कांग्रेस ने शुरू किया नशा मुक्त अभियान, AAP और कांग्रेस के बीच बहस तेज

गुजरात में लंबे समय से शराबबंदी लागू है, लेकिन इसके बावजूद लगातार ऐसे मामले सामने आते रहे हैं जहाँ अवैध शराब, ड्रग्स और नशे के कारोबार ने कई परिवारों की ज़िंदगी को नुकसान पहुँचाया।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: गुजरात में लंबे समय से शराबबंदी लागू है, लेकिन इसके बावजूद लगातार ऐसे मामले सामने आते रहे हैं जहाँ अवैध शराब, ड्रग्स और नशे के कारोबार ने कई परिवारों की ज़िंदगी को नुकसान पहुँचाया।

इसी पृष्ठभूमि में कांग्रेस ने नया अभियान शुरू कियाNasha Mukt Gujarat। इस अभियान के साथ राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है, क्योंकि कांग्रेस का दावा है कि नशे का जाल गरीब और मध्यम वर्ग के युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले चुका है, और सरकार इस पर काबू पाने में विफल रही है।

कांग्रेस यह भी कह रही है कि शराबबंदी सिर्फ़ क़ानून की किताबों में रह गई है, ज़मीन पर अवैध धंधे और पुलिस की मिलीभगत ने लोगों की परेशानियाँ बढ़ा दी हैं। जब कांग्रेस का यह अभियान शुरू हुआ, तभी राजनीतिक हलकों में चर्चा होने लगी कि क्या यह सिर्फ़ एक सामाजिक पहल है या फिर इसके पीछे चुनावी रणनीति छिपी है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह मुद्दा राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक है, लेकिन बीजेपी इसे आलोचना मानकर कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि वह गुजरात की छवि खराब कर रही है।

इस बीच, आम आदमी पार्टी यानी AAP ने भी इस मुद्दे को लेकर अपनी भूमिका स्पष्ट की है। AAP नेताओं का कहना है कि दिल्ली और पंजाब की तरह गुजरात में भी वे नशा-मुक्ति को लेकर ईमानदार सिस्टम लाना चाहते हैं, जहाँ पुलिस और राजस्व विभाग राजनीति से मुक्त होकर काम करे। AAP यह आरोप भी लगा रही है कि गुजरात में नशे का कारोबार इसलिए बढ़ा क्योंकि सत्ता में बैठे लोग सख्ती नहीं करना चाहते। उनका दावा है कि अगर प्रदेश में पारदर्शी प्रशासन हो, तो शराबबंदी सिर्फ़ एक कानून नहीं बल्कि वास्तविकता बन सकती है।

राजनीति में एक दिलचस्प स्थिति यह भी बनी है कि कांग्रेस और AAP दोनों ही विपक्षी दल अब एक ही मुद्दे पर सरकार को घेर रहे हैं। हालांकि दोनों के तरीके अलग हैं, लेकिन लक्ष्य एक ही है गुजरात में बढ़ते नशे के मामलों पर ध्यान खींचना। कांग्रेस जहाँ पूरे राज्यभर में सभाएँ करके युवाओं और परिवारों की समस्याएँ उठा रही है, वहीं AAP डिजिटल प्लेटफॉर्म और स्थानीय स्तर पर जागरूकता कैंपेन चला रही है।

गुजरात के कई इलाकों में यह मुद्दा पहले से संवेदनशील रहा है, क्योंकि शराबबंदी के बावजूद जहरीली शराब की घटनाएँ लोगों के मन में डर पैदा कर चुकी हैं। कई परिवारों ने अपने घर के कमाने वाले सदस्यों को नशे की वजह से खो दिया है। कई युवाओं की ज़िंदगी ड्रग्स की वजह से बर्बाद हो गई। ऐसी स्थिति में विपक्ष का यह कहना कि सरकार सिर्फ़ घोषणा करती है लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं बदलता लोगों के दर्द से मेल खाता है।

कांग्रेस के अभियान में यह भी बात कही जा रही है कि यदि नशे पर नियंत्रण नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ी संकट में पड़ जाएगी। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह सिर्फ़ स्वास्थ्य का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संकट भी है। नशे की वजह से परिवार टूटते हैं, रोजगार छूटते हैं, अपराध बढ़ता है और सबसे ज़्यादा नुकसान गरीबों को होता है।

