31 साल बाद फर्जी एनकाउंटर मामले में दारोगा को आजीवन कारावास
लखनऊ। बरेली के करीब 31 साल पुराने बहुचर्चित फर्जी एनकाउंटर मामले में फैसला आ गया। अदालत ने रिटायर्ड दरोगा युधिष्ठिर सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। उस पर 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। बता दें कि बुधवार को अदालत ने रिटायर्ड दारोगा युधिष्ठिर सिंह को दोषी करार दिया था। कोर्ट के इस फैसले के बाद मृतक के परिजनों ने संतोष जाहिर किया है।
छात्र मुकेश जौहरी उर्फ लाली के फर्जी एनकाउंटर में खुद को फंसता देखकर तत्कालीन युधिष्ठिर सिंह ने पीडि़त परिवार पर जुल्म की इंतेहा कर दी थी। उसने हर तरीके से परिवार पर दबाव बनाने की कोशिश की। लाली की हिस्ट्रीशीट तक खुलवा दी, लेकिन परिवार खामोशी से कानूनी लड़ाई लड़ता रहा, जिसका नतीजा 31 साल बाद आया है।
मुकेश के बड़े भाई अनिल ने बताया कि उनका भाई बीकॉम का छात्र था। उसका किसी अपराध से दूर तक वास्ता नहीं था। पड़ोसी के मुकाबले बड़े भाई वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद जौहरी ने पार्षदी का चुनाव लड़ा था। इस कारण पड़ोसी ने रंजिशन लाली पर कुछ केस दर्ज करा दिए थे।
तत्कालीन दरोगा युधिष्ठिर सिंह ने उस वक्त अपनी कार्यशैली से पूरे इलाके में आतंक कायम कर रखा था। अपने इसी तानाशाही भरे रवैये में उसने लाली की हत्या कर दी। जब वह फंस गया तो उसने इसे एनकाउंटर का रूप देकर उनके भाई को लुटेरा घोषित कर दिया। इसके बाद उसने परिवार पर जुल्मों की इंतेहा कर दी।
अनिल के मुताबिक, जब भाई के साथ घटना का पता लगा तो भाई पंकज थाने पहुंचे, दरोगा ने पंकज को भी बैठा लिया। पंकज की जमकर पिटाई की। रात भर उसे थाने में बैठाया रखा, जिससे वह शिकायत न कर सके। लाली की मौत के सदमे में तीन माह बाद ही उनके पिता वीरेश्वर नाथ का भी निधन हो गया।
उनके यहां अक्सर दबिश पड़ती थी। परिवार के लोगों से अभद्रता आम बात थी, कभी कभार धमकियां भी दी जाती थीं। युधिष्ठिर सिंह ने अपनी कहानी को सही साबित करने के लिए पिछली तारीख में लाली की हिस्ट्रीशीट खुलवा दी और उसका नंबर इस तरह बीच में डाला गया कि किसी को भनक न लगे। जबकि लाली के खिलाफ किला थाने के अलावा किसी भी थाने में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं थी। किला थाने में भी जो रिपोर्ट लिखी गईं, वह सब निपट चुकी हैं।
दरोगा ने अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया था कि सेल्समैन से शराब व रुपये लूट देखकर उसने लाली पर फायर किया था। सेल्समैन राजेश जायसवाल को जब यह बात पता लगी तो वह हैरान रह गया। उसने बाकायदा शपथपत्र दिया कि उसके साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई। इस शपथपत्र ने भी दरोगा की कहानी को फर्जी साबित करने का काम किया।
अनिल ने बताया कि घटनास्थल फूटा दरवाजा था, लेकिन दरोगा ने जानबूझकर इसे कोतवाली का दिखाया। एनकाउंटर में सीने पर या सामने गोली मारी जाती हैं। दरोगा की मारी तीनों गोलियों लाली को कमर व पिछले हिस्से में लगीं। उनकी मां चंद्रा जौहरी ने रिपोर्ट दर्ज न होने पर सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद सीबीसीआइडी को जांच मिली और इंसाफ का रास्ता साफ हुआ। अगस्त 2001 में उनकी मां का निधन हो गया।
फैसले के दौरान लाली के तीन भाई अनिल जौहरी, राकेश और अनूप कोर्ट में मौजूद थे। इनकी आंखों में खुशी के आंसू झलक उठे। कहा कि 31 साल बाद कोर्ट के फैसले ने उनके परिवार पर लगे लूट के कलंक को धो दिया है। हालांकि अनिल का कहना था कि लाली को इंसाफ दिलाने में उनके सबसे बड़े भाई अधिवक्ता अरविंद जौहरी की सबसे बड़ी भूमिका रही। पिछले साल दो अक्तूबर को ही अरविंद का भी निधन हो गया। मां और भाई की आखिरी इच्छा थी कि लाली को इंसाफ मिले। दरोगा का बेटा भी सजा के दौरान कोर्ट परिसर में था। पिता को सजा के बाद वह भी रोने लगा।