दुबई ने प्रवासियों के मौत के बाद उनके शरीर को भेजने के लिए शुरू किया नया सिस्टम ‘जब्र’
दुबई ने प्रवासियों की मौत के बाद उनके शव को घर भेजने के लिए एक नया सिस्टम शुरू किया है। यह सिस्टम बहुत ही उपयोगी और दुख के समय में परिवार की मदद करने वाला है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दुबई ने प्रवासियों की मौत के बाद उनके शव को घर भेजने के लिए एक नया सिस्टम शुरू किया है। यह सिस्टम बहुत ही उपयोगी और दुख के समय में परिवार की मदद करने वाला है। पहले, जब कोई प्रवासी दुबई में मर जाता था, तो उसके परिवार को बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ती थीं।
कागजात इकट्ठा करने, सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने, और शव को घर भेजने की प्रक्रिया में कई हफ्ते लग जाते थे। लेकिन अब दुबई हेल्थ अथॉरिटी ने ‘जब्र’ नाम का यह नया सिस्टम लॉन्च किया है, जो सब कुछ आसान और तेज बना देता है। यह सिस्टम डिजिटल है, मतलब कंप्यूटर और ऐप के जरिए काम करता है, और इसमें इंसानी मदद भी शामिल है। जब कोई मौत होती है, तो तुरंत नोटिफिकेशन चला जाता है सभी संबंधित विभागों को, जैसे पुलिस, स्वास्थ्य विभाग, और दूतावास। इससे प्रक्रिया तेज हो जाती है।
ऐसे में परिवार को अब कई जगह घूमने की जरूरत नहीं पड़ती। एक सरकारी अधिकारी को केस सौंप दिया जाता है, जो सब कुछ संभालता है। यह सिस्टम खासकर प्रवासियों के लिए फायदेमंद है, क्योंकि दुबई में करोड़ों लोग भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस जैसे देशों से काम करने आते हैं। अगर कोई मजदूर या प्रोफेशनल दुबई में बीमारी या हादसे से मर जाता है, तो उसका परिवार दूर देश में होता है। वे न तो तुरंत आ सकते हैं, न ही सारी प्रक्रिया समझ पाते हैं। ‘जब्र’ सिस्टम इस दर्द को कम करता है।
यह इसी महीने से शुरू हुआ है, और दुबई सरकार का यह कदम लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। वहीं इसे लेकर डॉक्टर अलावी अलशेख-अली, जो दुबई हेल्थ अथॉरिटी के डायरेक्टर जनरल हैं, उनका कहना है कि यह सिस्टम दुबई सरकार की लोगों को प्राथमिकता देने की सोच को दिखाता है। अब शव को यूएई के अंदर या विदेश भेजने की प्रक्रिया बहुत तेज हो गई है। पहले जहां 10-15 दिन लगते थे, अब कुछ दिनों में हो जाता है। यह न सिर्फ समय बचाता है, बल्कि परिवार के मानसिक और आर्थिक बोझ को भी कम करता है।
सबसे पहले इस प्रक्रिया को समझते हैं फर्ज कीजिये कोई भारतीय प्रवासी दुबई में मर जाता है। सबसे पहले अस्पताल या पुलिस को सूचना देनी पड़ती। अगर मौत घर पर या सड़क पर हुई हो, तो फोरेंसिक रिपोर्ट बनानी पड़ती, जो ऑटोप्सी या टॉक्सिकोलॉजी टेस्ट की जरूरत डाल सकती थी। फिर मौत का सर्टिफिकेट लेना, पासपोर्ट कैंसल कराना दूतावास से, और नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना। इसके बाद शव को एम्बाल्म करना, यानी रसायनों से संरक्षित करना, ताकि लंबी यात्रा में खराब न हो। फिर जिंक-लाइंड कॉफिन में रखना, एयरलाइन बुकिंग कराना, और कस्टम्स क्लियरेंस।
