चैतर वसावा ने मोदी के खोल दिए धागे, BJP की ईस्ट इंडिया कंपनी से की तुलना

चैतर वसावा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी पर गंभीर सवाल उठाते हुए पार्टी की आर्थिक स्थिति...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात के आप विधायक चैतर वसावा ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी… और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी पर जोरदार हमला बोला है.. वसावा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि भाजपा की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई थी.. मात्र 44 सालों में यह पार्टी… जो खुद को ‘अलग चाल-चरित्र’ वाली बताती है.. उसने अपने बैंक बैलेंस को 10 हजार करोड़ से ज्यादा तक पहुंचा चुकी है.. और उन्होंने 2004 में भाजपा के खाते में मात्र 88 करोड़ होने का जिक्र किया.. जो 2024 तक बढ़कर 10,107 करोड़ हो गया.. वसावा ने सवाल उठाया कि जब देश की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है.. विदेशी निवेश सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है.. रुपया कमजोर हो रहा है.. और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर डूब रहा है.. तो भाजपा का पैसा आखिर कहां से इतना बढ़ रहा है.. और उन्होंने भाजपा की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से की.. जो ब्रिटिश काल में व्यापार के नाम पर भारत को लूटने का प्रतीक बनी..

वहीं यह बयान राजनीतिक बहस का नया केंद्र बन गया है.. विपक्षी दल इसे ‘कॉरपोरेट दबाव’ का सबूत बता रहे हैं… जबकि भाजपा इसे ‘जन समर्थन’ की जीत कह रही है.. लेकिन तथ्यों की पड़ताल करें तो वसावा का दावा काफी हद तक सही साबित होता है.. भारत निर्वाचन आयोग के आंकड़ों से साफ है कि.. भाजपा की वित्तीय ताकत ने रफ्तार पकड़ ली है..

आपको बता दें कि भाजपा की कहानी 1980 से शुरू होती है.. 6 अप्रैल को गुजरात के वडोदरा में स्थापित यह पार्टी भारतीय जनसंघ के अवशेषों से बनी थी.. शुरुआती सालों में इसका फोकस हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर था.. लेकिन वित्तीय रूप से यह कमजोर थी.. 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को महज 2 सीटें मिलीं.. और उसके फंड्स भी सीमित थे.. लेकिन 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन.. और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में यह मजबूत हुई.. 1998-2004 तक केंद्र में सत्ता में रहने के बाद भी.. 2004 के चुनाव हारने पर पार्टी के खाते में सिर्फ 87.96 करोड़ बचे थे.. वहीं तुलना के लिए, उस समय कांग्रेस के पास 38.48 करोड़ थे..

ईसीआई के वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट्स से पता चलता है कि भाजपा की फंडिंग धीरे-धीरे बढ़ी.. 2009 के चुनाव बाद उसके पास 150 करोड़ थे.. जबकि कांग्रेस के पास ₹221 करोड़ ही खाते में थे.. लेकिन 2014 के बाद.. जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए.. तो ग्राफ आसमान छूने लगा.. और 2019 के बाद 3,562 करोड़ और 2024 के बाद 10,107.2 करोड़ हो गया.. यह वृद्धि 115 गुना है.. यानी 2004 के मुकाबले 11384% की छलांग लगा चुका है.. कांग्रेस का बैलेंस उसी अवधि में सिर्फ 3.5 गुना बढ़कर 133.97 करोड़ पहुंचा…

विपक्षी नेता अजय माकन ने हाल ही में राज्यसभा में इसे ‘असमान खेल का मैदान’ बताया.. और उन्होंने कहा कि भाजपा के पास 75 गुना ज्यादा पैसा है.. जो लोकतंत्र के लिए खतरा है.. माकन के आंकड़े ईसीआई के ही हैं.. जो पार्टियों को चुनाव खर्च रिपोर्ट जमा करने के लिए बाध्य करता है.. भाजपा की फंडिंग का सबसे बड़ा राज 2018 में लॉन्च हुए इलेक्टोरल बॉन्ड्स में छिपा है.. यह स्कीम दानदाताओं को गुमनाम रहने की सुविधा देती थी.. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया.. फिर भी, इससे पहले भाजपा को कुल बॉन्ड्स का 57% हिस्सा मिला.. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023-24 में भाजपा को 2,243 करोड़ के दान मिले… जो कांग्रेस के 281 करोड़ से सात गुना ज्यादा थे..

