बीजेपी की लगातार बढ़ रही मुश्किलें, अब मांझी भी हुए पराए!

लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी हार से बीजेपी सही से उबर नहीं पाई है... और अपने सहयोगियों को आंख दिखाना शुरू कर दिया है... दिल्ली चुनाव में अपने सभी सहयोगियों को सीट देने से मना कर दिया है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः देश की राजनीति में इस समय भयंकर उठापटक का दौर चल रहा है…. बीजेपी के सितारे गर्दिश में चल रहें है…. बाबा साहेब पर अमित शाह के द्वारा दिए गए बयान के बाद से पूरे देश नें सियासी भूचाल मचा हुआ है…. विपक्ष और आम जनता से बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है….. इस बीच बिहार से बड़ी खबर निकलकर सामने आ रही है…. और पशुपति पारस के बाद अब एक और नेता ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया है….. पशुपति पारस यानी चिराग पासवान के चाचा और आरएलजेपी के मुखिया पशुपति पारस ने कहा कि दरअसल भारतीय जनता पार्टी उनको सम्मान नहीं दे रही है….. एनडीएम में उनको उचित सम्मान नहीं दे रही है…. इस वजह से वह अब बिहार की सभी दो सौ तैंतालीस सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी…. जिसके बाद उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ दिया…. और बीजेपी से अलग हो गए…. आपको बता दें कि बीजेपी इस समय अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है…. बीजेपी का कोई भी फार्मूला काम नहीं कर रहा है…. उसकी तोड़ो राजनीति काम नहीं कर रही है….

बता दें कि भारतीय जनता पार्टी पहले अपने साथ राज्यों की पार्टियों को शामिल करती है…. और धीरे- धीरे वहा अपनी पैठ बनाती है…., जिसके बाद अपनी सहयोगी पार्टियों के विधायको को अपने खेमें में मिलाती है…. उसके बाद उस पार्टी को खत्म करने का प्लान करती है…. लेकिन इस समय बीजेपी का कोई फार्मूला काम नहीं कर रहा है…. जितने भी सहयोगी हैं सभी ने बगावत कर दिया है…. और दिल्ली में अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव बीजेपी के गले की फांस बन गया है…. सभी सहयोगी पार्टियां दिल्ली विधानसभा चुनाव में सीटों की मांग कर रही है…. लेकिन भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली यूनिट ने साफ कर दिया है…. कि बीजेपी दिल्ली चुनाव में किसी भी सहयोगी पार्टी को एक भी सीट नहीं देगी…. जिसका फरमान दिल्ली यूनिट प्रमुख वीरेंद्र सचदेवा ने कर दिया है…. जिसके बाद से बगावत के सुर तेज हो गए है….

वहीं दिल्ली चुनाव में सीट न मिलने की वजह से बीजेपी की सभी सहयोगी पार्टियों ने बीजेपी से बगावत कर दी है…. और दिल्ली की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है…. आपको बता दें कि अंबेडकर विवाद के बाद बीजेपी की चुप्पी एनडीए के लिए घातक होती दिखाई दे रही है…. वहीं इस चुप्पी और बीजेपी की ध्रुवीकरण और महापुरूषों के अपमान का सारा परिणाम आगामी चुनावों में देखने को मिलेगा…. वही दिल्ली में जीतना भारतीय जनता पार्टी के बस की बात नहीं है…. अरविंद केजरीवाल ने पहले से ही बीजेपी की मंशा पर पानी फेरने का काम किया है…. वहीं अब सहयोगी नेताओं की बगावत ने बीजेपी के जले पर नमक छिड़कने काम कर रही है….

आपको बता दें कि केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने ऐलान कर दिया है कि उनकी पार्टी HAM दिल्ली विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ेगी…. इससे पहले कयास लगाए जा रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली की कुछ विधानसभा सीटें अपने सहयोगी दलों को भी दे सकती है….. जेडीयू, लोक जनशक्ति पार्टी और जीतन राम मांझी की HAM ने दिल्ली में विधानसभा सीटों की डिमांड रखी थी…. हालांकि अब साफ हो गया है कि HAM दिल्ली के चुनाव में स्वतंत्र रूप से लड़ेगी….. पार्टी ने कहा है कि जल्द ही उम्मीदवारों की सूची की घोषणा की जाएगी…. HAM के सूत्रों ने कहा कि उन्होंने कई बार बीजेपी नेतृत्व से संपर्क किया….. लेकिन उनकी तरफ से उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली….. वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दो सीटें जेडीयू…. और एक सीट लोक जनशक्ति पार्टी को दी थी….. जेडीयू ने बुराड़ी और संगम विहार सीटों पर और लोक जनशक्ति पार्टी ने सीमापुरी सीट पर चुनाव लड़ा था….. हालांकि, अगर नतीजों की बात की जाए तो, जेडीयू और एलजेपी कोई सीट नहीं जीत सकी थी….. जेडीयू को चौरासी हजार वोट यानी जीरो दशमलव नौ एक फीसदी…. और एलजेपी को करीब तैंतीस हजार वोट यानी जीरो दशमलव तीन पांच फीसदी वोट ही मिल सके थे…..