ये सब स्टेप्स में पैसे भी बहुत लगते थे – एम्बाल्मिंग के 2 से 5 हजार दिरहम, कॉफिन के 5 से 10 हजार, फ्लाइट के हजारों का खर्च और कुल मिलाकर भारत भेजने में 20 से 50 हजार दिरहम तक। अगर परिवार गरीब था, तो दूतावास मदद करता, लेकिन एजेंट लोग घोटाले करते थे। कुछ सोशल वर्कर्स फ्री मदद करते थे, प्रवासियों की संख्या देखें तो यूएई में 90% आबादी एक्सपैट्स है, जिनमें ज्यादातर साउथ एशियन। हर साल हजारों मौतें होती हैं – हार्ट अटैक, एक्सीडेंट, या बीमारी से।
पुरानी सिस्टम में परिवार को वीजा लेकर आना पड़ता, या लोकल एजेंट हायर करना, जो महंगा और तनावपूर्ण था। लेकिन अब ‘जब्र’ ने सब बदल दिया। यह सिस्टम स्मार्ट डैशबोर्ड पर काम करता है, जहां रीयल-टाइम अपडेट मिलते हैं। एक यूनिफाइड पेमेंट पॉइंट है, ताकि पैसे एक जगह से दें। और सबसे अच्छी बात, दुबई कोर्ट्स अब ऑटोमैटिक एस्टेट फाइल खोल देते हैं, बिना परिवार के आने के। इससे इनहेरिटेंस प्रॉसेस आसान हो जाती है।
अब बात आती है ‘जब्र’ सिस्टम कैसे काम करता है, इसे स्टेप बाय स्टेप समझें। सबसे पहले, जब मौत रजिस्टर होती है – चाहे अस्पताल में हो या बाहर – तो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अलर्ट चला जाता है। यह प्लेटफॉर्म सभी डिपार्टमेंट्स को कनेक्ट करता है: हेल्थ अथॉरिटी, पुलिस, म्यूनिसिपैलिटी, और इस्लामिक अफेयर्स डिपार्टमेंट। फिर एक गवर्नमेंट सर्विस ऑफिसर को केस असाइन हो जाता है। यह अधिकारी परिवार की तरफ से सब कुछ हैंडल करता है – कागजात इकट्ठा करना, एनओसी लेना, एम्बाल्मिंग अरेंज करना, ट्रांसपोर्टेशन बुक करना, और यहां तक कि एयरलाइन से बात करना। परिवार को सिर्फ एक कॉल या ऐप पर अपडेट देना है।
अगर शव को विदेश भेजना हो, तो प्रक्रिया तेज हो गई है। पहले जहां फ्लाइट बुकिंग में देरी होती, अब प्रायोरिटी मिलती है। खासकर एक्सपैट्स के लिए, कंसुलेट के साथ इंटीग्रेशन है। मिसाल के लिए, इंडियन कंसुलेट अब नए रूल्स के तहत सख्ती कर रहा है, लेकिन ‘जब्र’ से कोऑर्डिनेशन बेहतर हो गया। ट्रेनिंग भी दी जा रही है एक कम्पलीट शराउण्ड किट उपलब्ध है, और कब्रिस्तानों को अपग्रेड किया जा रहा है। अगर परिवार लोकल बरी करना चाहे, तो वह भी आसान। लेकिन ज्यादातर एक्सपैट्स शव घर भेजना पसंद करते हैं, सांस्कृतिक कारणों से। सिस्टम में स्मार्ट टेक्नोलॉजी है, जैसे ऑटोमेटेड नोटिफिकेशंस और डैशबोर्ड, जो डिसीजन लेना तेज करते हैं।
इस सिस्टम के फायदे बहुत सारे हैं। सबसे बड़ा फायदा समय की बचत। पहले प्रक्रिया में 2 हफ्ते लगते थे, अब 3-5 दिन में शव घर पहुंच सकता है। इससे परिवार का दुख कम होता है, क्योंकि जल्दी अंतिम संस्कार हो जाता। आर्थिक रूप से भी राहत – यूनिफाइड पेमेंट से एक्स्ट्रा चार्जेस नहीं लगते, और अगर परिवार गरीब है तो गवर्नमेंट हेल्प मिलती है। मानवीय पहलू मजबूत है। दुबई के ‘सिटी मेकर्स’ प्रोग्राम का हिस्सा होने से यह ह्यूमैनिटेरियन वैल्यूज को बढ़ावा देता। प्रवासियों के लिए खास – भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश से आने वाले मजदूरों को अब एजेंटों के चक्कर से मुक्ति। पहले एजेंट पैसे ऐंठते थे, अब ट्रांसपेरेंट प्रोसेस। पर्यावरण और हेल्थ के लिहाज से भी अच्छा है। वॉलंटियर्स की ट्रेनिंग से कम्युनिटी इन्वॉल्वमेंट बढ़ा। कुल मिलाकर, यह सिस्टम दुबई को और ह्यूमन फ्रेंडली बनाता है।
