पार्टी में बढ़ती बगावत देख घबराई BJP, चुनाव आयोग के दर पर टेका माथा

बेंगलुरु। हर बीतते दिन के साथ लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तारीख करीब आती जा रही है। सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनावों के पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होना है। ऐसे में अब कुछ खास समय बाकी नहीं रह गया है। इसलिए पूरे देश में सियासी हलचल तेज हो गई है। और राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार भी पूरे चरम पर है। नेता लगातार एक-दूसरे पर हमला बोल रहे हैं और सियासी बयानवाजी कर रहे हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा एनडीए को 400 पार ले जाने की जुगत में लगी हुई है। तो वहीं अकेले अपनी 370 से अधिक सीटें जीतने का प्लान बना रही है।

हालांकि, भाजपा का ये प्लान और लक्ष्य वास्विकता व जमीनी हकीकत से परे नजर आता है। क्योंकि पिछले कुछ वक्त में देश में जैसा माहौल चल रहा है उसे देखकर भाजपा का ये लक्ष्य पाना या इसके करीब पहुंचना काफी मुश्किल दिखाई पड़ता है। वहीं विपक्षी नेताओं पर दबाव बनाना और ईडी, सीबीआई व इनकम टैक्स जैसी सरकारी एजेंसियों का गलत इस्तेमाल करके विपक्षी दलों के नेताओं को धमकाने और उन्हें गिरफ्तार करने से देश के अंदर भाजपा की छवि और भी बिगड़ी है। तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष इससे और भी मजबूत हुआ है। और लोगों की सिम्पैथी भी विपक्ष को मिलनी शुरू हो गई है। ऐसे में जितना-जितना चुनाव करीब आ रहा है, भाजपा के लिए मुश्किलें उतनी ही और भी बढ़ती जा रही हैं और उसका माहौल खराब होता जा रहा है।

वहीं अपने इस लक्ष्य के करीब पहुंचने के लिए भी भाजपा को दक्षिण भारत में अच्छा प्रदर्शन करके दिखाना पड़ेगा। क्योंकि उत्तर में तो बीजेपी को पीएम मोदी ने मजबूत किया है। लेकिन दक्षिण भारत में मोदी लहर या पीएम मोदी का कोई करिश्मा व जुमला काम नहीं आया है। तभी अभी तक भाजपा साउथ में जस की तस बनी हुई है। साउथ में भाजपा की जो कुछ उम्मीदें हैं वो कर्नाटक से ही हैं। भाजपा के लिए कर्नाटक साउथ का एंट्री गेट माना जाता है। लेकिन विधानसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। उससे लगता है कि अब भाजपा का ये एंट्री गेट भी बंद हो चुका है। और साउथ में अब बीजेपी के लिए प्रवेश या खुद को खड़ा कर पाना और भी मुश्किल हो गया है। इस बात को भाजपा भी जानती है कि विधानसभा चुनावों में मिली हार ने पार्टी को कर्नाटक में कमजोर बनाया है। इसीलिए भाजपा इस बार के चुनाव में कर्नाटक में और भी मेहनत कर रही है।

क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां शानदार प्रदर्शन करते हुए 28 में 25 सीटों पर कब्जा जमाया था। भाजपा इस बार भी अपने इसी प्रदर्शन को दोहराना चाहती है। लेकिन इस बार बीजेपी के लिए कर्नाटक की राह बहुत कठिन दिखाई पड़ रही है। कठिन इसलिए है क्योंकि एक ओर जहां कांग्रेस इस बार कर्नाटक में काफी मजबूत हुई है और प्रदेश की सत्ता पर भी काबिज है। तो वहीं दूसरी ओर भाजपा को उसके अपनों से ही चुनौती मिल रही है। दरअसल, टिकट बंटवारे में ज्यादा संख्या में मौजूदा सांसदों का टिकट काटे जाने से प्रदेश में भाजपा नेता ही पार्टी से नाराज चल रहे हैं और विरोध के अपने स्वर मुखर भी कर रहे हैं।

तो वहीं दूसरी ओर कुछ नेता तो बगावत पर ही उतर आए हैं। ऐसे में भाजपा के लिए इस बार कर्नाटक में कांग्रेस के साथ-साथ उसके अपने भी चुनौती खड़ी कर रहे हैं। तो वहीं अब तो लिंगायत समुदाय भी भाजपा के खिलाफ हो गया है। लिंगायत समुदाय के संत दिंग्लेश्वर महास्वामी ने भाजपा प्रत्याशी व मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे प्रह्लाद जोशी के खिलाफ ही निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान तक कर दिया है। इन्हीं सब बातों को देखते हुए ये साफ प्रतीत होता है कि कर्नाटक में इस बार भाजपा के लिए राह काफी मुश्किल है।

हालांकि, बीजेपी द्वारा लगातार इन मुश्किलों को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रदेश में एक बार फिर भाजपा की कमान येदियुरप्पा परिवार के ही हाथों में है। येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। बेशक भाजपा ने विजयेंद्र के हाथों में कमान इसलिए सौंपी थी कि एक तो येदियुरप्पा का अनुभव पार्टी के काम आएगा। और दूसरा लिंगायत समुदाय जो कर्नाटक की राजनीति में एक अहम स्थान रखता है वो लिंगायत समुदाय से आने वाले येदियुरप्पा के प्रभाव में है। लेकिन भाजपा का ये दांव उस पर ही उल्टा पड़ रहा है। क्योंकि प्रदेश में कई भाजपा नेता पार्टी से इसीलिए नाराज हैं और विरोध जता रहे हैं क्योंकि प्रदेश में पार्टी के सर्वेसर्वा येदियुरप्पा को बना दिया गया है।

