अनुपम खेर ने समाज की सोच बदलने वाली फिल्म “साँचा” को बना दिया क्लासिक फ़िल्म।

सुष्मिता मिश्रा 

फ़िल्म साँचा में अनुपम खेर एक रियल हीरो के रूप में उभर कर सामने आते हैं।हमारे देश और समाज मे गरीबी, मजबूरी, बेरोजगारी, कर्ज लेना और लाचारी जैसी समस्या आज भी बरकरार है। अब भी कई ऐसे मां बाप हैं जिन्हें अपनी गरीबी और मजबूरी की वजह से अपनी जवान बेटी की शादी अधेड़ उम्र के मर्द से करनी पड़ती है। अनुपम खेर, रघुवीर यादव, मुकेश तिवारी, विजय राज, सुधा चंद्रन जैसे कलाकारों से सजी निर्माता विवेक दीक्षित की हिंदी फिल्म साँचा में इसी ज्वलंत मुद्दे को बखूबी दर्शाया गया है। यह फ़िल्म एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई है जिसे खूब देखा और सराहा जा रहा है। फ़िल्म को दर्शकों के साथ साथ समीक्षकों ने भी पसन्द किया है।

इस फ़िल्म में अनुपम खेर ने 55 साल के एक अधेड़ व्यक्ति रामखिलावन का रोल प्ले किया है, जो अपनी बेटी की उम्र की लड़की चकोरी से शादी कर लेता है। चकोरी के पिता का रोल फिल्म में रघुबीर यादव ने निभाया है। निर्माता विवेक दीक्षित की इस फ़िल्म साँचा की कहानी में उस वक्त जबरदस्त मोड़ आता है, जब अनुपम खेर को एहसास होता है कि लड़की उन्हें अपना पति नहीं बल्कि पिता जैसा मानती है तब अनुपम खेर एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला लेते हैं। उन्हें यह फील हो जाता है कि उन्होंने अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ शादी करके बड़ी गलती की है, उस मासूम लड़की की जिंदगी खराब की है, इसलिए वह अपनी साइकिल की दुकान पर काम करने वाले एक युवा लड़के से चकोरी की शादी करवा देता है। इस तरह फ़िल्म साँचा में अनुपम खेर एक रियल हीरो के रूप में उभर कर सामने आते हैं। उन्होंने अपने रोल और अपनी अदाकारी से बहुत प्रभावित किया है।

देखा जाए तो अनुपम खेर ने इस फ़िल्म के द्वारा एक बड़ा सन्देश देने का प्रयास किया है कि शादी बराबर की उम्र में होनी चाहिए। बाप की उम्र के अधेड़ व्यक्ति को 20 साल की लड़की से शादी करके उसके जीवन को नर्क बनाने का कोई अधिकार नही हैं। फ़िल्म साँचा के प्रोड्यूसर विवेक दीक्षित एक बेहद असरदार सिनेमा बनाने में कामयाब रहे हैं। समाज के एक अनछुए मुद्दे और सोसाइटी के कड़वे सच पर आधारित यह एक आंख खोलने वाला सिनेमा है।

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