फिर निकला महिला आरक्षण विधेयक का जिन्न
बीआरएस नेता कविता ने उठाया मुद्दा
- 27 साल से है ठंडे बस्ते में, 2010 में यूपीए ने लोस में किया था पेश
- भाजपा ने नही पूरा किया वादा, केंद्र पर दबाव बनाने की रणनीति
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। एकबार फिर महिला आरक्षण का मुद्दा सियासी माहौल में छाने लगा है। अबकि बीआरएस की नेता व तेलंगाना के सीएम केसीआर की बेटी के. कविता ने यह मामला उछाल दिया है। इस मुद्दे को लेकर उन्होंने हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिन का भूख हड़ताल भी किया। सबसे बड़ी बात उनके साथ 17 दलों के नेता भी शामिल हुए। इस मुद्दे को उठाकर बीआरएस ने राजनैतिक दांव चल दिया। उसकी नजर 2024 लोक सभा चुनाव पर है। इसी बहाने वह सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाकर केंद्र की मोदी सरकार को पटखनी देने का सपना भी देख रही है। इसी के साथ आधी आबादी के वोटों को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटीं हैं।
विपक्षी पार्टियों ने इस विधेयक को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। विपक्षी दल का कहना है कि 13 मार्च से शुरू हो रहे संसद बजट सत्र के दूसरे चरण में ही महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में पास किया जाए। जिससे कि महिलाओं को उनका अधिकार मिल सके। भारतीय संसद में प्रस्तुत किया गया महिला आरक्षण विधेयक वह विधेयक है, जिसके पारित होने से संसद में 33 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित हो जाएगी। हालांकि पिछले प्रयासों में यह विधेयक पारित नहीं हो सका। लेकिन इस बार सभी दल इसके समर्थन में दिख रहे हैं। महिला आरक्षण विधेयक को लेकर एक बार फिर पूरे देश में चर्चा शुरू हो गई है। केंद्र सरकार पर इस विधेयक के लिए दबाव बनाया जा रहा है। यह विधेयक संविधान के 85वें संशोधन का विधेयक है। इस विधेयक के पास होने के बाद लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत का आरक्षण मिलने का प्रावधान है।
1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार पहली बार लाई थी विधेयक
बता दें कि लोकसभा और सभी राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए इस विधेयक के जरिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना का प्रावधान किया गया है। सबसे पहले साल 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार ने इस महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में पास किया था। हालांकि तब यह विधेयक पारित नहीं हो सका था। वहीं साल 2010 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दौरान इस विधेयक को लोकसभा में मंजूरी के लिए भेजा गया था। जिसके बाद से यह विधेयक ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। पिछले कुछ सालों में कई दलों ने इस विधेयक को पारित कराने का प्रयास किया। लेकिन इसके बावजूद भी ये बिल पिछले 27 साल से लंबित है।
मोदी ने भी किया था वादा
साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी सरकार में इस विधेयक को लाने का वादा किया था। वहीं बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्र में महिला आरक्षण विधेयक का जिक्र थी। लेकिन मोदी सरकार बहुमत होने के बावजूद इस विधेयक को संसद में पारित कराने में विफल रही है। राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए इस विधेयक का पास होना जरूरी है। अलग-अलग विचारधाराओं के कारण यह विधेयक लंबे समय के लिए अटका रह गया। हालांकि इस विधेयक को पास करवाने के लिए कई दलों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिवसीय भूख हड़ताल की है।