संवैधानिक पद : सत्ता की हनक का साधन

आठ-दस सालों में विवाद की जद में आए ऐसे पद

  • सीबीआई, चुनाव आयोग, ईडी या आयकर का होता है इस्तेमाल
  • अब राज्यसभा सभापति पर लगे आरोप
  • निजी स्टाफ को स्टैंडिंग कमिटियों से जोड़े जाने पर मचा हल्ला

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का विवाद में रहना कोई नई बात नहीं है। लेकिन पिछले आठ-दस सालों में इन लोगों का विवाद में आना जैसे आमबात हो गई। सीबीआई, चुनाव आयोग, ईडी या आयकर विभाग इन सबका विवाद से जैसे यारना हो गया है। अभी हाल में विवाद की जद में राज्यसभा के सभापति आ गए हैं। हालांकि देखने में आया है कि सत्तारुढ़ दलों के आगे इन संवैधानिक पदों की मजबूरी भी होती है जैसा उनके आका कहते हैं वैसा ही वो करते हैं। सबसे ज्यादा इन एजेंसियों के शिकार विपक्ष के नेता बनते हैं। यहीं कारण है विवादों की वजह से सियासी संग्राम मच जाता है।
गौरतलब हो कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के निजी स्टाफ को संसद की 12 स्टैंडिंग कमिटियों और 8 विभागीय स्टैंडिंग कमिटियों से जोड़े जाने को लेकर विपक्ष ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दर्ज कराई थी। यह अनावश्यक विवाद ऐसे समय उभर आया है जब देश में लोकतांत्रिक परंपराओं और मूल्यों को कथित तौर पर कमजोर किए जाने को लेकर पहले से ही बहस चल रही है। ताजा फैसले की जानकारी देते हुए राज्यसभा सचिवालय की ओर से कहा गया कि संबंधित अफसरों को तत्काल प्रभाव से और नया निर्देश जारी होने तक के लिए इन कमिटियों से जोड़ा गया है। निर्देश के मुताबिक ये अफसर उन कमिटियों के कामकाज में सहायता देंगे। जाहिर है, इस कामकाज में वे बैठकें भी शामिल हैं, जिनकी प्रकृति गोपनीय मानी जाती है। स्वाभाविक ही विपक्षी दल इस पर एतराज कर रहे हैं। कई विशेषज्ञ भी इस कदम को संसद की मान्य परंपराओं और नियमों के खिलाफ बता रहे हैं। ऐसा पहली बार ही हुआ है कि राज्यसभा सभापति के स्टाफ मेंबर्स को इन कमिटियों से जोड़ा गया है। ये जिम्मेदारियां लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय के अफसरों को ही दी जाती रही हैं।

जयराम रमेश ने कहा था अंपायर बने सभापति

नई दिल्ली। कांग्रेस ने राहुल गांधी की आलोचना को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर हमला बोला। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि राज्यसभा के सभापति को अम्पायर की भूमिका में होना चाहिए, वह किसी सत्तारूढ़ व्यवस्था का चीयरलीडर नहीं हो सकते हैं। कांग्रेस ने यह प्रतिक्रिया तब दी जब धनखड़ ने राहुल गांधी के संसद में विपक्ष का माइक बंद किए जाने के बयान की कड़ी आलोचना की। बता दें कि धनखड़ ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की परोक्ष रूप से आलोचना करते हुए कहा कि विदेशी धरती से यह कहना मिथ्या प्रचार और देश का अपमान है कि भारतीय संसद में माइक बंद कर दिया जाता है। जयराम रमेश के अनुसार, राहुल गांधी के बारे में उपराष्ट्रपति का बयान हैरान करने वाला है तथा उन्होंने सरकार का बचाव किया जो निराशाजनक है। उन्होंने कहा राहुल गांधी पर उपराष्ट्रपति का बयान चौंकाने वाला है, क्योंकि भारत के उपराष्ट्रपति का कार्यालय संविधान से बंधा होता है और वह राज्यसभा के सभापति के रूप में अपनी अतिरिक्त जिम्मेदारियां निभाते हैं। लेकिन यहां कई कार्यालय ऐसे हैं जिन्हें अपने दुराग्रह छोडऩे चाहिए।

उपराष्ट्रपति कार्यालय ने दिया स्पष्टीकरण

हालांकि उपराष्ट्रपति कार्यालय की ओर से तो स्पष्टीकरण दिया ही गया है। खुद धनखड़ ने भी एक कार्यक्रम के दौरान सार्वजनिक तौर पर इस मसले का जिक्र करते हुए बताया कि इसके पीछे कोई गलत इरादा नहीं है। मकसद सिर्फ यह सुनिश्चित करना था कि संसदीय समितियों में मानव संसाधन की कमी न हो। तैनाती भी ऐसे अफसरों की ही की गई है जो रिसर्च और डिवेलपमेंट से जुड़े कार्यों में कुशल माने जाते रहे हैं। लेकिन सवाल इरादों से ज्यादा तरीके को लेकर है। अगर इन संसदीय समितियों में मानव संसाधन की कमी महसूस हो रही थी तो समितियों की तरफ से सभापति को अनुरोध भेजा जाना चाहिए था। कांग्रेस नेता जयराम रमेश सहित अलग-अलग समितियों से जुड़े विपक्ष के कई नेताओं ने कहा कि समितियों में मानव संसाधन की कमी नहीं थी। फिर भी अगर उपराष्ट्रपति को अपने स्तर पर ऐसी कोई सूचना मिली थी या जरूरत महसूस हो रही थी तो संसदीय परंपराओं से हटकर कदम उठाने से पहले विपक्ष से बातचीत करके उसे विश्वास में लेना चाहिए था। आखिर संसदीय लोकतंत्र की गाड़ी तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के दोनों पहियों के सहारे ही आगे बढ़ती है। इस कदम ने दोनों पक्षों के बीच पहले से ही मौजूद तनाव और अविश्वास को और बढ़ा दिया है। इससे आसानी से बचा जा सकता था। विपक्ष के तेवर को देखते हुए ऐसा लगता नहीं है कि वह इस फैसले को स्वीकार करेगा। यानी सोमवार से संसद में इस मसले पर भी विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तकरार सामने आ सकती है। देखना होगा कि इसमें सुलह का कौन सा फॉर्म्युला कैसे और कब तक निकलता है।

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