‘बाबा साहब’ की जयंती पर गरजे अखिलेश यादव
अम्बेडकर की विरासत पर कब्जे की लड़ाई!

- कहा, यह वहीं लोग है जिन्होंने सदियों तक अत्याचार किया
- पूरे देश में भव्यता के साथ मनाई गयी अम्बेडकर जयंती
- राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। आज पूरे देश में अम्बेडकर जयंती धूम—धाम से मनाई गयी। कहीं रैली निकली तो कहीं दौड़ का आयोजन किया गया। पूरे देश में राष्ट्रीय अवकाश घोषित हुआ और अम्बेडकर के सिद्धांतों पर चलने की कसम खायी गयी। अम्बेडकर की जयंती के कई सियासी मायने निकाले गये और सवाल यही उठा कि किसके अम्बेडकर? अम्बेडकर जयंती के अवसर पर, कई प्रमुख नेता संसद परिसर में प्रेरणा स्थल पर एकत्र हुए और बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर को उनकी जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इनमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू आदि शामिल थे। बात विपक्षी नेताओं की करें तो उनमें मायावती हो या स्टलिन, अखिलेश यादव हो या फिर राहुल गांधी सभी ने बीजेपी पर अम्बेडकर के संविधान को खत्म करने का आरोप लगाया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने साफ कर दिया कि जबतक देश में संविधान है तबतक पीडीए सुरक्षित हैं।
अखिलेश का वार, बीजेपी बेकरार
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अम्बेडकर जयंती पर बड़ा वार किया है। उन्होंने बिना नाम लिये कहा है कि यह वहीं लोग है जो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी को नहीं मानते हैं। जो संविधान, लोकतंत्र को नहीं मानते। यह तमाम प्रबुद्धवादी वह लोग हैं जिन्होंने सदियों से शोषण किया है। आज के दिन जब बाबा साहब को हम लोग याद कर रहे हैं तो यह संकल्प लेते हैं कि सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए हम लोग काम करेंगे। उन्होंने कहा कि संविधान ही संजीवनी है और संविधान ही ढाल है और जब तक संविधान सुरक्षित रहेगा तब तक हम सबका मान-सम्मान-स्वाभिमान और अधिकार सुरक्षित रहेगा। सपा प्रमुख ने कहा कि पीडीए की एकता ही संविधान और आरक्षण को बचाएगी पीडीए की एकजुटता ही सुनहरा भविष्य बनाएगी।
सरकारी सम्मान, विपक्षी राजनीति
मोदी सरकार अम्बेडकर को बार-बार राष्ट्र निर्माता बताकर उन्हें राष्ट्रवादी विमर्श में समाहित करने की कोशिश कर रही है। अम्बेडकर मेमोरियल, पंचतीर्थ योजना, संसद में उनकी तस्वीरें, हर योजना में उनका नाम यह सब दर्शाता है कि भाजपा अम्बेडकर के नाम पर दलितों और पिछड़ों तक पहुंच बनाने की रणनीति में लगी है। बात अगर विपक्षी राजनीति की करें तो सपा ने बीजेपी को इस मुददे पर बड़ा डेंड लगाया है। 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 62 सीटें जीती थीं, लेकिन 2024 के चुनावों में समाजवादी पार्टी ने पिछड़े वर्गों को साधते हुए भाजपा को धूल चटा दी खासकर यादव और कुछ गैर-यादव पिछड़े तबकों के वोटों के बिखराव को रोकने में सपा ने सफलता पायी। सपा 2024 इसी रणनीति को आगे बढ़ा रही है। दलित-पिछड़ा-मुस्लिम गठबंधन। यह मॉडल 2018 के उपचुनावों में सफल हुआ था और 2019 में भले ही महागठबंधन ज्यादा नहीं चला, लेकिन 2024 में सपा ने अम्बेडकर को सामाजिक क्रांति के प्रतीक के रूप में फिर से प्रस्तुत किया था।
मायावती मौन, अब कौन?
बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती अब भी दलित राजनीति की सबसे बड़ी पहचान हैं। लेकिन हाल के वर्षों में उनकी सक्रियता घटी है। 2019 में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया था और उसे 10 सीटें मिली थीं, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी मात्र 1 सीट पर सिमट गई। दलित वोटरों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा और सपा में बंट गया। 2024 से मायावती का राजनीतिक स्टैंड अब तक स्पष्ट नहीं है। उन्होंने किसी गठबंधन में जाने से इंकार किया है। उनकी एकला चलो नीति के चलते दलित वोटों में ?बिखराव सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा पहुंचता है।
मजबूती के साथ चिपक गया पीडीए नारा
सपा का पीडीए नारा बीजेपी पर ऐसा चिपका की उखड़ ही नहीं रहा है। तमाम सर्वे और रिसर्च के बाद बीजेपी ने भी यही माना कि वह सपा के पीडीए नारे का सही प्रकार से जवाब नहीं दे पाई और यूपी की जनता भ्रम का शिकार हो गयी। सपा बीजेपी पर संविधान को खत्म कर मनु स्मृति लागू करने का आरोप लगाती है। वह अपने आरोप में तत्थयात्मक आंकड़े भी पेश करती है। बीजेपी सपा के इस आरोप से डरी हुई है और वह इस पीडीए नारे के जवाब के लिए तैयारियों में जुटी है। बीजेपी ने तमाम छोटे बड़े, नेताओं को अपने पाले में कर लिया और अपनी पार्टी के इन जातियों के नेताओं को आगे कर रही हैं।
संसद के सेंट्रल हॉल में पीएम के न पहुंचने पर कांग्रेस ने घेरा
इससे पहले अम्बेडकर जयंती के मौके पर तमाम पक्ष-विपक्ष के नेता संसद भवन पहुंचे। लेकिन इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी मौजूद नहीं थे। इसे लेकर भी कांग्रेस ने पीएम पर निशाना साधा। एक्स पर पोस्ट करते हुए कांग्रेस ने लिखा, क्या प्रधानमंत्री के पास इतना वक्त नहीं था कि वो संसद के सेंट्रल हॉल में आकर बाबा साहेब को श्रद्धांजलि दे सकें? ये वही सेंट्रल हॉल है जहां भारत के संविधान को अपनाया गया था।