कर्नाटक में कांग्रेस के लिए अपने ही बढ़ा रहे मुश्किलें

नई दिल्ली। देश में लोकसभा चुनावों को लेकर माहौल गरमाया हुआ है। हर ओर सिर्फ चुनावी चर्चाएं ही हो रही हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक चुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी योजनाओं को भी अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। सत्ताधारी दल भाजपा जहां अबकी बार 400 पार के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है। तो वहीं दूसरी ओर है मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस। कांग्रेस भी इस बार पूरी तैयारी के साथ भाजपा का मुकाबला करने के लिए उतर रही है। साथ ही अपनी तैयारियों को भी पुख्ता बनाने में जुटी है। जबसे भाजपा ने जोर पकड़ा है, उसने उत्तर भारत व हिंदी भाषी राज्यों में अपना दबदबा कायम किया है।

वहीं कांग्रेस इन हिंदी भाषी राज्यों समेत लगभग पूरे उत्तर भारत में ही सिमटती जा रही है। लेकिन साउथ में जरूर कांग्रेस अभी भी मजबूती से डटी हुई है। ऐसे में इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस साउथ में खुद को और भी मजबूत बनाना चाह रही है। इसके लिए वो कर्नाटक में अपनी किलेबंदी करना चाह रही है। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कर्नाटक से काफी उम्मीदें हैं। उम्मीदें इसलिए भी हैं क्योंकि इस बार कर्नाटक की सत्ता भी कांग्रेस के ही हाथ में है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भाजाप को शिकस्त देकर प्रदेश की सत्ता हासिल की थी। एक अच्छी जीत के साथ कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता में वापस आई है।

इसलिए कांग्रेस चाहती है कि अब विधानसभा की जीत और पार्टी की सत्ता का फायदा वो इन लोकसभा चुनाव में भी उठाए। इसीलिए कांग्रेस ने कर्नाटक में मेहनत करनी शुरू कर दी है। कांग्रेस की ओर से इस बार 20 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा गया है। बता दें कि कर्नाटक में लोकसभा की कुल 28 सीटें हैं। जिनमें से 2019 के लोकसभा चुनाव में 25 पर अकेले भाजपा ने कब्जा जमाया था। हालांकि, तब प्रदेश में सरकार भी भाजपा की ही थी। अब जब प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में है तो वो इसका फायदगा लोकसभा चुनावों में उठाना चाह रही है और कम से कम 20 लोकसभा सीटों पर अपना ‘हाथ’ लहराना चाह रही है। इसके लिए कांग्रेस ने अपनी योजनाओं पर काम करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने प्रदेश में पार्टी के पक्ष में माहौल बनाना भी शुरू कर दिया है।

बेशक प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता है और कांग्रेस की सीटें यहां बढ़ना तय है। लेकिन फिर भी कांग्रेस के लिए ऐसा करना इतना भी आसान नहीं है। उसका एक कारण ये है कि विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में अंतर होता है। विधानसभा चुनावों में भाजपा के पास न तो कोई चेहरा था और न ही कोई मुद्दा। ऊपर से सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार से लोग पूरी तरह से त्रस्त थे और सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी थी। लेकिन लोकसभा चुनावों में हालात दूसरे हैं। लोकसभा चुनावों में भाजपा सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ती है। मोदी के नाम पर वोट मांगती है।

ऐसे में मोदी की फेस वैल्यू को कर्नाटक में कम करना कांग्रेस की जिम्मेदारी होगी। हालांकि, कांग्रेस के लिए ऐसा करना संभव इसलिए भी हो सकेगा। क्योंकि कांग्रेस के पास प्रदेश में डीके शिवकुमार जैसा एक बड़ा चेहरा है। डीके शिवकुमार वो शख्स हैं जिनकी मेहनत के दम पर कांग्रेस कर्नाटक में सत्ता में आई है। डीके शिवकुमार प्रदेश की जनता के बीच भी अपनी एक खास पकड़ रखते हैं। तो वहीं उन्हें अन्य दलों से भी सामंजस्य बिठाना आता है। और आर्थिक दृष्टि से भी डीके शिवकुमार एक बड़ा फैक्टर हैं। ऐसे में डीके शिवकुमार में वो पावर है कि वो प्रदेश में पीएम मोदी के फेम का डटकर सामना कर सकते हैं। क्योंकि विधानसभा चुनावों में भी डीके शिवकुमार ने डटकर सामना किया था।

