पितृ पक्ष में करें ब्राह्मणों को दान

  • धन-समृद्धि का आशीर्वाद देंगे पितर

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पितृ पक्ष में कुछ खास चीजें खरीदने और उनका दान करने से पूर्वज बहुत प्रसन्न होते हैं। परिवार में खुशियां आती है। पितृ पक्ष में जौ की खरीदारी करने से अन्न-धन के भंडार कभी खाली नहीं होते। जौ को धरती का पहला अनाज माना गया है. धार्मिक दृष्टि से इसे सोने के समान माना जाता है। पितृ पक्ष में जौ का दान स्वर्ण दान के समान फल प्रदान करता है। इससे पितृ दोष दूर होता है। श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त सरसों के तेल का दीपक लगाना चाहिए. इससे वे तृप्त होते हैं। इन 15 दिनों में सरसों और चमेली के तेल का दान करने से घर में धन-संपत्ति की समस्या दूर होती है। कोई भी श्राद्ध काले तिल के बिना अधूरा माना जाता है। तर्पण के समय हाथ में जल और काला तिल लेकर ही पूर्वजों को जल अर्पित किया जाता है। पितृ पक्ष में काला तिल घर लाने और दान करने से वंश का विस्तार होता है। संतान सुख मिलता है। कुश की उत्पत्ति श्रीहरि विष्णु के रोम (बाल) से हुई है। श्राद्ध में कुशा बहुत महत्वपूर्ण सामग्री होती है। कुशा की अंगूठी पहनकर ही पूर्वजों का तर्पण करते हैं। इसके बिना वह जल स्वीकार नहीं करते। ऐसे में पितृ पक्ष में कुश घर लाने से परिवार में खुशहाली आते हैं। इसके प्रभाव से माहौल सकतारात्मक रहता है। बिगड़े काम बन जाते हैं। चावल को चांदी के समान माना जाता है। पितरों को ध्यान करके कच्चे चावल का दान करना चाहिए। इससे आपके आर्थिक तंगी दूर होती है।

घर में कौए का आना

पितृ पक्ष में कौए का विशेष महत्व होता है। यदि पितृ पक्ष के दौरान कौआ आपके घर में आकर भोजन ग्रहण करता है तो इसका अर्थ यह है कि आपके पूर्वज आपके आसपास मौजूद है और वह आपको अपना आशीर्वाद दे रहे हैं। इसलिए पितृपक्ष में रोजाना कौए के लिए भोजन निकालना चाहिए। ऐसा करने पर आपके ऊपर पितरों की दया दृष्टि बनी रहती है।

पितृ पक्ष की आरंभ तिथि

2024 में श्राद्ध 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेगा। यह 16 दिनों की अवधि होती है, जिसमें हिंदू धर्म के अनुयायी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं। पितृपक्ष का आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा से होता है और इसका समापन आश्विन अमावस्या को होता है, जिसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इस अवधि में पितर पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों से आशीर्वाद की प्रतीक्षा करते हैं। पितरों को संतुष्ट करने के लिए इस समय किए गए श्राद्ध और दान को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

महत्व

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हमारी पिछली तीन पीढिय़ों की आत्माएं पितृ लोक में रहती हैं, जिसे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र का नेतृत्व मृत्यु के देवता यम करते हैं। ऐसा माना जाता है जब ऐसा माना जाता है कि जब अगली पीढ़ी का कोई व्यक्ति मर जाता है, तो पहली पीढ़ी को भगवान के करीब लाते हुए स्वर्ग ले जाया जाता है। पितृलोक में केवल अंतिम तीन पीढिय़ों को ही श्राद्ध कर्म दिया जाता है। पितृपक्ष में अपने-अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध किया जाता है । मान्यता है कि जो लोग पितृपक्ष में पितरों का तर्पण नहीं करते उन्हें पितृदोष लगता है। श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को तृप्ति और शांति मिलती है। वे आप पर प्रसन्न होकर पूरे परिवार को आशीर्वाद देते हैं। हर साल लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए गया जाकर पिंडदान करते हैं।

कैसे करें श्राद्ध

श्राद्ध का काम गया में या किसी पवित्र नदी के किनारे भी किया जा सकता है। इस दौरान पितरों को तृप्त करने के लिए पिंडदान और ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है। अगर इन दोनों में से किसी जगह पर आप नहीं कर पाते हैं तो किसी गौशाला में जाकर करना चाहिए। घर पर श्राद्ध करने के लिए सुबह सूर्योदय से पहले नहा लीजिए। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर श्राद्ध और दान का संकल्प कीजिए। जब तक श्राद्ध ना हो जाए तो कुछ भी ना खाएं। वहीं, दिन के आठवें मुहूर्त में यानी कुतुप काल में श्राद्ध कीजिए जो कि 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बाएं पैर को मोडक़र और घुटने को जमीन पर टिकाकर बैठ जाएं। इसके बाद तांबे के लोटे में जौ, तिल, चावल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल और पानी डालें। हाथ में कुश लेकर और दल को हाथ में भरकर सीध हाथ के अंगूठे से उसी बरत्न में 11 बार गिराएं। फिर पितरों के लिए खीर अर्पित करें। इसके बाद देवता, गाय, कु्त्ता, कौआ और चींटी के लिए अलग से भोजन निकालकर रख दीजिए।

16 दिन के ही क्यों होते हैं श्राद्ध

शास्त्रों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु इन सोलह तिथियों के अलावा अन्य किसी भी तिथि पर नहीं होती है। यानी कि जब भी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है तो उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार ही करना चाहिए । इसलिए पितृ पक्ष सर्फ सोलह दिन के होते हैं। हालांकि जब तिथि क्षय होता है तब श्राद्ध के दिन 15 भी हो जाते हैं लेकिन बढ़ते कभी नहीं।

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