सबका अरमान जन-जन तक पहुंचे अभियान

2024 चुनाव के लिए सियासी पार्टियों की तैयारी शुरू

  • भाजपा टिफिन तो कांग्रेस भारत जोड़ो से जुड़ेगी जनता से
  • आप तिरंगा व सपा रथयात्रा से जाएगी आम जन के द्वार पर
  • पुराने साथियों पर बीजेपी डाल रही डोरे

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही महीनों का समय रह गया है, सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि समय से पहले चुनावों की घोषणा हो सकती है। खैर, ये सब कयास ही है। जो सामने दिख रहा है वो राजनैतिक दलों का प्रयास है। जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे सियासी पार्टियां आगामी 2024 लोकसभ चुनाव जीतने के नए-नए तरीके तलाश रही हैं। कोई टिफिन के द्वारा कार्यकर्ताओं व जन-जन तक पहुंचना चाहता है तो कोई तिरंगा यात्रा निकाल रहा तो कोई रथयात्रा,कुछ भारत जोड़ों यात्रा के जरिये जनता को अपने से जोडऩा चाहते हैं। जनता पर इनके क्रियाकलापों पर कितना प्रभाव पड़ता है ये तो चुनाव के परिणामों से पता चल जाएगा।
वही कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को झटका दिया है। वहीं, विपक्षी दल एकजुट होकर बीजेपी को चुनौती देने की तैयारी में हैं। चुनावी पंडितों का अनुमान है कि विपक्षी दलों की एकता बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव में मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों का महाजुटान होने जा रहा है। मकसद है 2024 में बीजेपी को शिकस्त देने की साझा रणनीति बनाना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता की इस महामुहिम के सारथी बने हैं। उनकी ही पहल 23 जून को विपक्ष के दिग्गज पटना में जुटने जा रहे हैं। पहले ये मीटिंग 12 जून को होने वाली थी। अब सब जुटेंगे। राहुल गांधी भी होंगे। ममता बनर्जी भी होंगी। शरद पवार और अरविंद केजरीवाल भी होंगे। एमके स्टालिन भी होंगे और अखिलेश भी। एंटी-बीजेपी पार्टियों के तकरीबन हर बड़े चेहरे मौजूद होंगे।
विपक्ष की रणनीति से निपटने के लिए बीजेपी मिशन 2024 के लिए अपना प्लान तैयार कर रही है। जिसके तहत बीजेपी एनडीए से अलग हो चुके अपने पुराने साथियों को साथ लाने की तैयारी में है। दरअसल, बीजेपी को पता है कि एनडीए के पुराने साथियों के साथ मिलकर वो कई राज्यों में गैर एनडीए दलों को मात दे सकती है। यही वजह है कि पुराने साथियों की घर वापसी की तैयारी की जा रही है। पिछले कुछ दिनों में टीडीपी और बीजेपी के बीच नजदीकियां बढ़ती देखी जा रही हैं। टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने हाल ही में दिल्ली पहुंचकर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की थी। अब चर्चा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दोनों दल गठबंधन कर सकते हैं। करीब पांच साल पहले टीडीपी एनडीए से अलग हो गए थे। उधर बीजेपी की नजर टीडीपी के अलावा अकाली दल पर भी है। किसान आंदोलन के दौरान अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था और अकाली दल बीजेपी से अलग हो गई थी। राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए ने बीजेपी को सपोर्ट भी किया था। पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद दोनों दलों को लगना है कि एक-दूसरे का साथ देना जरूरी है। यूपी में बीजेपी की स्थिति सबसे अच्छी है, लेकिन फिर भी सीटों के लिहाज से सबसे राज्य में बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। बीजेपी यहां अपने पुराने साथी ओम पप्रकाश राजभर को साथ ला सकती है। राजभर भी कुछ दिनों से अखिलेश यादव और मायावती के खिलाफ तल्ख तेवर अपनाए हुए हैं।

सपा-आप की मुलाकात भी खास

लखनऊ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुलाकात कई मायनों में अहम है। इसके जरिये जहां केजरीवाल दिल्ली में अधिकारियों के तबादलों को लेकर लाए गए अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष को लामबंद करना चाहते हैं, वहीं अखिलेश भी जनता को यह संदेश देना चाहते हैं कि भाजपा से लड़ाई में उनकी पार्टी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। जाहिर है कि अगर यह अध्यादेश राज्यसभा में गिर गया तो विपक्ष को यह मनोवैज्ञानिक संदेश कि भाजपा अपराजेय नहीं है, जनता को देने का अवसर मिलेगा। अगर कम मतों के अंतर से भी यह विधयेक राज्यसभा में पास होता है, तो भी विपक्ष के रणनीतिकार मानते हैं कि वे यह संदेश देने में सफल होंगे कि अपनी एकता को मजबूत कर भाजपा को चुनौती दी जा सकती है। केजरीवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव समेत विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और विपक्ष के अन्य नेताओं से मिल चुके हैं। यूपी में भाजपा के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल सपा ही है। इसलिए इस लड़ाई में उन्होंने सपा अध्यक्ष से भी समर्थन मांगा है। सूत्रों के मुताबिक, पटना में विपक्षी नेताओं की जो बैठक निकट भविष्य में होने जा रही है, उस लिहाज से भी यह मुलाकात अहम है। इस बैठक में आप और सपा के शीर्ष नेतृत्व का शामिल होना तय है। इस बैठक में लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष की संयुक्त रणनीति बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जाएगा। जाहिर है एक साथ बैठने से पहले प्रमुख विपक्षी नेताओं का इस तरह से मिलना उस अभियान को मजबूती दे सकता है। इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव अलग-अलग राज्यों में जाकर नेताओं से मिल रहे हैं, ताकि भाजपा को लोकसभा चुनाव में कड़ी चुनौती दी जा सके। अब इस लक्ष्य में ये क्षेत्रीय शक्तियां कितना सफल होती हैं, यह तो भविष्य ही बताएगा।