वहीं कई कंपनियां ईडी/सीबीआई छापों के बाद भाजपा को दान देती रहीं.. उदाहरण के लिए, डीएलएफ ग्रुप ने वड्रा लैंड डील क्लीन चिट मिलने के ठीक बाद 2019-2022 में 170 करोड़ के बॉन्ड्स खरीदे.. इसी तरह, सीएम रमेश की कंपनी ने हिमाचल के सननी डैम प्रोजेक्ट का ठेका लेने के बाद 45 करोड़ के बॉन्ड्स खरीदे.. विपक्ष इसे ‘वॉशिंग मशीन’ कहता है.. जहां आरोपी दान देकर साफ हो जाते हैं.. 2023-24 के ईसीआई डेटा से भाजपा का कुल कैश और बैंक बैलेंस 7,113.80 करोड़ था… जबकि कांग्रेस का 857.15 करोड़ था.. इसी के साथ व्यय भी बढ़ा 2023-24 में 1,754 करोड़ खर्च हुए.. जो पिछले साल से 60% ज्यादा है..

आपको बता दें कि वसावा ने बैंक बैलेंस के अलावा जमीन, पांच सितारा ऑफिस, बॉन्ड्स और शेयरों का जिक्र किया.. ईसीआई रिपोर्ट्स में भाजपा के कुल एसेट्स 9,18,115 लाख बताए गए हैं.. इसमें 11, अशोक रोड, नई दिल्ली का मुख्यालय शामिल है,, जिसकी कीमत अरबों में है.. पार्टी के पास देशभर में सैकड़ों ऑफिस, प्रशिक्षण केंद्र और जमीनें हैं..

मायनेटा.इनफो के अनुसार, भाजपा के पास म्यूचुअल फंड्स, शेयर और बॉन्ड्स में भारी निवेश है.. नेताओं के व्यक्तिगत एसेट्स में भी यह झलकता है.. जैसे जितिन प्रसाद के पास 29 करोड़ के एसेट्स, जिसमें बॉन्ड्स और शेयर शामिल है.. लेकिन पार्टी स्तर पर अनुमान लगाना मुश्किल है.. वसावा का 10-20 हजार करोड़ का दावा अतिशयोक्ति हो सकता है.. लेकिन ईसीआई के आंकड़े भी बताते हैं कि गैर-बैंक एसेट्स हजारों करोड़ के हैं.. प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट जैसे ट्रस्ट्स से 2024-25 में 915 करोड़ के 83% भाजपा को गए..

वसावा का सबसे तीखा सवाल यही है कि जब देश की आर्थिक हालत खराब है.. तो भाजपा का पैसा कैसे बढ़ रहा है.. बता दें कि 2024-25 में नेट एफडीआई 96% गिरकर मात्र 353 मिलियन डालर रह गया.. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डेटा से साफ है कि 2020-21 में 44 बिलियन डालर था.. जो अब लगभग शून्य हो गया है.. जिसका कारण विदेशी निवेशक पैसे निकाल रहे हैं.. डिसइन्वेस्टमेंट 50% बढ़ा है.. ग्रॉस एफडीआई 81 बिलियन डालर रहा, लेकिन नेट नेगेटिव है…

वहीं रुपया भी कमजोर पड़ा.. 2024 के अंत में डॉलर के मुकाबले रूपया 83-84 पर पहुंचा.. जो निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए था.. लेकिन निर्यात सिर्फ 0.51% बढ़ा.. अप्रैल-अक्टूबर 2025 में 253.94 बिलियन डालर.. जिसका कारण वैश्विक मंदी, अमेरिकी टैरिफ और सप्लाई चेन की समस्या थी..

आपको बता दें कि 2024-25 में 4.26% ग्रोथ हुई.. जो 2023-24 के 1.4% से बेहतर है.. लेकिन एफडीआई का मात्र 12% हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग को मिला.. ‘मेक इन इंडिया’ के बावजूद, इंफ्रास्ट्रक्चर गैप और पॉलिसी अनिश्चितता ने निवेश रोका.. जीडीपी ग्रोथ 6.4% रहने का अनुमान है.. जो पिछले साल से 2% कम है.. डेलॉइट की रिपोर्ट कहती है कि उपभोक्ता मांग कमजोर है.. और वैश्विक ट्रेड वॉर से जोखिम बढ़ा है..

ऐसे में भाजपा का फंडिंग ग्रोथ सवाल तो बनता है.. विशेषज्ञ कहते हैं कि कॉरपोरेट दबाव और टैक्स छूट से यह संभव हुआ.. नेशनल हेराल्ड की रिपोर्ट में कहा गया कि ठेकेदार.. और बड़े बिजनेस भाजपा के प्रति आकर्षित हैं.. चैतर वसावा गुजरात के डेडियापाड़ा से आप के विधायक हैं.. आदिवासी पृष्ठभूमि से आने वाले वसावा ने 2022 में भाजपा से बगावत की और आप जॉइन किया.. उनका यह बयान मोदी पर व्यक्तिगत हमला लगता है.. लेकिन व्यापक मुद्दे को छूता है.. कांग्रेस, आप और तृणमूल जैसे दल इसे ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ कह रहे है.. उद्धव ठाकरे ने हाल ही में कहा कि बिहार में भाजपा की रैलियों पर 20,000 करोड़ खर्च हुए है…

 

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