हालांकि, कांग्रेस के सामने कुछ चुनौतियां भी हैं जिनसे उसे लोकसभा चुनावों से पहले ही पार पाना होगा। दरअसल, प्रदेश में कांग्रेस को चुनौती विरोधियों से या भाजपा से नहीं बल्कि अपनों से ही मिल रही है। दरअसल, प्रदेश में पार्टी के अंदर अंतरकलह भी मची हुई है। ये अंतरकलह एक बार फिर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और उनके समर्थकों के बीच मची हुई है। आम चुनाव से ठीक पहले कर्नाटक में दलित मुख्यमंत्री की मांग उठने लगी है। अचानक उठी इस मांग ने प्रदेश कांग्रेस में एक बार फिर ऑल इज वेल न होने का इशारा किया है। सूत्रों के मुताबिक, उपमुख्यमंत्री और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार द्वारा ढाई साल के कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री पद का दावा करने के सभी प्रयास विफल करने के लिए ऐसी मांग की जा रही है।

+जबकि दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ ईडी का मामला खारिज किए जाने के बाद उपमुख्यमंत्री शिवकुमार का खेमा उत्साहित है। उनके समर्थक पहले से ही ‘डी.के. शिवकुमार भावी मुख्यमंत्री’ के नारे लगा रहे हैं। जिससे मुख्यमंत्री सिद्धामरैया और उनका खेमा नाराज बताया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि यह लगभग तय है कि उपमुख्यमंत्री शिवकुमार सीएम पद के लिए दावा करेंगे और ऐसी किसी भी परिस्थिति से बचने की कोशिश में सीएम सिद्धारमैया के करीबी सहयोगियों ने, जो कैबिनेट मंत्री भी हैं, राज्य में सत्ता परिवर्तन की स्थिति में दलित सीएम की मांग उठाई है। सहकारिता मंत्री, के.एन. राजन्ना और समाज कल्याण मंत्री, डॉ. एच.सी. महादेवप्पा ने कर्नाटक के लिए एक दलित मुख्यमंत्री के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है। दरअसल, वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की मानें तो निस्संदेह, उप मुख्यमंत्री शिवकुमार को उनके खिलाफ ईडी का मामला खारिज होने के बाद बढ़त हासिल हुई है।

सीएम सिद्धामरैया खेमा, जिसने हमेशा कहा था कि उपमुख्यमंत्री शिवकुमार को किसी भी समय सलाखों के पीछे डाला जा सकता है और इससे पार्टी को अपूरणीय क्षति होगी, अब उनके खिलाफ अपना मुख्य हथियार खो चुका है। गौरतलब है कि सीएम सिद्धामरैया ने भ्रष्टाचार के आरोपों का हवाला देकर 2013 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान दो साल के लिए शिवकुमार को कैबिनेट में जगह नहीं दी थी। हालांकि, शिवकुमार ने हमेशा उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को गलत बताया। सूत्रों ने कहा कि ईडी मामला रद्द होने के बाद सीएम सिद्धामरैया अब भ्रष्टाचार का कार्ड नहीं खेल सकते। उपमुख्यमंत्री शिवकुमार के एक अन्य करीबी सहयोगी ने कहा कि जेल जाने के बाद भी नेता की पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता और कांग्रेस पार्टी में बने रहने का उनका रवैया अब उनके लिए फलदायी होगा।