और येदियुरप्पा अब अपनी मनमानी चला रहे हैं। जिसको लेकर कर्नाटक भाजपा के कई नेता नाराज हैं और प्रदेश में अपनी ही पार्टी से बगावत करने पर उतरे हैं। वहीं जिस लिंगायत समुदाय पर येदियुरप्पा की अच्छी पकड़ मानी जाती है और येदियुरप्पा लिंगायत के वोट भाजपा में जाने की वकालत करते रहते हैं। इस चुनाव में वो लिंगायत समुदाय भी बीजेपी के खिलाफ खड़ा हो गया है। यानी येदियुरप्पा के हाथों में प्रदेश की कमान होने के बावजूद भाजपा को प्रदेश में कोई लाभ नहीं बल्कि कई नुकसान हो रहे हैं। और पार्टी अंतरकलह से भी जूझ रही है। इसीलिए पार्टी नेताओं के चेहरे पर शिकन है और हार का डर है।

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भाजपा की अंदरूनी कलह व बगावत का फायदा उठा रही है और अपनी पकड़ व चुनाव में स्थिति को और भी मजबूत बना रही है। वहीं भाजपा पार्टी के अंदर मची अंदरूनी कलह व बगावत को शांत कराने का हरसंभव प्रयास कर रही है। इसके लिए पार्टी साम-दाम-दंड-भेद सब अपना रही है। अब भाजपा बागी नेता केएस ईश्वरप्पा पर दबाव बनाने के लिए अपनी ही पार्टी के नेता के खिलाफ चुनाव आयोग पहुंच गई है। ईश्वरप्पा के खिलाफ चुनाव आयोग पहुंची भाजपा ने मांग की है कि ईश्वरप्पा को अपने चुनावी प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की फोटो का इस्तेमाल करने से रोका जाए।

क्योंकि मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार हैं और ईश्वरप्पा बीजेपी से नहीं बल्कि निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। दरअसल, कर्नाटक की हावेरी लोकसभा सीट से बेटे केई कांतेश को टिकट नहीं दिए जाने से नाराज ईश्वरप्पा ने बीजेपी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस मामले में ईश्वरप्पा ने भाजपा आलाकमान की भी नहीं मानी है और पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह भी ईश्वरप्पा को शांत कराने में पूरी तरह से फेल साबित हुए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ईश्वरप्पा को नामांकन वापस लेने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने।

अब भाजपा ने आरोप लगाया है कि ईश्वरप्पा ने 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रचार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल किया। इस पर बीजेपी ने आपत्ति जताई और उनसे ऐसा न करने को कहा। इसके बाद ईश्वरप्पा ने स्थानीय कोर्ट में एक कैविएट दायर कर दी। इसमें कहा गया कि उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल करने से नहीं रोका जाना चाहिए क्योंकि मोदी हमारे नेता हैं। इसके बाद अब बीजेपी ने चुनाव आयोग का रुख किया है और ईश्वरप्पा को प्रधानमंत्री मोदी की फोटो के इस्तेमाल से रोकने की मांग की है।

बता दें कि कुछ दिन पहले ही कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता आर अशोक ने ईश्वरप्पा पर अपने कैंपेन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरों का अनधिकृत उपयोग करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि केवल बीजेपी को वोट मांगने जैसी अपनी राजनीतिक गतिविधियों के लिए इसका इस्तेमाल करने का अधिकार है और पार्टी का कानूनी प्रकोष्ठ इस पर गौर करेगा। उन्होंने कहा था कि यह गलत है, ईश्वरप्पा को मोदी की तस्वीरें इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है। मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल किसी सरकारी कार्यक्रम के लिए किया जा सकता है क्योंकि वह देश के प्रधानमंत्री हैं। जब यह कोई राजनीतिक मामला हो या वोटों से जुड़ा हो या चुनाव, केवल बीजेपी को मोदी की तस्वीरों का उपयोग करने का अधिकार है।

बता दें कि कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री केएस ईश्वरप्पा शिवमोग्गा लोकसभा सीट से बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई राघवेंद्र के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने जा रहे हैं। ईश्वरप्पा का कहना है कि उनकी लड़ाई पूर्व मुख्यमंत्री और लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा के परिवार के खिलाफ है। हावेरी सीट से बेटे केई कांतेश को टिकट नहीं दिए जाने से नाराज ईश्वरप्पा ने येदियुरप्पा को दोषी ठहराया था। अब ईश्वरप्पा येदियुरप्पा के बेटे बीवाई राघवेंद्र के खिलाफ शिमोगा से ताल ठोक रहे हैं। हालांकि इससे पहले ईश्वरप्पा ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी।

फिलहाल ये तो साफ है कि कर्नाटक में भाजपा की हालत काफी खराब है और पार्टी के लिए आए दिन मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। अब देखना ये है कि चुनाव के परिणाम में क्या होता है।

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