आपको बता दें कि दिल्ली में पच्चीस दिसंबर को हुई एनडीए की मीटिंग में दिल्ली विधानसभा चुनाव की रणनीति पर भी चर्चा हुई….. इस दौरान हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत के लिए बधाई भी दी गई….. झारखंड का भी जिक्र हुआ, जहां एनडीए के घटक दलों ने मिल कर चुनाव लड़ा था…. बीजेपी ने सहयोगी दलों के बड़े नेताओं को दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए आमंत्रित किया है…. वहीं अब तक खबर थी कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे, केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी…. और चिराग पासवान दिल्ली में एनडीए के लिए प्रचार कर सकते हैं…. लेकिन अब जीतन राम मांझी ने खुद को अलग कर लिया है…..

दरअसल दिल्ली में बड़ी तादाद में पूर्वांचली वोटर्स हैं…. एनडीए इन्हें अपने पाले में लाना चाहती है….. इसकी जिम्मेदारी बिहार के नेताओं पर होगी…. बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड मूल के करीब पच्चीस फीसदी मतदाता दिल्ली में रहते हैं….. इनका करीब बीस सीटों पर दबदबा है….. इनमें गोकलपुर, मटियाला, द्वारका, नांगलोई, करावल नगर, जनकपुरी, त्रिलोकपुरी, बुराड़ी, उत्तम नगर, संगम विहार, जनकपुरी, त्रिलोकपुरी, किराड़ी, विकासपुरी और समयपुर बादली जैसी सीटें शामिल हैं…. वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकजनशक्ति पार्टी नेता पशुपति पारस ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स से ‘मोदी का परिवार’ पंक्ति को हटा दिया था…. पशुपति के इस कदम से बिहार की राजनीति में चर्चा तेज हो गई कि पारस अब एनडीए में नहीं हैं या एनडीए से बाहर हो चुके हैं….. हालांकि उन्होंने अपने अगले कदम का ऐलान नहीं किया है लेकिन यह साफ है कि अब पशुपति पारस ने एनडीए से दूरी बना ली है…. अब इसका औपचारिक ऐलान कब होगा…. इस पर सबकी नजर टिकी है…. वैसे पशुपति पारस ने यह कदम तब उठाया जब एनडीए के घटक दलों की सोमवार को मीटिंग हुई….

आपको बता दें कि राजधानी के प्रदेश जदयू कार्यालय में एनडीए के सभी घटक दलों के प्रदेश अध्यक्षों की मीटिंग हुई थी…. इस मीटिंग में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री दिलीप जायसवाल, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा, हम पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार, लोजपा रामविलास के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष मदन चौधरी ने हिस्सा लिया था…. इस मीटिंग में लोजपा पशुपति को बुलावा नहीं गया था….. जानकारी के मुताबिक पशुपति पारस को इस मीटिंग में बुलाए जाने को लेकर उम्मीद थी….

वहीं इस साल हुए लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जब पशुपति पारस की अपने भतीजे और वर्तमान केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान से राजनीतिक अदावत चल रही थी…. तब से बिहार की राजनीति में वह उपेक्षित चल रहे थे…. हालांकि पशुपति पारस ने अपनी तरफ से एनडीए में वापसी को लेकर पुरजोर कोशिश की थी…. पशुपति पारस ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की थी…. पशुपति पारस को पहला झटका तब लगा…. जब उनके द्वारा की जा रही लगातार मांग के बाद भी लोकसभा चुनाव में न तो उनको विधिवत एनडीए में शामिल माना गया…. और न ही उनकी पार्टी को लोकसभा की कोई सीट दी गयी….. आपको बता दें कि बिहार में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा की चार सीटों पर उपचुनाव के पहले पशुपति पारस ने तरारी सीट पर चुनाव लड़ने को लेकर भी अपनी मंशा को खुले तौर पर जाहिर किया था….. हालांकि उनकी यह मांग भी पूरी नहीं हुई थी…..

बता दें कि एनडीए के साथ अपने रिश्तों में उठा पटक को लेकर पशुपति पारस ने इसी माह में संदेश देने की भी कोशिश की थी….. इसी माह उन्नीस और बीस नवंबर को जब पशुपति पारस ने राजधानी में अपने आवास पर पार्टी के जिला से लेकर राज्य स्तर के नेताओं की मीटिंग बुलायी थी….. तब उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से राय भी ली थी…. हालांकि बाद में यह भी जानकारी दी गयी कि आगामी अट्ठाइस नवंबर को अपने पैतृक निवास खगडिया के शहरबन्नी में आयोजित कार्यक्रम के बाद वह अपनी आगे की रणनीति तय करेंगे….. एनडीए की मीटिंग में नहीं बुलावे जाने के अलावा हाल के दिनों में कुछ ऐसी भी राजनीतिक घटनाएं घटी….. जो उनके लिए अनुकूल नहीं थी…. लंबे अरसे तक चली अदावत के बाद पशुपति पारस के पटना स्थित दफ्तर को खाली करना पडा था. इस ऑफिस को अब चिराग पासवान की पार्टी के प्रदेश कार्यालय के लिए कर्णांकित कर दिया गया है….. इसके अलावा चंद रोज पहले ही चिराग पासवान ने यह बयान दिया था कि पशुपति पारस एनडीए में थे ही कब? उन्होंने यहां तक कहा था कि उनकी अपनी पार्टी है तो फैसला उनको लेना है…. वो लोकसभा चुनाव में भी नहीं थे…. विधानसभा चुनाव में भी कोई उनको गिनती में नहीं रख रहा है…. अलग वो होता है जो किसी चीज का हिस्सा हो…..

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