कोरोना दिखाकर चीन बन रहा पूरी दुनिया की इकोनॉमी के लिए मुसीबत, इन आंकड़ों से समझें खेल

नई दिल्ली। चीन में इस समय कोविड के हालात ये हैं कि ना तो सडक़ों पर जगह है और ना अस्पतालों में. बल्कि हर जगह एक ही हालात है, बीमारी से जूझते लोग और हर पल दम तोड़ते लोग. कोरोना का नया वैरिएंट बीएफ.7 वहां कहर बरपा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक चीन भले आंकड़े छिपा रहा हो, पर वहां कोरोना से रोजाना मरने वालों की संख्या 5,000 के करीब है. वहीं आंकड़े दिखाते हैं कि चीन में बढ़ता कोरोना का प्रकोप सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा. भारत भी इससे अछूता नहीं रहने वाला है.
हेल्थ इकोनॉमिस्ट और एपिडेमियोलॉजिस्ट एरिक फेइग्ल डिंग के हवाले से ईटी ने लिखा है कि आने वाले तीन महीनों के अंदर चीन कर जहां 60 प्रतिशत आबादी तो वहीं दुनिया की 10 प्रतिशत आबादी कोरोना से संक्रमित हो सकती है. इसमें करोड़ों लोगों की जान जाएगी, इसका असर दुनिया की हर इकोनॉमी पर पड़ेगा.
पिछली बार जब कोरोना की पहली लहर आई थी, तब भारत में अप्रैल से जून 2020 तक पूरे तीन महीने का लॉकडाउन रहा था. भारत की अर्थव्यवस्था का एक चौथाई हिस्सा इसमें साफ हो गया था. वहीं सरकार का खर्च इतना बढ़ गया कि वित्त वर्ष 2020-21 में उसे भारी राजकोषीय घाटे का सामना करना पड़ा. सरकार का राजकोषीय घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट जीडीपी के मुकाबले रिकॉर्ड 9.2 प्रतिशत पर पहुंच गया.
इस बार की हालात को लेकर ईएसजी रेटिंग सर्विस में इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट के प्रमुख स्वरूप गुप्ता का कहना है कि चीन में फैल रहा कोरोना का नया वैरिएंट निश्चित तौर पर भारत पर असर डालेगा, पर सरकार की सजगता से संभावना दिख रही है कि इस बार हालात नियंत्रण में रहेंगे.
दुनिया को चीन की जरूरत है, ऐसा मानना है बंधन बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट सिद्धार्थ सान्याल का. उनका कहना है कि अगर चीन धीमा पड़ता है, या अगले तीन-चार महीने चीन में बंद की स्थिति रहती है, तो निश्चित तौर पर ग्लोबल इकोनॉमी में सुधार की प्रक्रिया प्रभावित होगी.
चीन इस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. और इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि छोटी अर्थव्यस्था या कमजोर देश उस पर कितना निर्भर करते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड की वजह से चीन के मैन्यूफैक्चर हब पर असर होगा. भारत समेत दुनिया के कई देश चीन में बनने वाले सामान पर निर्भर करते हैं, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक और टेलीकॉम से जुड़े डिवाइस के लिए. ये सभी अच्छी ग्रोथ को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं. ऐसे में अगर चीन में कोरोना का कहर बढ़ता है, तो इनकी सप्लाई पर असर पड़ेगा.
मार्च 2022 से पहले के 12 महीनों में भारत और चीन के बीच मर्चेंडाइज का कारोबार 34 प्रतिशत बढ़ा है. ये 115.83 अरब डॉलर रहा है. वहीं अप्रैल 2022 से अक्टूबर 2022 के बीच ये 69.04 अरब डॉलर रहा है. भले भारत चीन पर अपनी निर्भरता को घटाने की कोशिश कर रहा हो, पर अब भी उसका सबसे ज्यादा आयात चीन से होता है.
वहीं भारत की इलेक्ट्रॉनिक, एपैरल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों से लेकर गोल्ड और डायमंड एक्सपोर्टर्स को सप्लाई चेन की दिक्कतों और डिमांड की कमी का डर सताने लगा है. भारत की फार्मास्युटिकल्स इंडस्ट्री चीन से आयात किए जाने वाले एपीआई पर निर्भर करती है. इसकी हिस्सेदारी करीब 25 प्रतिशत तक है.