पुरानी प्रक्रिया की तुलना करें तो ‘जब्र’ एक क्रांति है। पहले, मौत के बाद बॉडी को मोर्चुअरी में रखना, फोरेंसिक चेक, फिर हॉस्पिटल से डेथ डिक्लेरेशन। पुलिस से सर्टिफिकेट, एमओएच से ट्रांजिट परमिट। कंसुलेट से पासपोर्ट कैंसल और एनओसी। एम्बाल्मिंग सर्टिफिकेट, एयरलाइन से कन्फर्मेशन। हर स्टेप में कागजात, फीस, और वेटिंग। अगर मौत हॉस्पिटल के बाहर हुई, तो ऑटोप्सी जरूरी, जो 2-3 दिन लेती। एयरलाइंस जैसे एयर इंडिया स्पेशल रूल्स रखतीं, लेकिन देरी होती। कॉस्ट – यूके के लिए 20-30 हजार दिरहम, भारत के लिए कम लेकिन फिर भी भारी। सोशल वर्कर्स मदद करते, लेकिन कंसुलेट ने 2024 में रूल्स टाइट किए, एजेंट घोटालों को रोकने के लिए। अब ‘जब्र’ में ये सब ऑटोमेटेड। डिजिटल प्लेटफॉर्म मौत रजिस्टर होते ही एक्टिवेट हो जाता। जीएसओ सब कोऑर्डिनेट करता।
प्रवासियों पर इसका असर गहरा है। दुबई में 8.5 मिलियन एक्सपैट्स हैं, ज्यादातर लो-इनकम वर्कर्स। वे कंस्ट्रक्शन, सर्विस सेक्टर में काम करते। हाई टेम्परेचर, लंबे घंटे से हेल्थ रिस्क हाई। हर साल 1000+ भारतीय मौतें। परिवार भारत में, पैसे कम। पुरानी सिस्टम में वे लोन लेते या चैरिटी पर निर्भर। अब ‘जब्र’ फ्री या लो-कॉस्ट मदद देता। इंडियन कंसुलेट के नए रूल्स से सोशल वर्कर्स की भूमिका सीमित, लेकिन ‘जब्र’ से गवर्नमेंट हैंडलिंग। पाकिस्तानी, फिलीपींस के लिए भी समान है।
एम्बेसी कोऑपरेशन से NOC तेज। एयरलाइंस को प्रायोरिटी। कुल मिलाकर, यह सिस्टम एक्सपैट कम्युनिटी की ट्रस्ट बढ़ाता। लोग बिना डर के काम करने आते। दुबई की इमेज ग्लोबल हब के रूप में मजबूत। भविष्य में यह सिस्टम और बेहतर हो सकता है । यह अभी लॉन्च हुआ है, तो फीडबैक लेंगे। ज्यादा लैंग्वेज सपोर्ट – हिंदी, उर्दू, अरबी। मोबाइल ऐप से रीयल-टाइम ट्रैकिंग। इंश्योरेंस इंटीग्रेशन, ताकि क्लेम आसान।
अन्य देशों से भी इसका कोलैबोरेशन होगा। लेकिन अभी का फॉर्म भी कमाल का है। दुबई सरकार का यह स्टेप दिखाता कि टेक्नोलॉजी दुख में भी साथ दे सकती। ‘जब्र’ से प्रक्रिया आसान है लेकिन जागरूकता जरूरी। यह सिस्टम न सिर्फ शव भेजने का, बल्कि पूरे बेरिवमेंट सर्विसेज का है। कंडोलेंस अरेंजमेंट्स, एस्टेट मैनेजमेंट, सब कवर है। दुबई कोर्ट्स का प्रोएक्टिव फाइल ओपनिंग इनहेरिटेंस को स्पीडअप।
यूनिफाइड पेमेंट से ट्रांजेक्शन कम। स्मार्ट डैशबोर्ड डिसीजन मेकिंग को तेज। कुल मिलाकर, ‘जब्र’ एक होलिस्टिक सॉल्यूशन। यह दुबई को कंपैशनेट सिटी बनाता। प्रवासियों के लिए, जो अपना घर छोड़कर आते, यह एक सांत्वना है और बेहद बेहतर कदम माना जा रहा है।



