चैतर वसावा ने किया स्कूल का दौरा, बच्चों की पढ़ाई को लेकर वसावा ने दिया जोर

गुजरात के आदिवासी इलाकों की तस्वीर अक्सर दो हिस्सों में बंटी दिखाई देती है। एक तरफ सरकारी रिपोर्टें हैं, जो यह दावा करती हैं कि गाँवों में शिक्षा की रोशनी पहुँच चुकी है, हर बच्चे के हाथ में किताब है, हर स्कूल में कमरे और बेंच हैं।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: गुजरात के आदिवासी इलाकों की तस्वीर अक्सर दो हिस्सों में बंटी दिखाई देती है। एक तरफ सरकारी रिपोर्टें हैं, जो यह दावा करती हैं कि गाँवों में शिक्षा की रोशनी पहुँच चुकी है, हर बच्चे के हाथ में किताब है, हर स्कूल में कमरे और बेंच हैं।

दूसरी तरफ ज़मीनी हकीकत है, जहां कई बार बच्चे आज भी आधे-अधूरे संसाधनों के साथ पढ़ने को मजबूर हैं। इन्हीं दो तस्वीरों के बीच सागबारा तालुका का पट गांव स्थित प्राइमरी स्कूल और आंगनवाड़ी भी आता है। इसी स्कूल में आज MLA चैतार वसावा पहुँचते हैं। यह उनका वोट क्षेत्र भी है, और उनका सबसे बड़ा राजनीतिक वादा भी – कि आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले, ताकि आने वाली पीढ़ी सिर्फ मज़दूरी तक सीमित न रहे, बल्कि डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, अधिकारी बनकर अपनी किस्मत खुद लिखे।

सुबह की धूप में स्कूल का प्रांगण बच्चों की आवाज़ों से भरा है। कुछ बच्चे मैदान में खेल रहे हैं, कुछ अपनी कॉपी में कुछ लिखने में मग्न हैं, और कुछ आंगनवाड़ी के कमरे में बैठकर रंग-बिरंगी किताबों के चित्र देख रहे हैं। तभी स्कूल के मुख्य गेट पर चैतार वसावा की गाड़ी रुकती है। साथ में कुछ स्थानीय कार्यकर्ता, पंचायत प्रतिनिधि और गांव के लोग भी मौजूद हैं।

चैतार वसावा जैसे ही स्कूल के अंदर आते हैं, बच्चे उत्सुकता से उनकी तरफ देखने लगते हैं। कई बच्चों ने उन्हें सिर्फ पोस्टर और मोबाइल की स्क्रीन पर देखा था, आज पहली बार अपने स्कूल में सामने देखकर उनके चेहरे पर अलग ही चमक दिखती है। शिक्षक उन्हें रिसीव करते हैं, और स्कूल की स्थिति के बारे में संक्षेप में बताते हैं – कितनी कक्षाएं हैं, कितने विद्यार्थी हैं, किन क्लासों में टीचर की कमी है, और किन सुविधाओं की ज़रूरत अभी भी बाकी है।

चैतार वसावा किसी मंत्री की तरह सिर्फ औपचारिक बातें कहकर आगे नहीं बढ़ते, वे बच्चों के बीच घुलने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले वे आंगनवाड़ी के कमरे में जाते हैं, जहां छोटे-छोटे बच्चे फर्श पर बैठकर कविता और अल्फाबेट बोल रहे हैं। वे एक छोटे से बच्चे के पास बैठ जाते हैं, उससे उसका नाम पूछते हैं, फिर उससे कहते हैं
अच्छा, मुझे अपनी पसंद की कविता सुनाओ।

