जीपीएफ पर ज्यादा ब्याज के लिए कोर्ट नहीं जा सकेंगे कर्मचारी
- यूपी सरकार ने संशोधित कर लागू किया नया अध्यादेश
लखनऊ। तीन वर्ष तक सामान्य भविष्य निधि से धनराशि न निकालने के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार के कार्मिक अब न तो एक प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज के भुगतान की मांग कर सकेंगे और न ही इसके लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकेंगे। उत्तर प्रदेश सरकार ने जीपीएफ पर प्रोत्साहन के तौर पर एक प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज की व्यवस्था को पहली अप्रैल 1986 से समाप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश सामान्य भविष्य निधि नियमावली, 1985 नियम-12 का संशोधन एवं विधिमान्यकरण अध्यादेश, 2022 लागू कर दिया है। सामान्य भविष्य निधि नियमावली, 1985 में यह प्रावधान था कि जो सरकारी कर्मचारी सेवा में रहते हुए लगातार तीन वर्ष तक जीपीएफ से धनराशि नहीं निकालेंगे, उन्हें प्रोत्साहन के तौर पर एक प्रतिशत ज्यादा ब्याज का भुगतान किया जाएगा। राज्य सरकार ने एक प्रतिशत प्रोत्साहन की व्यवस्था को एक अप्रैल 1986 से शासनादेश के माध्यम से समाप्त कर दिया था। राज्य सरकार ने शासनादेश के जरिए यह व्यवस्था तो खत्म कर दी लेकिन इसके लिए नियमावली में संशोधन नहीं किया गया।
कुछ समय पहले राज्य सरकार को राज्य कर (पूर्व में वाणिज्य कर) विभाग के एक कर्मचारी को हाई कोर्ट के निर्देश पर प्रोत्साहन स्वरूप एक प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज के रूप में लगभग छह लाख रुपये का भुगतान करना पड़ा था। कर्मचारी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दलील दी थी कि शासनादेश के आधार पर किसी नियमावली की व्यवस्था को बदला नहीं जा सकता है। राज्य सरकार को यह अंदेशा था कि इसी आधार पर और कर्मचारी भी अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे और कोर्ट के निर्णय का हवाला देकर प्रोत्साहन राशि के भुगतान की मांग करेंगे। कर्मचारियों को देय ब्याज पर एक प्रतिशत प्रोत्साहन की व्यवस्था को नियमावली में पहली अप्रैल 1986 से खत्म करने के लिए बीते दिनों उत्तर प्रदेश सामान्य भविष्य निधि नियमावली, 1985 नियम-12 का संशोधन एवं विधिमान्यकरण अध्यादेश, 2022 के ड्राफ्ट को सरकार ने बीते दिनों कैबिनेट बाई सर्कुलेशन मंजूरी दी। कैबिनेट की मंजूरी के बाद हाल ही में राज्यपाल के अनुमोदन से उत्तर प्रदेश सामान्य भविष्य निधि नियमावली, 1985 नियम-12 का संशोधन एवं विधिमान्यकरण अध्यादेश, 2022 सरकारी गजट में अधिसूचित कर दिया गया है।
शहीद का दर्जा देने में सरकार नाकाम : किरणजीत
लखनऊ। देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर हम अमृत महोत्सव मना रहे हैं। मगर देश को आजाद कराने वाले शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को अब तक संवैधानिक तौर पर शहीद घोषित नहीं किया गया है। सहारनपुर में रहने वाले शहीद भगत सिंह के भतीजे सरदार किरण जीत सिंह कहते हैं कि इन 75 सालों में चाहे सरकार कांग्रेस की रही हो, या फिर भाजपा की। कोई फर्क नहीं आया। सरकार का जवाब है कि उनके पास आजादी से पहले के शहीदों की कोई सूची नहीं है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। ये गौरव के क्षण हैं। क्योंकि अनाम और नाम वाले 7.5 लाख नौजवानों ने देश के आजादी के लिए बलिदान दिया। तब जाकर हमें स्वतंत्रता मिली। आजादी की नींव में असंख्य बलिदान हैं। विभाजन के दंश की बात करें तो कष्टï और पीड़ा देश के सभी समाज के लोगों ने झेली है। तभी ये दिन देखने को मिला है। वे कहते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार उपेक्षा की हालत में हैं। आजादी को मिले जब 25 साल हुए थे तब सेनानियों को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया था। समान पेंशन दी गई थी। लेकिन वो पीढ़ी अब चली गई। स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार चाहते हैं कि उन्हें राष्टï्रीय परिवार का दर्जा दिया जाए। जो सरकारों के लिए छोटी चीज है। कुछ राज्य की सरकारें उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब में स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों पर ध्यान देते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से यूपी में हमारे परिवारों का कम ध्यान दिया जाता है।