भाजपा की कथनी करनी में अंतर: अखिलेश

  • बोले-10 गुना भ्रष्टाचार बढ़ गया, पुलिस ही लूट रही जनता को
  • बड़ी नदियां भ्रष्टाचार के कारण मैली हैं और छोटी संरक्षण के अभाव में सूख रही हैं

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई है। पूर्व यूपी सीएम ने कहा कि बीजेपी की कथनी और करनी में अंतर है। डबल इंजन की सरकार में कानून-व्यवस्था का हाल यह है कि सत्ताधारी सांसद के खिलाफ पुलिस एफआईआर कर रही है। चांदी की लूट में पुलिस वालों का ही हाथ मिला है और चोरी की बाइक थाने से बरामद हो रही है।
अखिलेश ने साथ ही नारा दिया- 80 हराओ-भाजपा हटाओ। अखिलेश यादव ने जारी एक बयान में कहा कि मुख्यमंत्री बात तो जीरो टॉलरेंस की करते है, लेकिन उनके संरक्षण में भ्रष्टाचार और अपराध को खुली छूट मिली हुई है। भाजपा सरकार में 10 गुना भ्रष्टाचार बढ़ गया है। सवा छह साल के कार्यकाल में भाजपा का असली काम यही है कि कागजों में सब चकाचक और असलियत में बदहाल उत्तर प्रदेश। उन्होंने कहा कि जलभराव की दिक्कतें दूर करने के लिए भाजपा सरकार ने 15 जून की तारीख तय की पर अभी तक कई नालों की सफाई के आसार तक नहीं दिखे है। उन्होंने कहा कि जलभराव की दिक्कतें दूर करने के लिए भाजपा सरकार ने 15 जून की तारीख तय की पर अभी तक कई नालों की सफाई के आसार तक नहीं दिखे है। भाजपा सरकार में बड़ी नदियां भ्रष्टाचार के कारण मैली हैं और छोटी नदियां संरक्षण के अभाव में सूख रही हैं। प्रयागराज में यमुना किनारे अवैध खनन का धंधा धड़ल्ले से चल रहा है। सपा अध्यक्ष ने कहा कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में ईज ऑफ डूइंग का मतलब हत्या, बलात्कार, लूट और भ्रष्टाचार है। जानकारों का कहना है कि यूपी में सपा कांग्रेस से समान दूरी बनाए रखते हुए अपना सफर तय करेगी। राममनोहर लोहिया और मुलायम सिंह यादव की नसीहतें और अतीत के सबक उसे इसी रणनीति पर आगे बढ़ा रहे हैं। अलबत्ता, जिस तरह से बीजू जनता दल ने उड़ीसा में अपनी जगह बनाई है, ठीक उसी तरह सपा ने भी यूपी में अपना अंगद पांव जमाने का लक्ष्य लिया है। सपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ लिया। लेकिन, फायदे के बजाय उसे नुकसान हुआ। समाजवादियों को उम्मीद थी कि कांग्रेस के साथ गठबंधन से सामान्य वर्ग का कुछ प्रतिशत वोट उसके पक्ष में आएगा, पर नतीजे इसके एकदम विपरीत आए। सूत्र बताते हैं कि अतीत के इस सबक को लेकर सपा नेतृत्व ने काफी मंथन किया है। राममनोहर लोहिया की पूरी राजनीति कांग्रेस के खिलाफ रही। मुलायम सिंह यादव भी मानते थे कि कांग्रेस से दोस्ती सपा के हित में नहीं है। यूपी का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां कांग्रेस के उत्तरोत्तर पतन और सपा-बसपा के उसी क्रम में उभार के बीच गहरा रिश्ता रहा है।

बसपा के साथ आ सकती है कांग्रेस

दरअसल यूपी में कांग्रेस, सपा से ज्यादा बसपा के नजदीक आना चाह रही है। पर विभिन्न कारणों से बसपा उससे हाथ मिलाने में रुचि नहीं ले रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी कह भी चुके हैं कि वे बसपा को आगे रखकर यूपी में गठजोड़ चाहते हैं। स्थानीय कांग्रेसी भी मानते हैं कि यूपी में बसपा का साथ मिलने से दलित व सामान्य वर्ग का समीकरण बनेगा, जो सीटों के लिहाज से काफी मुफीद साबित हो सकता है।

कांग्रेस के करीब हो सकती है रालोद

राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) सभी धर्मों, वर्गों को साथ जोडऩे की बात कहकर अभियान की शुरू की, पर इसका फोकस खास तौर से मुस्लिमों पर है। यह भविष्य को पुख्ता करने की भी कवायद है ताकि यदि लोकसभा चुनाव तक सपा से राह अलग हो तो मुस्लिम उसके साथ ही रहें। 2022 में सपा व रालोद ने विधानसभा चुनाव साथ लड़ा था। भले ही यह गठबंधन सत्ता के सोपान तक न पहुंच पाया हो पर रालोद को तो इसका लाभ ही हुआ। वह एक सीट से बढक़र आठ तक पहुंच गया। बाद में खतौली उपचुनाव जीतकर संख्या नौ पहुंच गई। हाल ही में हुए नगर निकाय चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों में मनमुटाव हुए तो कई जगह सपा व रालोद ने अपने अपने प्रत्याशी उतार दिए। कहा जा रहा है कि लोकसभा में रालोद और कांग्रेस साथ आ सकते हैं। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद यह चर्चा और पुख्ता हो रही है।

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