भाजपा के षड्यंत्र से घबराए नीतीश, नहीं दिया इस्तीफा, शपथ ग्रहण से पहले बीजेपी में खेला!

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद से सियासी गलियारों में भी लगातार हलचल तेज हो गई है। वहीं चुनावी नतीजों में भले ही NDA ने भरी जीत दर्ज करते हुए बहुमत हासिल कर लिया हो लेकिन NDA के अंदर चल रही कलह अब बढ़ती जा रही है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद से सियासी गलियारों में भी लगातार हलचल तेज हो गई है। वहीं चुनावी नतीजों में भले ही NDA ने भरी जीत दर्ज करते हुए बहुमत हासिल कर लिया हो लेकिन NDA के अंदर चल रही कलह अब बढ़ती जा रही है।

बहुमत दर्ज करने के बाद एक तरफ जहां विपक्ष लगातार वोट चोरी और SIR जैसे मुद्दों को उठा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ NDA गठबंधन पूर्ण बहुमत हासिल करने के बावजूद भी अंदुरुनी कलह से जूझ रहा है। आपको बता दें कि चुनाव से पहले भाजपा और जदयू ने बराबर-बराबर सीटों 101 पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया था। नतीजतन दोनों दलों को बराबर-बराबर मंत्री पद मिल सकते हैं। लेकिन एक आदमी को झटका भी लग सकता है। सरकार गठन के फॉर्मूले के अनुसार, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को दो, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) को एक और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को एक मंत्री पद मिल सकता है।

सामने आई जानकारी के मुताबिक एनडीए के घटक दलों के बीच सरकार गठन को लेकर चर्चा चल रही है और कई पूर्व मंत्रियों के विभागों पर भी विचार किया जा रहा है। वहीं सामने आई जानकारी के मुताबिक भाजपा और JDU के बीच विश्वास की बड़ी कमी नजर आ रही है। यही वजह है कि मौजूदा सीएम नीतीश कुमार ने इस्तीफा नहीं दिया है। बिहार की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ जब बंपर जीत के बाद जब सीएम राज्यपाल से मिले तो न सरकार को भंग करने की सिफारिश की और न अपना इस्तीफा सौंपा. बल्कि राज्यपाल को ये जानकारी दी गई कि 19 नवंबर को इस्तीफा सौंपा जाएगा.

बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज राज्यपाल आरिफ मोहम्मद आरिफ खान से मुलाकात के बाद इस्तीफा नहीं सौंपा. अपने आप में यह ऐसा अनोखा मामला है कि राज्य सरकार की आखिरी कैबिनेट बैठक हो, उसमें मंत्रीमंडल को भंग करने का प्रस्ताव पारित हो, मुख्यमंत्री, राज्यपाल से राजभवन में मुलाकात करें लेकिन इस्तीफा न दें! केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक में यह पंरपरा रही है कि चुनाव के नतीजे आने के बाद कैबिनेट की आखिरी बैठक के बाद प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास जाते हैं. वह लोकसभा या विधानसभा को भंग करने की सिफारिश करते हैं. हालांकि बिहार में यह परंपरा टूट गई. सीएम, राज्यपाल से मिले तो लेकिन इस्तीफे के लिए नहीं बल्कि यह बताने के लिए कि 19 नवंबर से विधानसभा विघटित यानी भंग होगी और तब तक वह मुख्यमंत्री रहेंगे.

ऐसे में सवाल सवाल यह उठता है कि आखिर नीतीश कुमार ने यह कदम क्यों उठाया है। वहीं सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि कहीं न कहीं इसके पीछे का कारण नीतीश कुमार का डर भी है कि कहीं नीतीश कुमार के साथ भी महाराष्ट्र वाला हाल न कर दिया जाए। जैसे मौजूदा सीएम एक नाथ शिंदे को सीएम पद से चुनाव के बाद हटा दिया और देवेंद्र फडणवीस के रूप में भाजपा का सीएम बैठा दिया। बता दें कि चुनाव से पहले ही राजनीतिक जानकार यह दावा कर रहे थे कि अगर भारतीय जनता पार्टी की सीटें ज्यादा आईं तो वह अपना मुख्यमंत्री चुनेगी.

फिर जब टिकट का बंटवारा हुआ और बीजेपी के साथ-साथ जदयू 101 सीटों पर लड़ी तो नीतीश कुमार की पार्टी ने राज्य में बड़े भाई का दर्जा भी लगभग खो दिया. टिकट बंटवारे के बाद से ही इसकी चर्चा शुरू हो गई. उस वक्त यह खबरें भी आईं थी कि नीतीश कुमार टिकट बंटवारे से नाराज हैं और उन्होंने अपने करीबियों को फटकार भी लगाई है. फिर चुनाव संपन्न हुए और दिन आया 14 नवंबर का जिस दिन JDU ने 5 सालों के लिए सच में अपने बड़े भाई होने का पद खो दिया। चुनावी नतीजों के आने के बाद यह कन्फर्म हो गया कि जदयू ने 2020 चुनाव के मुकाबले भले ही बड़ी कामयाबी हासिल कर 85 सीटें जीती हैं लेकिन 89 सीटें जीतकर बड़े भाई की भूमिका में बीजेपी ही आई.

