एकनाथ शिंदे नेता के घर छापेमारी, महायुति में मचा बवाल, विपक्ष ने जमकर घेरा!
महाराष्ट्र की महायुति सरकार में इन दिनों सबकुछ सही नहीं चल रहा है। आपसी गठबंधन में ही लगातार आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। वहीं इसी बीच एक बेहद हैरान करने वाली खबर सामने आई जिससे यह लगने लगा कि BMC चुनाव से पहले ही महायुति गठबंधन में पूरी तरह से फूट पड़ सकती है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: महाराष्ट्र की महायुति सरकार में इन दिनों सबकुछ सही नहीं चल रहा है। आपसी गठबंधन में ही लगातार आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। वहीं इसी बीच एक बेहद हैरान करने वाली खबर सामने आई जिससे यह लगने लगा कि BMC चुनाव से पहले ही महायुति गठबंधन में पूरी तरह से फूट पड़ सकती है।
दरअसल सत्तारूढ़ महायुति के सहयोगी दल शिवसेना के नेताओं के आवास और कार्यालयों पर छापेमारी हुई. शिंदे के पूर्व विधायक शहाजी बापू के कार्यालय पर LCB और चुनाव अधिकारी रेड डालने पहुंचे। आपको बता दें कि सांगोला में शहाजी बापू पाटील के कार्यालय पर छापा पड़ा है. LCB और चुनाव आयोग की टीम ने इस दौरान रिकॉर्डिंग भी की. शहाजी बापू के कार्यालय पर छापा पड़ने से बड़ी हलचल मच गई है. सांगोला में विधायक बाबासाहेब देशमुख के प्रचार कार्यालय की भी जांच चुनाव अधिकारियों द्वारा की गई.
वहीं इस घटनाक्रम को लेकर शहाजी बापू पाटील ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि जिला पालक मंत्री जयकुमार गोरे और पूर्व विधायक दीपक आबा सालुंखे के इशारे पर यह कार्रवाई की गई है. सांगोला नगर परिषद चुनाव में बीजेपी को अपनी हार दिख रही है, इसलिए उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई है. इसी वजह से यह कार्रवाई की गई है. ऐसा सीधा आरोप शहाजी बापू ने लगाया है.
आपको बता दें कि महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी बनाम शिवसेना देखने को मिल रहा है, जिसको लेकर राजनीतिक गलियारों में महायुति को लेकर चर्चा हो रही हैं. इसी बीच महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे ने साफ कर दिया है कि स्थानीय निकाय चुनाव कार्यकर्ताओं का चुनाव है. कार्यकर्ताओं की इच्छा अनुसार प्रचार के लिए हम लोग जाते हैं. उन्होंने कहा कि कई जगहों पर अलग चुनाव लड़ रहे हैं, इसका मतलब नहीं है कि महायुति में संघर्ष है.
वहीं अभी हाल ही में जब एकनाथ शिंदे से पूछा गया कि क्या ये महाराष्ट्र की राजनीति में नई जोर आजमाइश हो तो उन्होंने कहा, ‘देखिए ये स्थानीय निकाय चुनाव है और ये चुनाव कार्यकर्ताओं का चुनाव है. लोकसभा विधानसभा चुनाव हो गया और ये कार्यकर्ता हमारे विधायक-सांसद इनको चुन कर देते हैं. अभी ये कार्यकर्ताओं का चुनाव है तो उनकी भी अपेक्षा होती है कि हमारे चुनाव में भी हमारे नेता आए प्रचार करें.
इसलिए हम हर जगह जहां-जहां जाना संभव है, वहां जाते हैं.’ उन्होंने साफ करते हुए कहा कि ये कोई स्पर्धा नहीं है. कहीं पर हम साथ में, कहीं पर जो लोकल लेवल का समीकरण है, वहां की जो रणनीति और कार्यकर्ताओं की कुछ भावना होती है, उस जगह पर हम भले अलग लड़ते हैं. लेकिन हमारा एजेंडा विकास का है. हम कोई भी प्रचार अपने मित्र (गठबंधन) के खिलाफ नहीं करते, क्योंकि हमने ये सब तय कर रखा है.
हालांकि दोस्तों आपको बता दें कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद जब देवेंद्र फडणवीस को राज्य की कमान मिली और एकनाथ शिंदे को डिप्टी सीएम के पद पर संतोष करना पड़ा, तभी से राज्य की सियासत में हलचल तेज हो गई थी। इसपर लगातार कयास लगाए जा रहे थे कि आगामी दिनों में सत्ता संघर्ष और राजनीतिक बदलाव संभव है। इन अटकलों को शांत करने की कई कोशिशें भाजपा और शिवसेना ने की, लेकिन अंदरूनी स्थिति समय-समय पर उजागर होती रही।
ताजा घटनाक्रम एकनाथ शिंदे के उस बयान से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अपने सहयोगी दलों को महागठबंधन धर्म का पालन करने की सलाह दी। इस बयान के बाद से फिर से सवाल उठने लगे हैं कि क्या महायुति में सब कुछ ठीक चल रहा है?
