24 के चुनाव से पहले अखिलेश को अकेला करने की ‘भाजपा की चाहत’

  •  शिवपाल के बाद राजभर ने भी दिया गठबंधन तोड़ने का संकेत
  • राजभर की नाराजगी के बाद बिखर रहा सपा का पॉलिटिकल कुनबा

दिव्यभान श्रीवास्तव
लखनऊ। समाजवादी पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है। सीएम योगी से बात और अमित शाह से मुलाकात के बाद सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर के तेवर बदले से नजर आ रहे हैं। उन्होंने राष्टï्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने की घोषणा क्या की कि राजनीति इस बात पर शुरू हो गई है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश अकेले रहेंगे। गठबंधन टूट जाएगा। कयास ये भी लगाए जा रहे कि लोकसभा चुनाव के पहले जयंत भी उनका साथ छोड़ सकते हैं। इससे पहले चाचा शिवपाल यादव भी अखिलेश से नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। वह अपनी पार्टी को मजबूत करके नगर निकाय चुनाव में सपा के खिलाफ प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर रहे हैं। सपा का सहयोगी रहा महान दल भी अब गठबंधन से अलग है। ऐसे में अखिलेश का पॉलिटिकल कुनबा बिखर रहा है। चर्चा ये भी है कि लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश को अकेला करने की ये भाजपा की चाल है। अमित शाह द्वारा राष्टï्रपति चुनाव में राजभर पर चला गया दांव काम कर गया। ऐसे में भाजपा की पूरी कोशिश है कि 24 में 80 में से 75 सीटें जीती जाए, तभी विपक्ष को पूरी तरह कमजोर किया जा सकता है। गौर करें अगर तो ओमप्रकाश राजभर का भाजपा के रात्रिभोज में जाना इसलिए सियासी नजरिए से अहम है, क्योंकि अखिलेश यादव का खेमा विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन कर रहा है। इस वजह से ओपी राजभर की समाजवादी पार्टी से तल्खी के बीच भाजपा से नजदीकी की भी चर्चा हो रही है। हालांकि ओपी राजभर ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी ओर से गठबंधन का रिश्ता नहीं तोड़ेंगे। ओपी राजभर यहां तक कह रहे हैं कि वे तलाक नहीं देंगे। अगर देना ही है तलाक तो खुद अखिलेश यादव दे दें।

एक-एक कर खुल रही है गठबंधन की गांठ
विधानसभा चुनाव से पहले सपा मुखिया अखिलेश ने आरएलडी, सुभासपा, महान दल, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, एनसीपी, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), अपना दल (कमेरावादी) जैसे दलों के साथ गठबंधन किया। चुनाव के बाद अब एक-एक कर गठबंधन के ये साथी साथ छोड़ रहे हैं। गठबंधन में जयंत की पार्टी राष्टï्रीय लोक दल व सुभासपा ही बड़े दल हैं। बाकियों के पास वोट बैंक कम है।

जयंत अखिलेश के साथ सिर्फ अपने मतलब से
सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने तीन दिन पहले स्पष्टï कर दिया था कि योगी और अमित शाह के कहने पर ही एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर रहे हैं। शिवपाल यादव भी मुर्मू के सम्मान में सीएम आवास पर हुए डिनर में शामिल हुए थे। वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम कहते हैं कि ऐसा ही चलता रहा तो 2024 तक अखिलेश यादव अकेले रह जाएंगे। जयंत चौधरी अखिलेश के साथ सिर्फ अपने मतलब से हैं। जयंत को पता था कि विधानसभा चुनाव में मुस्लिम सपा के साथ जुड़ा हुआ है। जिस दिन जयंत को लगेगा कि मुस्लिम साथ छोड़ रहा है, तब जयंत अपना नुकसान नहीं करना चाहेंगे।

2024 तक बदल सकते हैं समीकरण
आजमगढ़ और रामपुर में हुए लोकसभा उपचुनाव के नतीजे बदलते समीकरण को बताते हैं। 24 में इन दोनों सीटों पर भी भाजपा मजबूत दावेदारी पेश करेगी। क्योंकि उपचुनाव में भाजपा ने दोनों सीटों पर जीत दर्ज की है। सैयद कासिम कहते हैं कि आजमगढ़ और रामपुर के नतीजे ये बताने के लिए काफी है कि मुस्लिम भी अखिलेश का साथ छोड़ रहा है। चार चुनाव हार चुके अखिलेश के साथ अब मुस्लिम नहीं रहने वाला। लोकसभा में मुस्लिमों की पसंद पहले से भी कांग्रेस रही है।

भाजपा को मिलेगा बिखरे विपक्ष का फायदा
दोनों उप-चुनाव के नतीजों से उत्साहित भाजपा ने 2024 के लिए टारगेट सेट किया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि यूपी में जातीय समीकरण टूट रहे हैं। भाजपा को हर जाति और मजहब का वोट मिल रहा है। आजमगढ़ और रामपुर के नतीजों ने साबित किया है कि अब जाति-धर्म या वंशवाद के नाम पर कोई दुर्ग नहीं बना सकेगा। 2024 में भाजपा 80 में से पूरे 80 सीटें जीतना चाहती है।

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