अब माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को इस बात का डर है कि कहीं बीजेपी 19 नवंबर को होने वाली विधायक दल की बैठक में किसी और नेता के नाम पर मुहर लगाते हुए उन्हें साइड न कर दे. इसीलिए नीतीश कुमार ने 19 नवंबर तक इस्तीफे को टाल दिया है. राजभवन से निकलने के बाद बिहार सरकार में मंत्री जदयू नेता विजय चौधरी का बयान भी आया. मंत्री विजय चौधरी ने कहा ‘कैबिनेट ने विधानसभा भंग करने की अनुशंसा की है और 19 तारीख से विधानसभा भंग हो जाएगी.’ इनके बयान का मतलब हुआ कि विधानसभा 19 नवंबर को भंग मानी जाएगी. उस दिन तक नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे और नियमित प्रशासनिक कार्य संभालते रहेंगे.

आज जिस तरह से नीतीश राज्यपाल से मिले लेकिन इस्तीफा नहीं दिया। लेकिन विधानसभा के भंग होने की तारीख 19 नवंबर तय की गई है इससे एक बात तो साफ़ है कि नीतीश, बीजेपी को भी इतना मौका नहीं देना चाहते हैं कि वह अपने हिसाब से कोई खेल कर सके. हालांकि भाजपा के इस खेले का डर सिर्फ नीतीश को ही नहीं बल्कि अन्य कई नेताओं को भी सता रहा है यही वजह है कि NDA में अंदुरुनी कलह बढ़ती ही जा रही है।

आपको बता दें कि 243 सीटों वाली विधानसभा में अकेले भाजपा ने 89 सीटें जीतीं। दूसरे स्थान पर रही जदयू ने 85 सीटें जीतीं। लोजपा (रालोद) ने 19, हम (एस) ने पांच और राजद ने चार सीटें जीतीं। 2020 में भाजपा ने 74 और जदयू ने 43 सीटें जीतीं। सरकार में भाजपा के 22 और जदयू के 12 मंत्री थे। एक तरफ जहां सीएम पद को लेकर नीतीश कुमार अड़े हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री पद को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा तेज है।

अभी मौजूदा मिजाज की अगर बात की जाए तो उपमुख्यमंत्रियों के बारे में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। वर्तमान उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और उनके नामांकन पत्र में अनियमितताओं के बाद उन्हें उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया जाएगा या नहीं, इस पर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है।

बता दें सम्राट चौधरी को लेकर अपने भी कई तरह से आरोप लग चुके हैं। ऐसे में उसके पद पर भी अभी संसय बना हुआ है। वहीं इस बार बिहार में लोक जन शक्ति पार्टी (रामविलास पासवान) को भी अभूतपूर्व सफलता हाथ लगी है. केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी बिहार में चौथी सबसे बड़ी और एनडीए में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. इसने चिराग की लोकप्रियता को बिहार में बहुत ऊपर पहुंचा दिया है. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार सरकार में इस बार चिराग पासवान कौन सी भूमिका में रहने वाले हैं.

इसी मामले को लेकर प्रतिक्रियाओं का सिलसिला जारी है। इसी कड़ी में एक चैनल से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही ने कहा कि मुझे लगता है कि अगर इस बार बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री बनता है तो वो चिराग पासवान को डिप्टी सीएम बनाएंगे. उन्होंने आगे बताया कि इसका कारण ये है कि चिराग पासवान दलितों के नेता हैं और नीतीश कुमार की जदयू के पास भी दलित वोट बैंक हैं.

ऐसे में चिराग के बहाने बीजेपी कहीं न कहीं जदयू के दलित वोट बैंक को बीजेपी के पाले में लाना चाहेगी. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में नीतीश कुमार ने ही दलित जातियों को महादलित में परिवर्तित किया था, लेकिन पासवान जाति को उन्होंने छोड़ दिया था. ऐसे में लॉन्ग टर्म प्लान के हिसाब से बीजेपी इस ओर बढ़ सकती है. साथ ही उन्होंने कहा कि चिराग पासवान अभी युवा हैं तो वो केंद्र की राजनीति में कहां तक जाएंगे, ऐसे में अगर वो इस बार बिहार के डिप्टी सीएम बनने में कामयाब होते हैं तो 5 साल बाद वो मुख्यमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदार के रूप में उभरेंगे.

गौरतलब है कि बिहार की नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह गांधी मैदान में हो सकता है। नीतीश कुमार ने 2015 में गांधी मैदान में शपथ ली थी। 17 से 20 नवंबर तक गांधी मैदान को आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है। शपथ ग्रहण समारोह के लिए एक भव्य मंच भी तैयार किया जाएगा। लेकिन इससे पहले मुख्यामंत्री और उपमुख्यमंत्री पद को लेकर सियासत गर्म है नेताओं की प्रतिक्रिया लगातार जारी है। अब क्या होगा नीतीश ही बिहार के सीएम होंगे या उनके साथ भी महाराष्ट्र जैसा खेला होगा ये तो आने वाले समय में तय ही हो जायेगा।

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