अनुप्रिया पटेल के बगावती तेवर से लखनऊ से दिल्ली तक बीजेपी में हड़कंप
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- राजनीति संभावनाओं का खेल, सभी विकल्प खुले इस बयान के बाद डरी भाजपा
- चुनाव से पहले भाजपा के लिए कुर्मी वोट बैंक बना बड़ी मुसीबत
लखनऊ। चुनाव में दो महीने बचे हैं और भाजपा के लिए अनुप्रिया पटेल ने एक बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है। अनुप्रिया पटेल के बगावती तेवर से लखनऊ से दिल्ली तक बीजेपी में हड़कंप मच गया है कि आखिर किस तरह अनुप्रिया की बगावत को रोके। अनुप्रिया भी अगर मौजूदा सरकार से किनारा कर गयी तो बिना कुर्मी वोट बैंक के सत्ता की दौड़ बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी। फिलहाल अनुप्रिया पटेल को लेकर संगठन में मंथन शुरू हो गया है।
दरअसल, चुनाव की आहट के साथ ही नए गठबंधन और समीकरणों का गणित तैयार होने लगा है। ऐसे में अपना दल की राष्टï्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने एक इंटरव्यू में कहा कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, ऐसे में उनके लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं। उन्होंने कहा कि फिलहाल वह कार्यकर्ताओं से राय ले रही हैं और जो कार्यकर्ताओं के मन में होगा गठबंधन उन्हीं के साथ होगा। हालांकि अनुप्रिया पटेल ने यह भी कहा कि अभी उनकी पार्टी का गठबंधन बीजेपी के साथ है लेकिन यह भी इशारा कर दिया की उनके सामने दूसरे विकल्प भी खुले हुए हैं।
खास बात यह है कि बीजेपी के साथ सीटों की संख्या फाइनल नहीं हुई है। अनुप्रिया पटेल इस बार अपनी पार्टी के लिए बीजेपी से ज्यादा सीटें चाहती हैं। बता दें कि अपना दल के कार्यकारी अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य आशीष पटेल पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि इस बार पिछली बार से ज्यादा सीटों पर अपना दल चुनाव लड़ेगी। वहीं एक तरफ जहां बीजेपी के लिए अपने पुराने और छोटे सहयोगियों को साथ बनाए रखने की चुनौती है वहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव लगातार छोटी-छोटी पार्टियों से संपर्क साध रहे हैं और उनसे गठबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछड़ी जातियों के लिए जो गोलबंदी अखिलेश यादव कर रहे हैं उससे अनुप्रिया काफी परेशान हैं। अनुप्रिया पटेल फिलहाल मोदी सरकार में राज्यमंत्री हैं। 2014 में सांसद बनने के बाद उन्हें मंत्री बनाया गया था। 2017 में अनुप्रिया पटेल ने भाजपा के साथ गठबंधन कर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। 2019 में भी वह भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव में उतरीं और मिर्जापुर से जीत भी हासिल की लेकिन मंत्री नहीं बनाई गईं। कुछ समय पहले ही अनुप्रिया पटेल को दोबारा मंत्री बनाया गया है।
सीटें ज्यादा नहीं मिली तो टूट सकता है गठबंधन
चुनाव से पहले गठबंधनों को लेकर जोर आजमाइश हो रही है। अभी तक सबसे ज्यादा दलों का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ हो चुका है। अखिलेश ने अपना दल कृष्णा गुट के साथ गठबंधन किया है। अनुप्रिया पटेल वाले अपना दल से गठबंधन की चर्चा भी तैर रही हैं। ऐसे में चर्चा है कि भाजपा ने अगर मन के मुताबिक पटेल को सीटें नहीं दी तो गठबंधन टूट सकता है और अनुप्रिया पटेल समाजवादी के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती है।
मां अखिलेश के साथ, बेटी बीजेपी संग… अनुप्रिया-कृष्णा पटेल में कौन पड़ेगा भारी?
अपना दल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने चुनाव में सपा के साथ मिलकर लड़ने का ऐलान किया है। साथ ही कृष्णा पटेल और अखिलेश संयुक्त रूप से चुनाव प्रचार भी करेंगे। हालांकि सीट शेयरिंग को लेकर अभी तक कोई फॉर्मूला नहीं आया है, लेकिन कृष्णा पटेल ने कहा कि सीटों को लेकर हम दोनों के बीच कोई विवाद नहीं है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल की अपना दल से गठबंधन किया है। 2022 के चुनावी रण में एक तरफ कृष्णा पटेल तो विरोधी खेमे में बेटी अनुप्रिया पटेल होंगी। ऐसे में देखना होगा कि मां-बेटी में कौन कितना भारी पड़ता है?
वरुण गांधी लाएंगे एमएसपी की कानूनी गारंटी पर बिल
नई दिल्ली। कृषि सुधार के कानूनों की वापसी के साथ एमएसपी समेत अन्य मांगों पर सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों को समझाकर भले ही लौटा दिया हो, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा के सांसद वरुण गांधी ने एमएसपी की कानूनी गारंटी का निजी विधेयक पेश करने का एलान कर सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। कृषि कानून विरोधी आंदोलन को लेकर वरुण गांधी लगातार अपनी सरकार पर निशाना साधने से बाज नहीं आए। अब उन्होंने लोकसभा में इसी सप्ताह निजी विधेयक पेश करने की घोषणा कर दी है।
वरुण ने ट्वीट कर बताया है कि उन्होंने विधेयक का मसौदा लोकसभा सचिवालय को सौंप दिया है। उन्होंने इसके प्रावधानों पर सुझाव भी मांगा है। भाजपा सांसद ने अपने ट्वीट में कहा भारत के किसानों और सरकार ने बहुत बार कृषि और उससे जुड़े मुद्दों पर चर्चा की है। लेकिन अब न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने का समय आ गया है। सरकार द्वारा कृषि कानून की वापसी और एमएसपी पर कमेटी के गठन की घोषणा के बाद भी उन्होंने एमएसपी की कानूनी गारंटी का मुद्दा उठाया है।
वरुण के निजी विधेयक के अहम प्रविधानों में सिर्फ 22 फसलों के ही एमएसपी की कानूनी गारंटी के साथ खरीद की परिकल्पना की गई है। उनके हिसाब से इन फसलों का सालाना वित्तीय परिव्यय एक लाख करोड़ रुपये है। इस सूची में कृषि उत्पादों की जरूरत के आधार पर फसलों को शामिल किया जा सकेगा। एमएसपी का आधार उत्पादन लागत पर 50 प्रतिशत लाभांश होगा। एमएसपी से कम मूल्य पाने वाला किसान गारंटी युक्त एमएसपी के बीच के अंतर के मुआवजे का हकदार होगा।
प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, फसलों का वर्गीकरण उसके गुणवत्ता मानकों के आधार पर होगा। फसल भंडारण के बदले किसानों को ऋण का प्रविधान है। किसानों को समय से भुगतान के साथ उनकी फसलों के लिए एमएसपी की गारंटी दी जाएगी। उपज की खरीद के दो दिनों के भीतर किसानों के खाते में धन जमा कराने का प्रावधान होगा। किसी वजह से किसानों को अगर एमएसपी नहीं मिलता तो सरकार बिक्री मूल्य और एमएसपी के बीच के अंतर का भुगतान एक सप्ताह में करेगी।