लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बख्शने के मूड में नहीं अखिलेश
- शर्त रखने पर मप्र जैसा करेंगे व्यवहार
- जयंत के साथ बनाएंगे रणनीति
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव बीत गए हैं और अब वहां मतगणना का इंतजार है, एमपी चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के विवाद पर सभी का ध्यान गया। पूरे घटनाक्रम से वाकिफ नेताओं का दावा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में अगर कांग्रेस ने किसी किस्म की नई शर्त रखी तो हम एमपी में लोकसभा चुनाव के दौरान वही करेंगे जो विधानसभा चुनाव में किया।
सपा की रणनीति है कि अगर कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में गठबंधन के लिए कुछ अलग शर्तें रखीं तो वह मध्य प्रदेश की उन सीटों पर आक्रामक चुनाव लड़ेगी जिनकी सीमाएं यूपी से सटती हैं, दीगर है कि अखिलेश यादव की अगुवाई में सपा ने एमपी ने आक्रामक चुनावी प्रचार किया था। हालांकि सपा की सारी रणनीति फिलहाल 3 दिसंबर को चुनावी फैसले पर टिकी हुई है, पार्टी के नेताओं का मानना है कि अगर वह राज्य में इस स्थिति में आती है कि वह कांग्रेस से लोकसभा चुनावों में तोलमोल कर सके तो बिल्कुल करेगी और एमपी में हुए विवाद को ध्यान में रखेगी।भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी इस मामले पर प्रतिक्रिया दी और चुटकियों के जरिए सपा-कांग्रेस के रिश्ते के साथ ही इंडिया अलायंस पर टिप्पणी की। कांग्रेस और सपा के रिश्तों में आई खटास के बाद कयास इस बात के भी लगाए जा रहे हैं कि अगर बात नहीं बनी तो अखिलेश यादव, एमपी में फिर एक बार ताल ठोकेंगे।
एनडीए से गठबंधन कर सकती है पीस पार्टी
पिछले 15 साल के दौरान हुए तीन लोकसभा और तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद अयूब का सियासी चश्मा अब बदल चुका है । उन्हें अब भाजपा जैसे दलों के साथ भी चुनाव लडऩे में कोई परहेज नहीं हैं। करीब डेढ़ दशक के सियासी सफर के बाद उन्हें अब लगने लगा है कि सपा, बसपा और कांग्रेस ने मुस्लिम समाज को सिर्फ एक वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया है। उनका मानना है कि ये तीनों दल चुनाव में मुस्लिमों का वोट तो लेते हैं, पर जब सत्ता में आते हैं तो इस समाज को न तो भागीदार बनाते हैं और न ही इनका ख्याल रखते हैं। उनका कहना है कि मौका मिलेगा तो एनडीए से गठबंधन करने से गुरेज नहीं करेंगे। पूर्वांचल में पसमांदा मुस्लिमों के बड़े नुमाइंदे के तौर पर पहचान रखने वाले डॉ. अयूब ने पार्टी के गठन के बाद 2012 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर जीत दर्ज करके मुस्लिम समाज पर अपनी पकड़ का एहसास भी कराया था, लेकिन गठबंधन के दौर में भी किसी बड़े दल का साथ न मिलने की वजह से पीस पार्टी एक तरह से अलग-थलग पड़ गई है। जह है कि डॉ. अयूब अब भाजपा की तरफ भी दोस्ती का हाथ बढ़ाने के प्रयास में जुटे हैं। एनडीए से गठबंधन को लेकर उनके हाल के बयान को इसी से जोडक़र देखा जा रहा है। डॉ. अयूब का कहना है कि यूपी में पसमांदा मुस्लिम समाज जागरूक हो गया है। सिर्फ वोटबैंक बन कर नहीं रहना चाहता है। वे कहते हैं कि अब तक यह समाज सिर्फ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भाजपा को हराने के लिए वोट करता था, लेकिन अब यह समझ में आने लगा है कि यह विचारधारा समाज को नुकसान पहुंचा रहा है।
इंडिया की जगह पीडीए को तरजीह
यूपी के संदर्भ में एक ओर जहां अखिलेश यादव इंडिया से ज्यादा पीडीए पर जोर दे रहे हैं और कांग्रेस भी सभी 80 सीटों पर तैयारी की बात कर रही हैं, ऐसे में दोनों दलों के गठबंधन को लेकर कई सवाल हैं, यूपी में सपा ही नहीं बल्कि जयंत चौधरी की अगुवाई वाली राष्टï्रीय लोकदल भी कांग्रेस का इंतजार कर रही है, राजस्थान में जयंत भी 4-5 सीटें मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने सिर्फ 1 सीट ही दी। अब चूंकि एमपी में चुनाव बीत गए हैं और राजस्थान नें 25 नवंबर को वोटिंग है, इसके बाद सभी को मतगणना का इंतजार है, ऐसे मे यूपी में कांग्रेस और सपा के रिश्ते का ऊंट किस करवट बैठेगा यह जवाब वक्त के पास है, साथ ही इस रिश्ते में रालोद की भूमिका भी अहम होगी।