अखिलेश यादव की ‘सद्भाव पॉलिटिक्स’ पर BJP का हमला, मस्जिद में बैठक को बताया असंवैधानिक

सपा प्रमुख ने कहा कि आस्था जोड़ती है और जो आस्था जोड़ने का काम करती है, हम उसके साथ है. लेकिन बीजेपी चाहती है कि कोई जुड़े नहीं. दूरियां बनी रहें.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: उत्तर प्रदेश में अगामी विधानसभा चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘सद्भाव वाली राजनीति’ का रूख अपनाया है।

इसी क्रम में सपा की सांसद इकरा हसन सहारनपुर में कांवड़ियों के कैंप में पहुंचीं, तो अखिलेश यादव स्वंय दिल्ली के संसद मार्ग स्थित एक मस्जिद में हाजिरी देने पहुंचे। वहां उन्होंने एक राजनीतिक बैठक भी की। हालांकि, अखिलेश यादव का यह कदम भारतीय जनता पार्टी को रास नहीं आया। भाजपा ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए समाजवादी पार्टी पर धार्मिक स्थल का राजनीतिक उपयोग करने का आरोप लगाया है।

बीजेपी के आरोपों का अखिलेश ने जवाब भी दिया. सपा प्रमुख ने कहा कि आस्था जोड़ती है और जो आस्था जोड़ने का काम करती है, हम उसके साथ है. लेकिन बीजेपी चाहती है कि कोई जुड़े नहीं. दूरियां बनी रहें. हम सभी धर्मों में आस्था रखते हैं. बीजेपी का हथियार धर्म है.

कावंड़ियों के कैंप में इकरा हसन
कैराना से सपा सांसद इकरा हसन ने 19 जुलाई को अपने लोकसभा क्षेत्र में कांवड़ यात्रा के लिए आयोजित सेवा शिविरों का उद्घाटन किया. इस दौरान उन्होंने शिवभक्तों को भोजन परोसकर सामाजिक सौहार्द और एकता का उदाहरण पेश किया. इस मौके पर सांसद ने कहा कि श्रद्धा, सेवा और सहयोग ही हमारे समाज की सबसे बड़ी ताकत हैं और हमें शांति, भाईचारे व संवैधानिक मूल्यों के साथ खड़ा होना चाहिए.

इस कार्यक्रम में सांसद इकरा हसन ने शिवभक्तों के बीच भोजन वितरित किया और उनकी सेवा में जुटे स्वयंसेवकों की सराहना की. इकरा ने इसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की थी. उन्होंने लिखा कि लोकसभा क्षेत्र में कांवड़ यात्रा के लिए सेवा शिविरों का उद्घाटन किया और शिवभक्तों को भोजन परोसने का सौभाग्य मिला. श्रद्धा, सेवा और सहयोग यही हमारे समाज की सबसे बड़ी ताक़त है. आज वक्त है कि हम सब मिलकर शांति, भाईचारे और संविधानिक मूल्यों के साथ खड़े हों.

सपा की सद्भाव वाली पॉलिटिक्स के क्या मायने?
मुस्लिम सपा का कोर वोटबैंक रहा है. उसे ये भी पता है कि सिर्फ मुस्लिम वोट के सहारे सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता है. इसके लिए हिंदू वोट की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ेगी. कांवड़ यात्रा में हिंदुओं को खुश करने के लिए सपा ने अपने मुस्लिम सांसद को उतारकर ये संदेश देने की कोशिश की कि वो सिर्फ किसी एक धर्म की नहीं है, सभी धर्मों की है.

अखिलेश की यही सोशल इंजीनियरिंग 2024 के लोकसभा चुनाव में काम भी आई थी. पार्टी यूपी में 37 सीटों पर जीतने में सफल रही थी. सपा के पुनरुत्थान ने कई चुनाव विशेषज्ञों और विश्लेषकों को चौंका दिया था. बुंदेलखंड जो पहले बसपा का गढ़ था और जहां 2014 के बाद से बीजेपी ने अपनी पकड़ मज़बूत की थी, सपा ने अप्रत्याशित रूप से अच्छा प्रदर्शन किया. अखिलेश यादव के नेतृत्व में, पार्टी ने कन्नौज, इटावा और बदायूं में जीत हासिल करके यादव क्षेत्र पर भी कब्ज़ा जमा लिया था. उन्होंने प्रतिष्ठित कन्नौज सीट पर भी कब्ज़ा किया.

बीजेपी के किले में सेंध

आपको बता दें,कि यूपी की राजनीति में हमेशा से अहम माने जाने वाले अयोध्या मंडल में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है। फैजाबाद का नतीजा खास तौर पर चौंकाने वाला रहा, जहां बीजेपी की गहरी जड़ें मानी जाती थीं। बावजूद इसके पार्टी को पूरे अयोध्या मंडल में करारी हार का सामना करना पड़ा। समाजवादी पार्टी ने फैजाबाद, अंबेडकर नगर और सुल्तानपुर सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस ने बाराबंकी और अमेठी सीटों को अपने नाम किया। इन परिणामों ने राज्य में बदलते सियासी समीकरणों की ओर इशारा किया है।

सोशल इंजीनियरिंग और संविधान बचाओ अभियान राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, समाजवादी पार्टी के इस पुनरुत्थान का श्रेय उसकी सोशल इंजीनियरिंग रणनीति और ‘संविधान बचाओ’ की उसकी प्रतिज्ञा को जाता है। सपा ने जातीय संतुलन साधते हुए अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़े वर्गों को एकजुट करने की कोशिश की, जो इस बार के परिणामों में साफ झलकता है।

अयोध्या, जो बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति का केंद्र माना जाता रहा है, वहां की हार पार्टी के लिए प्रतीकात्मक रूप से बेहद अहम है। राम मंदिर निर्माण के बाद भी यहां जनता का मूड बदला हुआ नजर आया, जो विकास और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों की ओर झुका दिखाई देता है।

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