महाराष्ट्र में बिगड़ा BJP का खेल, विपक्षी एकजुटता ने बढ़ाई टेंशन

मुंबई। लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान अब हो चुका है। 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होना है। ऐसे में चुनावों में अब ज्यादा वक्त बाकी नहीं रह गया है। इसीलिए अब सभी दल अपनी-अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। इस बीच 48 लोकसभा सीटों वाला महाराष्ट्र राज्य लगातार चर्चा में बना हुआ है। प्रदेश में सियासी उथल-पुथल लगातार जारी है। ये सियासी हलचल इसलिए भी मची हुई है क्योंकि चुनाव सर पर हैं लेकिन अभी तक सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में सीट बंटवारे पर आपसी सहमति नहीं बन पाई है।

अभी तक ये तय नहीं हो पा रहा है कि कौन दल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। फिर वो चाहे भाजपा समर्थित एनडीए गठबंधन की हालत हो या फिर कांग्रेस समर्थित महाराष्ट्र में एमवीए यानी महाविकास अघाड़ी गठबंधन की बात हो। दोनों ही दलों की ओर से लगातार ये कहा जा रहा है कि बात पूरी फाइनल हो गई है। सब कुछ तय है, बस औपचारिक ऐलान होना ही बाकी है। लेकिन सवाल ये ही कि आखिर ये औपचारिक ऐलान होगा कब? क्योंकि अब चुनावों में ज्यादा वक्त बाकी नहीं रह गया है।

इस बीच प्रदेश का सियासी पारा रविवार को काफी गर्म उस वक्त भी दिखा जब भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन समारोह में इंडिया गठबंधन के कई बड़े नेताओं ने एकसाथ मंच साझा किया और एक सुर में भाजपा सरकार व पीएम मोदी पर जबरदस्त हमले बोले। किसानों के मुद्दों से लेकर बेरोजगारी, इलेक्टोरल बॉन्ड और ईवीएम तक हर मुद्दे पर विपक्ष ने पूरी ताकत से एकजुट होकर भाजपा सरकार व पीएम मोदी पर निशाना साधा। यही वजह रही कि विपक्षी एकजुटता को देखकर भाजपा व साहेब के दिल की धड़कने भी तेज हो गईं।

फिलहाल इन सब मुद्दों को लेकर प्रदेश का सियासी पारा इस वक्त हाई है। पूरे देश में लोकसभा चुनाव सात चरणों में होने हैं। तो वहीं महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों पर पांच चरणों में मतदान होने हैं। प्रदेश में पांच चरणों में अलग-अलग चरण में मतदान होने हैं। पिछले चुनावों से इस बार महाराष्ट्र में चुनावी स्थिति काफी अलग होने वाली है। इसका प्रमुख कारण ये है कि इस बार के चुनाव में राज्य की दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां शिवसेना और एनसीपी दो अलग-अलग गुटों में बंट चुकी हैं। दोनों ही पार्टियों में दो फाड़ हो चुकी है और दो अलग-अलग दल बन गए हैं। इनमें से एक दल जहां प्रदेश में सत्ता पक्ष में है।

तो वहीं दोनों ही पार्टियों के एक-एक दल विपक्ष की भूमिका में बैठे हुए हैं। इसलिए दो पार्टियों के अलग-अलग हो जाने से प्रदेश की सियासत में भी काफी बदलाव आ गया है। प्रदेश में प्रमुख सियासी दलों शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी में विभाजन ने राज्य की 48 लोकसभा सीटों के लिए लड़ाई को और अधिक दिलचस्प बना दिया है। जहां आम तौर पर बेरोजगारी और किसान आत्महत्या जैसे पारंपरिक मुद्दों पर ज्यादा ध्यान रहता है। वहीं इस बार प्रदेश में मुद्दे भी बदले हैं। इस बार विपक्ष के पास मराठा आंदोलन का भी मुद्दा है। तो वहीं इलेक्टोरल बॉन्ड और ईवीएम जैसे मुद्दों को भी विपक्ष जोर-शोर से उठा रहा है। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव पांच चरणों में 19 अप्रैल, 26 अप्रैल, सात मई, 13 मई और 20 मई को होंगे। जबकि वोटों की गिनती चार जून को होगी। अगर पिछले चुनाव की बात करें तो बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने 2019 के चुनाव में 48 में से 41 सीटें जीती थीं। लेकिन राज्य में विधानसभा चुनावों के बाद शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूट गया था।।