कांग्रेस को अपने ये अंदरूनी विवाद इसलिए भी समय रहते खत्म करने होंगे क्योंकि दूसरे छोर पर भाजपा घाघ की तरह नजरें गड़ाए बैठी हुई है। उसको भनक भी लगी तो वो तुरंत डीके शिवकुमार को सीएम का ऑफर देने से पीछे नहीं हटेगी। और कांग्रेस के विधायकों को भी तोड़ने के लिए दांव खेलने लगेगी। इतना ही नहीं कुछ जानकार ये बताते भी हैं कि एक बार पूर्व सीएम बी.एस. येदियुरप्पा ने सदन में डीके शिवकुमार को खुला ऑफर देते हुए कहा था कि अगर वह कांग्रेस पार्टी में बने रहे तो वह कभी सीएम नहीं बनेंगे। उस वक्त डीके शिवकुमार ने कहा था कि उन्हें दो विकल्प दिए गए थे, एक भाजपा में शामिल होना और दूसरा जेल जाना और उन्होंने दूसरा विकल्प चुना।

शिवकुमार के खेमे ने यह भी बताया कि दक्षिण कर्नाटक के जिले, जिन्हें वोक्कालिगा समुदाय का गढ़ माना जाता है। कांग्रेस पार्टी की ओर स्थानांतरित हो गए क्योंकि उपमुख्यमंत्री शिवकुमार को सीएम उम्मीदवारों में से एक के रूप में पेश किया गया था। ये सच है कि शिवकुमार कांग्रेस के लिए इस समय प्रदेश में सबसे बड़ा चेहरा हैं। और शिवकुमार इतनी जल्दी पाला बदलने वाले भी नहीं हैं। इसलिए कांग्रेस को डीके शिवकुमार को साधे रहना होगा और इस अंदरूनी कलह को जल्द से जल्द समाप्त करना होगा।

विधानसभा चुनाव में पार्टी को शानदार जीत दिलाकर सत्ता में लाने वाले डीके शिवकुमार के सामने अब लोकसभा चुनाव की चुनौती है। शिवकुमार ने लोकसभा चुनाव को गंभीरता से लिया है तथा यह उनके लिए एक और अग्निपरीक्षा होने जा रही है।ऐसे में ये भी साफ है कि अगर उन्हें वांछित परिणाम मिले तो वह आधिकारिक तौर पर सीएम पद के लिए दावा पेश कर देंगे। कुछ जानकारों का भी ये मानना है कि ईडी के मामले को खारिज करने के बाद डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को सीएम पद का दावा करने का मौका मिल गया है।

वहीं दूसरी ओर कुछ दिनों पहले कांग्रेस सांसद डी.के. सुरेश ने कहा था कि उनके भाई डीके शिवकुमार सीएम बनने जा रहे हैं। हालांकि, राजनीति के पुराने खिलाड़ी सीएम सिद्धामरैया के कुर्सी छोड़ने की संभावना नहीं है। उनके खेमे का कहना है कि उन्हें अधिकांश कांग्रेस विधायकों का समर्थन प्राप्त है। सीएम सिद्धामरैया ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह पूरे पांच साल के लिए सीएम रहेंगे। मंत्री राजन्ना पहले ही कह चुके हैं कि आलाकमान उनके साथ गुलाम जैसा व्यवहार नहीं कर सकता। सूत्रों ने बताया कि इसे शीर्ष नेतृत्व के लिए सीएम सिद्धामरैया को परेशान न करने की एक सूक्ष्म चेतावनी माना जा रहा है।

आलाकमान, जो सबसे समृद्ध और महत्वपूर्ण राज्यों में से एक को खोने के मूड में नहीं है, घटनाक्रम को लेकर चिंतित है। लेकिन इतना तो साफ है कि अगर कांग्रेस को कर्नाटक में अपनी स्थिति को मजबूत करना है और भाजपा को चारों खाने चित करना है तो उसे कहीं न कहीं पार्टी के अंदर मची इस कलह और आपसी विवाद से बचना ही होगा। क्योंकि चुनाव अब बिल्कुल मुंहाने पर हैं। ऐसे में चुनाव से पहले एक छोटी सी गलती भी कांग्रेस का पूरा गेम बिगाड़ सकती है। ऐसे में पार्टी आलाकमान को जल्द से जल्द इस अंदरूनी कलह को शांत कराना होगा और एकजुट होकर लोकसभा चुनावों पर ध्यान देना होगा।

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