बच्चा घबराते हुए शुरू करता है, लेकिन जैसे-जैसे पूरी कविता बोलता जाता है, कमरे में बैठे बाकी बच्चों की आंखों में भी चमक आ जाती है। चैतार वसावा ताली बजाते हैं और कहते हैं, “बहुत बढ़िया, इसी तरह रोज़ पढ़ना, तुम सबको आगे जाकर अफसर बनना है।” इसके बाद वे प्राइमरी स्कूल की कक्षा में जाते हैं। बोर्ड पर आज का पाठ लिखा है, और कुछ चार्ट दीवार पर टंगे हैं। वे बच्चों से सवाल पूछते हैं – कौन-कौन रोज़ स्कूल आता है, किसे कौन सा विषय पसंद है, और कौन आगे चलकर क्या बनना चाहता है।

एक लड़की खड़ी होकर कहती है कि वह शिक्षक बनना चाहती है। चैतार वसावा उसकी बात ध्यान से सुनते हैं और कहते हैं, अगर गांव की बेटियां खुद टीचर बनेंगी, तो हमारे गांवों की किस्मत बदल जाएगी। तुम मन लगाकर पढ़ाई करो, बाकी जिम्मेदारी सिस्टम को निभानी होगी, और वह जिम्मेदारी निभाने के लिए हम यहां हैं।

फिर वे स्कूल के बरामदे में खड़े होकर एक छोटी सी मीटिंग करते हैं। वहां पंचायत के प्रतिनिधि, गांव के बुजुर्ग, माताएं और स्कूल के शिक्षक बैठे हैं। चैतार वसावा उनसे साफ-साफ पूछते हैं कि स्कूल की सबसे बड़ी समस्या क्या है। कोई कहता है कि एक कमरा और बन जाए तो बच्चों को बैठने में परेशानी नहीं होगी। कोई पानी की टंकी की बात करता है। कोई कहता है कि खेल के सामान की कमी है।

चैतार वसावा एक-एक बात को नोट करते हैं और कहते हैं, अगर हम बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दे पाए, तो यह हमारी राजनीति की असली नाकामी होगी। मैं वादा करने नहीं आया, मैं काम करके दिखाना चाहता हूं। आप सबकी जो भी जरूरी ज़रूरतें हैं, उन्हें लिखित में देकर मुझे दीजिए, मैं उसे सरकार के सामने मजबूती से रखूंगा।”

इस विज़िट का सबसे बड़ा हिस्सा वह है, जब वे स्कूल के मैदान में बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करते हैं। वे बच्चों से पूछते हैं कि क्या वे अपने स्कूल से खुश हैं, क्या उन्हें कोई डर या दिक्कत होती है, क्या टीचर उन्हें प्यार से पढ़ाते हैं या नहीं। एक बच्चा कहता है कि स्कूल आने के लिए उसे रोज़ लंबा रास्ता पैदल तय करना पड़ता है, लेकिन फिर भी वह आता है, क्योंकि उसे पढ़ाई अच्छी लगती है। चैतार वसावा उसकी पीठ थपथपाते हैं और कहते हैं, तुम्हारा यह हौसला ही इस गांव की ताकत है। हम कोशिश करेंगे कि तुम्हें स्कूल तक आने-जाने में भी सुविधा मिले।

स्कूल के बाद वे आंगनवाड़ी की व्यवस्था को नज़दीक से देखते हैं। वे पोषण आहार की क्वालिटी, बच्चों का वजन, रजिस्टर और बाकी कागज़ात भी देखते हैं। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता उन्हें बताती हैं कि कई बार बजट और सामान समय पर नहीं पहुंचता, जिससे बच्चों को पूरा लाभ नहीं मिल पाता। चैतार वसावा साफ शब्दों में कहते हैं, अगर कागज़ों में सबकुछ ठीक दिखे और जमीन पर बच्चे कुपोषित रहें, तो विकास का दावा झूठा हो जाता है। इसलिए मैं खुद यहां आया हूं, ताकि जो कमी है, उसे खुलकर सबके सामने रख सकूं।

