, तो कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि अंतरिम व्यवस्था के तहत, केंद्र सरकार को पहले सभी 6 लोगों को भारत वापस लाना होगा. उनके लौटने के बाद ही अधिकारी उनके डॉक्यूमेंट्स की जांच कर सकते हैं और उनकी नागरिकता की स्थिति पर फैसला कर सकते हैं.
मामले की अगली सुनवाई अगले हफ्ते सोमवार (1 दिसंबर) को होनी है. मामला सुप्रीम कोर्ट तब पहुंचा जब केंद्र सरकार कलकत्ता हाईकोर्ट के पहले के निर्देश पर कोई कार्रवाई करने में नाकाम रही. 24 सितंबर को ही हाई कोर्ट ने सरकार को 4 हफ्तों के अंदर सभी 6 लोगों को वापस लाने का आदेश दिया था. हालांकि इस आदेश पर अमल करने की जगह केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जो अब इस मामले की जांच कर रहा है.
26 जून को हिरासत में लिया गया परिवार
कलकत्ता हाईकोर्ट की ओर से वापस लाए जाने की डेडलाइन खत्म होने के बाद भी उनकी वापसी पक्की करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया, और इस वजह से नई ज्यूडिशियल जांच शुरू हो गई.
26 जून को, सुनाली और स्वीटी बीबी के परिवारों को, जिसमें उसके 6 और 16 साल के बेटे भी शामिल थे, दिल्ली पुलिस ने गैर-कानूनी बांग्लादेशी घुसपैठिए होने के शक में उठाया था. जबकि इनका कहना था कि ये बंगाल से आए हुए हैं.
दस्तावेज में पश्चिम बंगाल के निवासी
कोर्ट में जमा किए गए डिटेल से पता चला है कि खातून और उनके साथ बांग्लादेश भेजी गई कम से कम एक और महिला के भारत से पुराने और पक्के सबूत वाले दस्तावेज हैं. उनके माता-पिता के नाम 2002 के इलेक्टोरल रोल में भी दर्ज हैं, जिससे पता चलता है कि वे 2 दशक से भी पहले वोटर के तौर पर देश में रजिस्टर्ड हो चुके थे.
मिली जानकारी में खातून के पिता भोदू शेख और उनके पिता हातिम ताई शेख का भी जिक्र है. उनके परिवार ने 1952 से अब तक के जमीन के रिकॉर्ड भी दिखाए हैं, जिसमें देश में लगातार रहने और प्रॉपर्टी के मालिकाना हक को दिखाया गया है.
बच्चों के लौटने का इंतजारः पिता शेख
अंग्रेजी वेबसाइट द वायर से बात करते हुए, भोदू शेख ने बताया कि आर्थिक की तंगी की वजह से उनके परिवार को दिल्ली आने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्होंने कहा कि उनकी बेटी, दामाद और पोते-पोतियां राजधानी में रद्दी कागज एकत्र करके और कबाड़ बेचकर गुजारा करने की उम्मीद में राजधानी आए थे. भोदू शेख बताते हैं, “हम गरीब लोग हैं. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि सरकार वहां पर हम पर इतनी कड़ी नजर रखेगी.”
उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा, “मैं अब इंतजार कर रहा हूं कि कोर्ट के ऑर्डर के हिसाब से मेरे बच्चे कब वापस आएंगे.”
इसी तरह स्वीटी बीबी के साथ भी ऐसा ही किया गया, और उन्हें भी खातून के साथ बांग्लादेश भेजा गया था. याचिकाकर्ता के वकीलों ने कहा कि डिपोर्टेशन का कोई भी फैसला लेने से पहले ऐसे डॉक्यूमेंट्स की जांच होनी चाहिए थी. लेकिन बिना वेरिफिकेशन के ही उन्हें देश से बाहर भेजना ड्यू प्रोसेस का उल्लंघन है.
सुनाली का परिवार से कोई संपर्क नहीं
वहीं, सुनाली के परिवार का सुनाली के साथ कोई संपर्क नहीं हो सका है, हालांकि शुरुआत में वह किसी के फोन से उनसे बात करने में कामयाब रही थी. सुनाली की बहन करिश्मा, जो दिल्ली के रोहिणी में अपनी मां ज्योत्सनारा बीबी और सुनाली की 5 साल की बेटी के साथ रहती है, बताती हैं, उसके पकड़े जाने के बाद, हमारा संपर्क टूट गया है. लेकिन हमने सुना है कि उसका अल्ट्रासाउंड हुआ था. हमें नहीं पता कि उसे किस तरह का इलाज मिल रहा है. हमारे पास बस कोर्ट की तारीखें हैं, कोर्ट की तारीखें. करिश्मा घरों में सहायिका का काम करती है, जबकि ज्योत्सनारा बर्तन बेचती हैं.
दूसरी ओर, बांग्लादेश की एक कोर्ट ने भी ढाका में भारतीय दूतावास से भी इन लोगों को भारत वापस लाने में मदद करने को कहा है. याचिकाकर्ता के मुताबिक, इस आदेश के बाद भी भारत की ओर से बांग्लादेशी कोर्ट की रिक्वेस्ट या कलकत्ता हाई कोर्ट के ऑर्डर को मानने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के यह साफ करने के बाद कि नागरिकता से जुड़े मामला तभी सुलझाया जा सकता है जब इन 6 लोगों को भारत वापस लाया जाएगा.

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