6 महीने में ऑयल कंपनियों को करोड़ों का मुनाफा, आम लोगों को अभी नहीं मिलने वाला फायदा
नई दिल्ली। अगर आप इस सोच के साथ बैठे हैं कि ऑयल कंपनियों का प्रोफिट बढ़ गया है और आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीजल सस्ता होने जा रहा है तो आपकी सबसे बड़ी भूल हो सकती है। जी हां, जानकारों का कहना है कि पेट्रोल और डीजल के दाम में इस साल के अंत फ्यूल के दाम में कटौती की कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही है। वास्तव में जिस तरह से साउदी और रूस ऑयल प्रोडक्शन की कटौती का ऐलान किया है, उसका असर आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है। इराक पर लगे प्रतिबंधों में ढील मिलने की कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही है। अमेरिका में स्टॉर्म का दौर चलना शुरू हो जाएगा, जिसका इंपैक्ट ऑयल प्रोडक्शन पर पड़ेगा और जियो पॉलिटिकल टेंशन के साथ मंदी की संभावनाओं की वजह से क्रूड ऑयल की कीमतों में तेजी की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में आम लोगों को पेट्रोल और डीजल के सस्ता होने के मौजूदा वित्त वर्ष की चौथी तिमाही का इंतजार करना पड़ सकता है।
अनुमान है कि इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने अप्रैल-जून तिमाही में हेल्दी रिफाइनिंग मार्जिन के साथ पंपों पर बेचे गए प्रत्येक लीटर पेट्रोल और डीजल पर 8-9 रुपये का मुनाफा कमाया है। यह मुनाफा इसलिए देखने को मिला है क्योंकि फ्यूल के दाम साल से भी ज्यादा समय से फ्रीज हैं और इंटरलेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें पिछले साल के मुकाबले काफी कम हो गई हैं।
पिछली तिमाही की तुलना में अप्रैल-जून तिमाही में पेट्रोल और डीजल पर रिटेल मार्जिन में तेजी से उछाल आया। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने कहा कि यह 7।7-9 डॉलर प्रति बैरल के ग्रॉस रिफाइनिंग मार्जिन (नेट विंडफॉल टैक्स, अनुमानित इन्वेंट्री लॉस और रूसी क्रूड ऑयल कॉस्ट बेनिफिट) के साथ मिलकर तीनों ऑयल कंपनियों के प्रोफिट को बढ़ाने में मदद करेगा।
ब्रोकरेज ने कहा कि अनुमान है कि ओएमसी ने अप्रैल-जून तिमाही में 22,100 करोड़ का ज्वाइंट प्रॉफिट कमाया है, जो जनवरी-मार्च अवधि में 20,800 करोड़ रुपये से ज्यादा है। इसका मतलब है कि कैलेंडर वर्ष में ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को 44,900 करोड़ रुपये का प्रोफिट हुआ है। एक साल पहले की अप्रैल से जून तिमाही में तीनों कंपनियों को 18,500 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था।
ओएमसी ने अप्रैल-जून तिमाही में पेट्रोल की खुदरा सेल पर 9 रुपये प्रति लीटर का मार्जिन कमाया, जबकि जनवरी-मार्च अवधि में यह प्रोफिट 6।8 रुपये प्रति लीटर था। पिछले साल अप्रैल-जून तिमाही में पेट्रोल पर कंपनियों को 10।2 रुपये का नुकसान हुआ। अप्रैल-जून तिमाही में डीजल पर रिटेल मार्जिन जनवरी-मार्च अवधि में 50 पैसे प्रति लीटर से बढक़र 8।6 रुपये प्रति लीटर हो गया और पिछले वर्ष की अप्रैल-जून अवधि में 12।50 रुपये का नुकसान हुआ था।
इस बारे में कमोडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया कहते हैं कि मौजूदा समय में डॉलर के मुकाबले रुपये की हालत काफी प?तली है। बीते तीन दिनों में रुपया 70 पैसे टूट चुका है। वहीं दूसरी ओर इंटरनेशनल फैक्टर्स काम कर रहे हैं। जियो पॉलिटिकल टेंशन के अलावा रूस और साउदी अरब ने जो क्रूड ऑयल प्रोडक्शन कट का ऐलान किया है उसकी वजह से कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा होना शुरू हो गया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने अभी इराक से प्रतिबंध नहीं हटाया है। जिसकी वजह से नई सप्लाई मार्केट नहीं आ रही है। अमेरिका में स्टॉर्म का मौसम भी आने वाला है, वजह से ऑयल प्रोडक्शन में कटौती देखने को मिल सकती है। इन्हीं वजह से आने वाले महीनों में क्रूड ऑयल के दाम 85 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं। ऐसे में पेट्रोल और डीजल के सस्ते होने की कोई संभावना नहीं है।
वहीं दूसरी ओर इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत बात करें तो 77 डॉलर प्रति बैरल के करीब पर है। ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम में 41 सेंट्स की तेजी देखने को मिल रही है। वहीं दूसरी ओर डब्ल्यूपीआई के दाम 72 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा पर कारोबार कर रहा है। इस साल की बात करें तो ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम में करीब 11 फीसदी की गिरावट देखने को मिल चुकी है। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी क्रूड ऑयल के दाम में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट देखने को मिल चुकी है। जानकारों की मानें तो जल्द क्रूड ऑयल के दाम करीब एक साल के हाई पर पहुंच सकते हैं। इस साल ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम 85 डॉलर प्रति बैरल पर नहीं पहुंचे हैं। अगर पहुंचते हैं तो यह पहली बार होगा।
भले ही भारत का रूसी ऑयल इंपोर्ट लगातार बढ़ रहा हो, लेकिन देश के पास ऑयल रिजर्व 3 महीने का ही है। अजय केडिया कहते हैं कि अमूमन भारत के पास तीन महीने का बफर रहता है। वैसे भी भारत ऑयल को अमेरिका और यूरोप में एक्सपोर्ट भी कर रहा है। इसके अलावा जुलाई या फिर अगस्त से परिस्थितियों में बदलाव देखने को मिल सकता है। रूस से कच्चे तेल का आयात कम होने की संभावना जताई जा रही है, कारण है प्रोडक्शन कट और सप्लाई कम होना। ऐसे में भारत को फिर मिडिल ईस्ट की ओर मूव करना होगा और अक्चुअल प्राइस पर खरीदना होगा। ऐसे में ऑयल कंपनियां ऐसे में समय में अपने बफर का इस्तेमाल नहीं करेगी। जानकारों की मानें तो कंपनियों को पता है कि इंटरनेशनल मार्केट में एक बार फिर से अस्थिरता देखने को मिल सकती है। ऐसे में कीमतों में बदलाव उन्हें आने वाले दिनों में भारी पड़ सकता है।