यह दौरा सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए नहीं, बल्कि एक संदेश भी है कि विधायक का मतलब सिर्फ चुनाव के समय वोट मांगने वाला नेता नहीं होना चाहिए, बल्कि वह गांव के हर बच्चे के भविष्य की जिम्मेदारी लेने वाला प्रतिनिधि हो। वह बच्चों को संबोधित करते हुए कहते हैं, आपमें से कई बच्चे ऐसे घरों से आते हैं जहां रोज़ी-रोटी की लड़ाई सबसे बड़ी चिंता है। लेकिन मैं चाहता हूं कि आप सबकी सबसे बड़ी चिंता पढ़ाई हो। आप मन लगाकर पढ़िए, बाकी चीज़ों के लिए मैं और मेरी टीम आपके साथ हैं। अगर किसी स्कूल में शिक्षक की कमी है, अगर कहीं बिल्डिंग टूटी है, या किसी बच्चे को स्कॉलरशिप नहीं मिली है, तो आप बेझिझक हमें बताइए।

वे यह भी याद दिलाते हैं कि शिक्षा सिर्फ सरकारी स्कूल की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। वे गांव के माता-पिता से कहते हैं, आप अपने बच्चों को खेतों और मजदूरी पर मत भेजिए। हो सकता है कि आज थोड़ा नुकसान लगे, लेकिन जब यही बच्चे पढ़-लिखकर आगे बढ़ेंगे, तो पूरा परिवार और पूरा गांव तरक्की करेगा।

राजनीति के इस दौर में जहां बड़े-बड़े मंचों पर नारे और भाषण ज़्यादा दिखते हैं, चैतार वसावा का यह शांत, जमीन से जुड़ा दौरा अलग मैसेज देता है। यहां कोई बड़े पोस्टर नहीं, कोई भारी-भरकम सुरक्षा नहीं, बस एक विधायक है जो बच्चों के बीच खड़ा होकर उनसे पूछ रहा है तुम्हें क्या चाहिए ताकि तुम आगे पढ़ सको? जाने से पहले वे स्कूल के मुख्य दरवाजे के बाहर बच्चों के साथ एक ग्रुप फोटो लेते हैं। बच्चे उत्साह से उनके पास खड़े हो जाते हैं। किसी के हाथ में कॉपी है, किसी के हाथ में बैग, किसी के चेहरे पर हल्की झिझक, तो किसी के चेहरे पर खुली मुस्कान।

यह फोटो सोशल मीडिया पर तो कुछ ही घंटों में वायरल हो जाती है, लेकिन असली असर उन बच्चों के दिलों में दिखता है, जो यह महसूस करते हैं कि उनकी आवाज़ किसी बड़े नेता तक पहुंच सकती है। चैतार वसावा जाते-जाते एक बार फिर स्कूल के स्टाफ से कहते हैं, आप लोग सिर्फ पढ़ा ही नहीं रहे, आप आने वाली पीढ़ी तैयार कर रहे हैं। मैं चाहता हूं कि यह स्कूल हमारे क्षेत्र के लिए मिसाल बने। जो भी जरूरत होगी, उसके लिए हम मिलकर संघर्ष करेंगे।”

आदिवासी पट्टी में यह दौरा शिक्षा के मुद्दे को फिर से केंद्र में लाता है। जब विधायक खुद स्कूल के फर्श पर बैठकर बच्चों की कॉपी देखते हैं, तो यह संदेश जाता है कि विकास की असली परीक्षा कांक्रीट के पुलों और चौड़ी सड़कों से नहीं, बल्कि क्लासरूम की बेंच और ब्लैकबोर्ड से होती है।

आज का दिन पट गांव के लिए सिर्फ एक साधारण दौरा नहीं, बल्कि यह याद दिलाने वाला दिन है कि अगर जनप्रतिनिधि ईमानदारी से चाहें, तो राजनीति और शिक्षा मिलकर बच्चों का भविष्य बदल सकते हैं। और शायद इसी उम्मीद पर यह पूरा इलाका टिका हुआ है कि उनके MLA सिर्फ विधानसभा में भाषण देने वाले नेता नहीं, बल्कि गांव के स्कूल तक पैदल चलकर आने वाले साथी भी हैं।

Related Articles

Back to top button