इस बार हारेगी बीजेपी: तेजस्वी

बिहार के डेप्युटी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव तो इतने उत्साहित हैं कि आने वाले हर चुनाव में बीजेपी की हार की भविष्यवाणी कर रहे हैं। इससे पहले फरवरी में नीतीश कुमार दावा कर रहे हैं कि अगर सभी विपक्षी पार्टियां एक साथ आ गईं तो 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 100 सीटों का आंकड़ा तक नहीं छू पाएगी। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जबरदस्त जीत ने ग्रैंड ओल्ड पार्टी नए जोश में है। एकजुट विपक्ष के नेतृत्व को लेकर उसकी दावेदारी मजबूत हुई है। कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद अब विपक्षी एकजुटता की तस्वीर बदल गई है। उससे पहले तक ममता, केसीआर, केजरीवाल जैसे क्षत्रप अपने-अपने स्तर पर विपक्षी एकजुटता की मुहिम चला रहे थे लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने से खुलकर गुरेज कर रहे थे।

देश के लिए क्षेत्रीय दलों के बीच एकता जरूरी : फारूक अब्दुल्ला

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने 2024 के लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों के साथ आने पर बल देते हुए कहा कि धर्म के आधार पर देश को बंटने से बचाने के लिए यह जरूरी है। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा से उनके निवास पर मुलाकात करने के बाद उन्होंने कहा कि भारत की विविधता को बचाया जाना चाहिए। तीसरे मोर्चे की जरूरत संबंधी एक सवाल क जवाब में अब्दुल्ला ने कहा के सभी के लिए मेरा संदेश है कि भारत में विविवधता में एकता है। हमें विविधता की रक्षा करनी है। इससे देश की एकता की रक्षा होगी। जब उनसे पूछा गया कि क्या 2024 के चुनाव में भाजपा का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय दलों का साथ आना जरूरी है, तो उन्होंने कहा, प्रश्न भाजपा का नहीं बल्कि देश का है। क्या आप धर्म के आधार पर देश को बंटा देखना चाहते हैं या देश को आप एकजुट चाहते हैं? यह विविधता भरा देश है। अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि उनमें कर्नाटक के साथ कोई साम्यता नहीं है और न ही देवेगौड़ा का कश्मीर के साथ कोई साम्यता है, लेकिन उन्हें जो चीज एक रखती है वह है राष्टï्र निर्माण। जब उनसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पटना में विपक्षी दलों द्वारा विपक्षी दलों की एक बैठक बुलाये जाने के बारे में पूछा गया, तो कहा कि ये बैठकें अहम हैं, क्योंकि यह विपक्ष को 2024 के चुनाव के लिए एकजुट करेगी। जब उनसे कहा गया कि देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल सेकुलर (जदएस) को इस बैठक के लिए नहीं बुलाया गया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें आशा है कि धीरे-धीरे सभी दल साथ आयेंग।

बढ़ रही कांग्रेस की अहमियत

कांग्रेस का नेतृत्व तो उन्होंने अब भी स्वीकार नहीं किया है लेकिन अब ग्रैंड ओल्ड पार्टी की अहमियत बढ़ गई है। विपक्षी एकजुटता के लिए वह अपरिहार्य हो गई है। इससे पहले तक सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी के खिलाफ एकजुटता की मुहिम में वह हाशिए पर चलती दिख रही थी। लेकिन कर्नाटक नतीजों के बाद तस्वीर बदल चुकी है। कांग्रेस की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसके शीर्ष नेताओं की बैठक में मौजूदगी हो सके, इसके लिए नीतीश को पटना की बैठक की तारीख बदलनी पड़ी। अब बैठक में राहुल गांधी भी शामिल होंगे और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को छोडक़र बाकी सभी विपक्षी दलों की सियासी जमीन किसी राज्य विशेष तक ही सीमित है। अरविंद केजरीवाल की आप भी दिल्ली और पंजाब में ही मजबूत है। हर राज्य के अपने-अपने सियासी समीकरण हैं। राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, केसीआर…सबकी अपनी महत्वाकांक्षाएं, सबकी अपनी राजनीति। विपक्ष की तरफ से आखिर मोदी के टक्कर में चेहरा कौन होगा? ये एक ऐसा सवाल है जो पटना की बैठक में एकजुटता का असल इम्तिहान ले सकता है। बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की तरफ से साझा उम्मीदवार उतारने की दिशा में सहमति का रास्ता इतना आसान भी नहीं है। वजह है अलग-अलग राज्यों का अलग-अलग सियासी समीकरण। वजह है कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने हित। इस अंतर्विरोध से पार पाना आसान नहीं होगा।

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