ऐसे में इस बार हालात अलग हैं। हालांकि, बाल ठाकरे की पार्टी का एक बड़ा हिस्सा टूटकर अब बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुका है। तो वहीं अजित पवार के सत्तारूढ़ एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने के साथ ही एनसीपी में भी टूट हो गई। साल 2019 के लोकसभा चुनावों में, बीजेपी 23 सीटों के साथ बड़ी पार्टी बनकर उभरी, उसके बाद अविभाजित शिवसेना 18 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी। तो वहीं शरद पवार की अविभाजित एनसीपी चार सीटों पर और कांग्रेस एक सीट पर विजयी हुई थी। जबकि एक सीट एआईएमआईएम और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। हालांकि, इस बार प्रदेश की सियासत पूरी तरह से अलग है। क्योंकि इस बार दो बड़ी पार्टियां अलग-अलग खेमों में बंट चुकी हैं। महाराष्ट्र में आगामी लोकसभा चुनावों में सौ साल से ज्यादा उम्र के 50,000 से अधिक बुजुर्गों सहित कुल 9।2 करोड़ लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करने के पात्र हैं। यह आंकड़ा 2019 से 34 लाख ज्यादा है।

इन बदली परिस्थितियों में अगर प्रदेश के अलग-अलग कुछ क्षेत्रों की सियासत की और वहां की सियासी परिस्थिति की बात करें तो कोंकण क्षेत्र में राज्य के तटीय क्षेत्र में छह अत्यधिक शहरीकृत लोकसभा सीटों वाली देश की आर्थिक राजधानी मुंबई शामिल है। जहां प्रमुख मुद्दों में परिवहन, आवास और नौकरियों से संबंधित समस्याएं शामिल हैं। इस क्षेत्र में कुल 13 लोकसभा सीटें आती हैं।

इसके अलावा पश्चिमी महाराष्ट्र क्षेत्र राज्य के सबसे विकसित क्षेत्रों में से एक है। यह इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेंटर के साथ-साथ चीनी मिलों, इथेनॉल प्लांट और कृषि-समृद्ध क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र में अब तक एनसीपी और शिवसेना काफी मजबूत रहते थे। लेकिन अब मजबूत दावेदार एनसीपी और शिवसेना में टूट का मतलब है कि आगामी चुनावों में ताजा गठबंधन के कारण उम्मीदवारों के साथ-साथ पार्टी की विचारधारा पर भी ध्यान फोकस किया जाएगा। ऐसे में इस बार यहां का मुकाबला काफी रोचक होने की उम्मीद है। क्योंकि अगर पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2019 के चुनावों में बीजेपी ने पांच सीटें जीतीं। जब वो शिवसेना के साथ गठबंधन में थी। जबकि शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी ने इस क्षेत्र से तीन-तीन सीटें जीतीं थीं।

अगर बात उत्तरी महाराष्ट्र क्षेत्र की करकें तो, यह क्षेत्र देश में अंगूर और प्याज के शीर्ष स्रोतों में से एक है। जिससे यह कृषि उपज के लिए निर्यात-आयात नीतियों में बदलाव के संबंध में असंतोष का केंद्र बन गया है। इस क्षेत्र में आदिवासियों और पिछड़े वर्गों की बड़ी आबादी है। 2019 के चुनावों में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने क्षेत्र की सभी छह सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार एक तो शिवसेना टूट चुकी है और उसका एक धड़ा ही भाजपा के साथ है। तो वहीं जिस तरह से विपक्ष किसानों का मुद्दा उठा रहा है और एमएसपी जैसे मुद्दों पर भाजपा सरकार को बुरी तरह से घेर रहा है, संभव है कि यहां पर हालात बदले दिख सकते हैं। साथ ही राहुल गांधी लगातार पिछलों व दलितों का मुद्दा भी उठाकर बीजेपी को घेर रहे हैं। ऐसे में अगर इन मुद्दों को कांग्रेस व विपक्ष ने अच्छे से जनता के बीच में परोस दिया तो निश्चित ही बीजेपी व उसके सहयोगी दलों के लिए उत्तरी महाराष्ट्र में मुश्किलें काफी बढ़ सकती हैं।

