कर्नाटक में कांग्रेस सरकार का यूटर्न, प्राइवेट कंपनियों में आरक्षण वाले बिल को ठंडे बस्ते में डाला
नई दिल्ली। कर्नाटक सरकार ने उद्योग जगत के भारी विरोध के बाद निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण अनिवार्य करने वाले विधेयक को रोक दिया है। बताया जा रहा है कि राज्य विधानसभा में पेश करने से पहले सरकार इस विधेयक पर दोबारा विचार करेगी। यह राज्य कैबिनेट द्वारा उस विधेयक को मंजूरी दिए जाने के कुछ घंटों बाद आया, जिसमें निजी क्षेत्र में 50 प्रतिशत प्रबंधन पदों और 75 प्रतिशत गैर-प्रबंधन पदों पर कन्नडिगाओं की नियुक्ति का प्रस्ताव था।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने मंत्रियों के साथ विधेयक की सराहना की और अपनी सरकार को कन्नड़ समर्थक बताया। उन्होंने कहा कि उनकी प्राथमिकता कन्नडिगाओं के कल्याण की देखभाल करना थी। हालाँकि, इस कदम की आईटी उद्योग ने आलोचना की, जिसने शिकायत की कि इस तरह के बिल से बेंगलुरु में तकनीकी उद्योग की वृद्धि बाधित होगी और नौकरियों पर असर पड़ेगा। वहीं, कर्नाटक के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री प्रियांक खडग़े ने कहा कि राज्य में नौकरियों पर कन्नड़वासियों का पहला अधिकार है और निजी क्षेत्र कोटा बिल, जिसे रोक दिया गया है, देर-सबेर लागू किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि फिलहाल उद्योगों में इसे लेकर असमंजस की स्थिति है, जिसके चलते इस प्रस्ताव को रोक दिया गया है। हम उनकी आशंकाओं को दूर करने के लिए उनके साथ विचार-विमर्श करेंगे। राज्य में लोगों का नौकरी पर पहला अधिकार है। कर्नाटक राज्य उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार विधेयक, 2024 गुरुवार को विधानसभा में पेश किए जाने की संभावना थी।
सॉफ्टवेयर निकाय नैसकॉम ने एक विज्ञप्ति में कहा, नैसकॉम के सदस्य इस विधेयक के प्रावधानों को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं और राज्य सरकार से विधेयक को वापस लेने का आग्रह करते हैं। विधेयक के प्रावधान इस प्रगति को उलटने, कंपनियों को दूर करने और स्टार्टअप को दबाने की धमकी देते हैं, खासकर जब अधिक वैश्विक कंपनियां (जीसीसी) राज्य में निवेश करना चाह रही हैं।