AAP इस बहस में एक अलग एंगल जोड़कर सामने आई है। उनका कहना है कि गुजरात के युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा, और जब नौकरियाँ कम हों, अवसर घटें और तनाव बढ़े तो युवा गलत रास्ते पर जा सकते हैं। AAP का आरोप है कि राज्य में सही गवर्नेंस मॉडल की कमी है, और नशे के फैलाव को रोकने के लिए पारदर्शी पुलिसिंग और मजबूत सामाजिक ढाँचा जरूरी है।

दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस और AAP दोनों ही यह कह रहे हैं कि गुजरात की जनता अब बदलाव चाहती है। कांग्रेस का दावा है कि उसका ज़मीनी नेटवर्क इस मुद्दे को हर गाँव और हर मोहल्ले तक ले जाएगा, जबकि AAP अपने संगठनात्मक ढाँचे को तेज़ी से बढ़ा रही है और कॉलेज-युवा वर्कर्स को शामिल कर रही है। दोनों का मकसद एक ही है गुजरात की राजनीति में नशे के मुद्दे को बड़ा विमर्श बनाना।

सरकार की तरफ़ से जब विपक्ष के इन अभियानों पर कोई तेज़ प्रतिक्रिया नहीं आई, तो जनता के बीच यह सवाल उठने लगा कि क्या प्रशासन इस मुद्दे को लेकर संवेदनशील नहीं है? विपक्ष आरोप लगा रहा है कि पुलिस कार्रवाई अक्सर छोटे विक्रेताओं तक सीमित रहती है, जबकि बड़े नेटवर्क तक कभी नहीं पहुँचती। कांग्रेस का कहना है कि यदि सरकार सख्त होती, तो ड्रग्स के बढ़ते मामलों पर रोक लग सकती थी।

विभिन्न क्षेत्रों के सामाजिक कार्यकर्ता भी अब आगे आ रहे हैं। कई लोग कह रहे हैं कि राजनीतिक पार्टियों की लड़ाई अलग है, लेकिन असली लड़ाई समाज की है माता-पिता की, युवाओं की, स्कूलों और कॉलेजों की। हर वर्ग मांग कर रहा है कि राजनीति से ऊपर उठकर इस समस्या का समाधान निकाला जाए।

कई विशेषज्ञों का भी मानना है कि शराबबंदी का कानून तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक बेरोज़गारी कम न हो, पुलिस-प्रशासन मजबूत न हो, और समाज में जागरूकता न बढ़े। ऐसे में कांग्रेस का अभियान एक सामाजिक चिंता को आवाज़ दे रहा है, और AAP यह बता रही है कि यह सिर्फ़ कानून का मुद्दा नहीं बल्कि प्रशासन की क्षमता का सवाल है।

गुजरात के गांवों में यह मुद्दा बेहद तेजी से चर्चा में है। ग्रामीण इलाकों में कई परिवारों ने बताया कि उनके लड़के शहर जाकर काम करने की कोशिश में नशे की चपेट में आ गए। कई लोगों का कहना है कि ड्रग्स की सप्लाई बेहद आसान होती जा रही है, और यही वजह है कि राजनीतिक दलों का एकसाथ इस मुद्दे पर आना जरूरी है।

जैसे-जैसे कांग्रेस का अभियान आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे AAP भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो रही है। दोनों एक-दूसरे पर हमला नहीं कर रहे, बल्कि एक ही आवाज़ उठा रहे हैं कि नशा सिर्फ़ कानून से नहीं मिटेगा बल्कि मजबूत इच्छा-शक्ति, पारदर्शी प्रशासन और समाज की जिम्मेदारी से ही खत्म होगा।

आगामी चुनावों के माहौल में यह पूरा मुद्दा और भी बड़ा होता जा रहा है। विपक्ष इसे सरकार की विफलता बता रहा है, जबकि समर्थक कह रहे हैं कि कांग्रेस और AAP इसे राजनीतिक रंग दे रही हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि चाहे राजनीतिक लड़ाई हो या न हो, गुजरात का आम परिवार चाहता है कि उसका बच्चा सही रास्ते पर चले, सुरक्षित रहे और राज्य की छवि नशे की घटनाओं से न बिगड़े।

कांग्रेस और AAP दोनों अपने-अपने तरीके से दावा कर रहे हैं कि वे गुजरात को नशे से मुक्त करने के लिए नया मॉडल लाएँगे। कांग्रेस सामाजिक आंदोलन की बात कर रही है और AAP प्रशासनिक मॉडल की। दोनों की भूमिकाएँ अलग हैं, लेकिन लक्ष्य एक गुजरात को सुरक्षित, स्वस्थ और नशा-मुक्त बनाना।

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