इसके अलावा मराठवाड़ा क्षेत्र बारिश की कमी से जूझता रहा है। पानी की कमी के कारण महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों की तुलना में यह कम विकसित है, जिससे यहां बेरोजगारी बड़ी समस्या है। और वर्तमान समय में राहुल गांधी बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर काफी मुखर हैं और लगातार पीएम मोदी को निशाने पर ले रहे हैं। ऐसे में राहुल का ये मुद्दा और कांग्रेस के वादे इस क्षेत्र में पार्टी के लिए संजीवनी का काम कर सकते हैं। छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) के इंडस्ट्रियल सेंटर के अलावा बाकी क्षेत्र ग्रामीण है और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। तेजी से राजमार्ग निर्माण से परिवहन को बढ़ावा मिला है।

2019 में, बीजेपी ने चार लोकसभा सीटें जीतीं तो उसकी सहयोगी शिवसेना को तीन सीटें मिलीं थीं। जबकि औरंगाबाद सीट असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने जीती थी। मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे इसी मराठवाड़ा क्षेत्र से आते हैं। ऐसे में जिस तरह से मनोज जरांगे ने शिंदे सरकार के खिलाफ हल्ला बोल रखा है। बेशक उन्हें मनाने में शिंदे सरकार ने पूरी ताकत लगा दी। लेकिन अगर विपक्ष सही से मराठाओं के हित की बात कर गया तो यहां पर भाजपा व उसके सहयोगियों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

इसके प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों और वनों से समृद्ध साथ ही विदर्भ  क्षेत्र में भी इस बार सियासी स्थिति कुछ बदली कही जा सकती है। यह राज्य के पूर्वी भाग का क्षेत्र है। हालांकि, किसान आत्महत्याओं के लिए सुर्खियों में रहा है। मुख्य रूप से गढ़चिरौली और कुछ अन्य हिस्सों में वामपंथी चरमपंथ भी समस्या रहा है। पिछले चुनाव में विदर्भ की 11 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने पांच और शिवसेना ने तीन सीटें जीती थीं। जबकि कांग्रेस और निर्दलीय एक-एक सीट पर विजयी हुए थे। ऐसे में अगर इस बार कांग्रेस को एनसीपी और शिवसेना यूबीटी का अच्छा साथ मिल जाए तो विदर्भ में भी विपक्ष भाजपा की राह में रोड़े अटका सकता है।

फिलहाल क्या होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तो तय है कि शिवसेना और एनसीपी में हुई इस भारी टूट के बाद प्रदेश की सियासी परिस्थिति में काफी बदलाव आ गया है। वहीं विपक्षी एकजुटता ने भाजपा की मुश्किलों को और भी बढ़ा दिया है। भले ही भाजपा के साथ शिवसेना और एनसीपी का एक-एक धड़ा हो। लेकिन दोनों ही पार्टियों के संस्थापक गुट विपक्षी खेमे में कांग्रेस के साथ ही खड़े नजर आते हैं। फिर वो चाहें शिवसेना के उद्धव ठाकरे हों या फिर एनसीपी के शरद पवार। ऐसे में ये तो तय है कि अगर विपक्ष इसी एकजुटता से चुनाव तक गया तो इस बार महाराष्ट्र में भाजपा की राह आसान नहीं है। और उसके लिए यहां पर एक बड़ी समस्या आने वाली है। जो उसके अबकी बार 400 पार के लक्ष्य को काफी हद तक हिला सकती है।

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