नई दिल्ली। चीन में इस समय कोविड के हालात ये हैं कि ना तो सडक़ों पर जगह है और ना अस्पतालों में. बल्कि हर जगह एक ही हालात है, बीमारी से जूझते लोग और हर पल दम तोड़ते लोग. कोरोना का नया वैरिएंट बीएफ.7 वहां कहर बरपा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक चीन भले आंकड़े छिपा रहा हो, पर वहां कोरोना से रोजाना मरने वालों की संख्या 5,000 के करीब है. वहीं आंकड़े दिखाते हैं कि चीन में बढ़ता कोरोना का प्रकोप सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा. भारत भी इससे अछूता नहीं रहने वाला है.
हेल्थ इकोनॉमिस्ट और एपिडेमियोलॉजिस्ट एरिक फेइग्ल डिंग के हवाले से ईटी ने लिखा है कि आने वाले तीन महीनों के अंदर चीन कर जहां 60 प्रतिशत आबादी तो वहीं दुनिया की 10 प्रतिशत आबादी कोरोना से संक्रमित हो सकती है. इसमें करोड़ों लोगों की जान जाएगी, इसका असर दुनिया की हर इकोनॉमी पर पड़ेगा.
पिछली बार जब कोरोना की पहली लहर आई थी, तब भारत में अप्रैल से जून 2020 तक पूरे तीन महीने का लॉकडाउन रहा था. भारत की अर्थव्यवस्था का एक चौथाई हिस्सा इसमें साफ हो गया था. वहीं सरकार का खर्च इतना बढ़ गया कि वित्त वर्ष 2020-21 में उसे भारी राजकोषीय घाटे का सामना करना पड़ा. सरकार का राजकोषीय घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट जीडीपी के मुकाबले रिकॉर्ड 9.2 प्रतिशत पर पहुंच गया.
इस बार की हालात को लेकर ईएसजी रेटिंग सर्विस में इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट के प्रमुख स्वरूप गुप्ता का कहना है कि चीन में फैल रहा कोरोना का नया वैरिएंट निश्चित तौर पर भारत पर असर डालेगा, पर सरकार की सजगता से संभावना दिख रही है कि इस बार हालात नियंत्रण में रहेंगे.
दुनिया को चीन की जरूरत है, ऐसा मानना है बंधन बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट सिद्धार्थ सान्याल का. उनका कहना है कि अगर चीन धीमा पड़ता है, या अगले तीन-चार महीने चीन में बंद की स्थिति रहती है, तो निश्चित तौर पर ग्लोबल इकोनॉमी में सुधार की प्रक्रिया प्रभावित होगी.
चीन इस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. और इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि छोटी अर्थव्यस्था या कमजोर देश उस पर कितना निर्भर करते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड की वजह से चीन के मैन्यूफैक्चर हब पर असर होगा. भारत समेत दुनिया के कई देश चीन में बनने वाले सामान पर निर्भर करते हैं, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक और टेलीकॉम से जुड़े डिवाइस के लिए. ये सभी अच्छी ग्रोथ को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं. ऐसे में अगर चीन में कोरोना का कहर बढ़ता है, तो इनकी सप्लाई पर असर पड़ेगा.
मार्च 2022 से पहले के 12 महीनों में भारत और चीन के बीच मर्चेंडाइज का कारोबार 34 प्रतिशत बढ़ा है. ये 115.83 अरब डॉलर रहा है. वहीं अप्रैल 2022 से अक्टूबर 2022 के बीच ये 69.04 अरब डॉलर रहा है. भले भारत चीन पर अपनी निर्भरता को घटाने की कोशिश कर रहा हो, पर अब भी उसका सबसे ज्यादा आयात चीन से होता है.
वहीं भारत की इलेक्ट्रॉनिक, एपैरल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों से लेकर गोल्ड और डायमंड एक्सपोर्टर्स को सप्लाई चेन की दिक्कतों और डिमांड की कमी का डर सताने लगा है. भारत की फार्मास्युटिकल्स इंडस्ट्री चीन से आयात किए जाने वाले एपीआई पर निर्भर करती है. इसकी हिस्सेदारी करीब 25 प्रतिशत तक है.

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