आपको बता दें कि इस कहानी की शुरुआत तब हुई जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के कुछ विधायकों ने बगावत कर दी और पार्टी दो धड़ों में बंट गई। कहा जाता है कि भाजपा ने इस बगावत की पटकथा लिखी थी। इसके परिणामस्वरूप शिंदे गुट ने भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई और नेतृत्व शिंदे को सौंपा गया, जबकि देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी पद पर संतोष करना पड़ा। इसके बाद अजित पवार भी महायुति का हिस्सा बने और इस गठबंधन ने विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की। इस बार सत्ता की कमान देवेंद्र फडणवीस को मिली, जबकि शिंदे को डिप्टी सीएम का पद सौंपा गया। हालांकि, सत्ता में साझेदारी के बावजूद महायुति में छोटे-मोटे मतभेद और तकरार की खबरें आने लगी।
हाल ही में शिवसेना के कॉर्पोरेटर्स और ऑन-ग्राउंड कार्यकर्ताओं का भाजपा में शामिल होना जारी था, लेकिन शिवसेना इसे पचा नहीं पा रही थी। तकरार बढ़ने पर दोनों पार्टियों ने एक अनौपचारिक समझौता किया था कि वे एक-दूसरे के कार्यकर्ताओं और ऑफिस-बेयरर्स को अपने पक्ष में शामिल नहीं करेंगे, लेकिन यह समझौता जल्द ही टूट गया। कुछ दिनों बाद, शिवसेना के कई नेता जैसे रूपसिंह धाल, आनंद ढोके, शिल्पारानी वाडकर और अनमोल म्हात्रे भाजपा में शामिल हो गए। हालांकि, किसी ने खुले तौर पर कुछ नहीं कहा, लेकिन यह साफ हो गया कि अंदरूनी स्तर पर कुछ ठीक नहीं चल रहा था। चर्चाएं तब और तेज हुईं जब मुंबई निकाय चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में फडणवीस और शिंदे एक ही होटल में ठहरे थे, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे से मुलाकात नहीं की।
जब मीडिया में अटकलें तेज हुईं, तो फडणवीस ने दरार को छिपाने की कोशिश की। उन्होंने शिंदे से न मिलने के सवाल को खारिज करते हुए कहा, “मैं देर रात आया था और मुझे जल्दी निकलना पड़ा। मेरी मीटिंग्स पहले से तय थीं, इसलिए हम नहीं मिले, लेकिन हम मिलेंगे। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। हम दोनों हर रोज फोन पर बात करते हैं।” शिंदे ने भी लीपापोती की कोशिश की, लेकिन उनके एक बयान ने स्थिति को और स्पष्ट कर दिया। शिंदे ने कहा, “मैं ऐसे कमेंट्स को गंभीरता से नहीं लेता। जब से मैं मुख्यमंत्री बना हूं, मैंने ऐसे कई इल्जाम सुने हैं। मैं इन बातों में फंसने की बजाय अपने काम पर ध्यान केंद्रित करता हूं।”
हालांकि, शिंदे ने इसके बाद जो कहा, उसने महायुति के अंदर चल रही मनमुटाव की कहानी को उजागर कर दिया। उन्होंने कहा, “यह गठबंधन एक जैसी विचारधारा और सामान्य सिद्धांतों पर आधारित है। हम गठबंधन धर्म का पूरी तरह पालन करते हैं और हमारे सहयोगी दलों को भी ऐसा करना चाहिए।”
इस बयान ने महायुति में जारी तनाव को सार्वजनिक रूप से उजागर कर दिया। एनसीपी नेता माणिकराव कोकाटे ने भी बयान देकर आग में घी डाला। उन्होंने कहा, भाजपा पूरी तरह से बंटी हुई है। उनके पास अब अपना कुछ नहीं है। उनकी पूरी राजनीति मैनिपुलेशन और विभाजन के इर्द-गिर्द घूमती है।”
शिवसेना के वरिष्ठ नेता और सरकार में मंत्री उदय सामंत ने भी इस बात को स्वीकार किया कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है। मुंबई निकाय चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है और महायुति में चल रही तकरार का असर निश्चित रूप से इस चुनाव पर पड़ेगा। अगर महायुति के दल निकाय चुनाव में अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं, तो यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी।
वहीं आपको बता दें कि महायुति में पड़ी इस फूट की ख़बरों के बीच विपक्ष भी लगातार बड़े-बड़े दावे कर रहा है इसी बीच शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने महाराष्ट्र में होने वाले नगरपालिका और नगर पंचायत चुनावों में पैसों के इस्तेमाल होने के दावों पर बड़ा दिया है। उन्होंने पैसों के लेन-देना की कड़ी आलोचना की। इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और महायुति सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और महायुति सरकार की ओर से बड़े पैमाने पर चुनावी दौर में पैसों का खेल चल रहा है। चुनाव आयोग को इस ओर ध्यान देना चाहिए और दखल करना चाहिए।
संजय राउत ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने ही शिंदे गुट को बनाया है। पैसों की राजनीति लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा कर सकती है। गौरतलब है कि जिस तरह से BMC चुनाव से पहले राज्य का सियासी पारा हाई चल रहा है ऐसे में एक बात तो तय है कि भाजपा को भारी नुकसान होने वाला है। हालाँकि ये तो आने वाले चुनावी नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा।



