इतने नियम और कानून फिर भी क्यों नहीं थमते एसिड अटैक के मामले

नई दिल्ली। एसिड अटैक पीडि़ता को जिंदगी भर का दर्द दे जाता है. दिल्ली के द्वारका में एसिड का शिकार हुई 17 साल की वह लडक़ी भी ऐसा ही दर्द झेल रही है. सफरदगंज अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है. पुलिस आरोपी को गिरफ्तार भी कर चुकी है, उसे सजा भी हो जाएगी, लेकिन क्या पीडि़ता कभी इस दर्द से उबर पाएगी? कानून की बात करें तो देश में एसिड अटैक करने वाले आरोपियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है, लेकिन फिर भी बहुत ही कम मामलों में पीडि़ता को न्याय मिल पाता है. ऐसा क्यों है आइए जानते हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में 2018 से लेकर 2021 तक 536 एसिड अटैक के मामले सामने आए हैं. यदि साल दर साल देखें तो 131 मामले 2018 में, 150 मामले 2019 में और 105 मामले 2020 में दर्ज किए गए थे, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने खुद इस बावत संसद में जानकारी दी थी. 2021 में एसिड अटैक के 150 मामले सामने आए थे. यदि 2020 तक के ही मामलों की बात करें तो सामने आए 386 मामलों में सिर्फ 62 मामलों में ही आरेापी को सजा दी जा सकी है. बाकी मामलों में आरेापी कानून की किसी न किसी कमजोरी का फायदा उठाकर बच निकले है.
एसिड अटैक ही नहीं, बल्कि किसी भी मामले में यदि आरोपी बच निकलता है तो उसकी पहली जिम्मेदार पुलिस मानी जाती है. चाहे आरोपी के बचने की वजह कोई भी हो, दरअसल अपराध रजिस्टर्ड करने के बाद से जांच, सुबूत जुटाना और कोर्ट में चार्जशीट पेश करने तक का काम पुलिस का ही होता है. कई बार तो ऐसे आरोप लगते हैं कि पुलिस मामला ही दर्ज नहीं कर रही. मीडिया में आई एक रिपोर्ट लाइव लॉ. इन के मुताबिक यदि मामला दर्ज कर भी लिया जाता है और जांच ठीक से नहीं की जाती तो पुलिस की दलीलें कोर्ट में साबित नहीं हो पातीं. यदि सबूत जुटा भी लिए गए और धाराएं गलत या हल्की लगा दी गईं तब भी कोर्ट से आरोपी को लाभ मिलता है. कई बार पुलिस पर आरोपी से मिलीभगत का भी आरोप लगता है. यदि ऐसा सच में होता है तो पुलिस सच जानते हुए भी आरोपी को क्लीन चिट दे देती है और मामले में क्लोजर रिपोर्ट लगा देती है, लिहाजा आरोपी दोष मुक्त हो जाता है. ज्यादातर मामलों में पीडि़ता और उसका परिवार इलाज और अन्य चीजों में इतने व्यस्त होते हैं कि वे पुलिस की जांच पर ध्यान नहीं दे पाते और उसका फायदा आरोपी उठा लेता है.
आईपीसी की धारा 326 में 2013 में एक सेक्शन और जोड़ा गया. इसे नाम दिया गया 326्र, माई लीगल लॉ वेबसाइट के मुताबिक धारा 326 तब लगती है जब पीडि़त या पीडि़ता पर किसी हथियार से ऐसा वार किया गया हो, जिससे उसके शरीर के किसी अंग को नुकसान पहुंचता हो. इसमें 326 ्र का प्रावधान महिलाओं के खिलाफ हो रहे एसिड अटैक को रोकने के लिए किया गया था. यह धारा तब लगती है जब चोट पहुंचाने के उद्देश्य से एसिड अटैक किया गया हो. यदि एसिड हमले का शिकार व्यक्ति के किसी अंग, चेहरे को नुकसान पहुंचता है, तब भी यही धारा लगाई जाती है. यदि एसिड अटैक से नुकसान कम हुआ हो या फिर सिर्फ एसिड फेंकने का प्रयास किया गया हो. तो पुलिस अपने विवेकानुसार धारा 326 बी लगा सकती है.
एसिड अटैक करने वाले आरोपी को आसानी से जमानत नहीं मिलती. धारा 326 ्र और 326 क्च गैर जमानती है. यदि धारा 326 से इसकी तुलना करें तो इस धारा की प्रकृति ज्यादा कठोर मानी जाती है. खास बात ये है कि एसिड अटैक के मामलों की जांच जिले के उच्चतम आपराधिक न्यायालय में की जाती है.
एसिड अटैक का दोषी साबित होने पर अपराधी को कम से कम दस साल से आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है. अपराध की प्रकृति के आधार पर इसे घटाया और बढ़ाया भी जा सकता है. इसके अलावा दोषी को पीडि़त के इलाज में आया पूरा खर्चा जुर्माने के तौर पर देना पड़ता है. वहीं 326 बी के तहत दोषी सिद्ध होने पर कम से कम पांच साल की सजा सुनाई जाती है, जिसे 7 साल तक बढ़ाया जा सकता है.
मुंबई में एसिड अटैक मामले के दोषी को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है. यह घटना हुई थी 2 मई 2013 को जब मुंबई में 25 वर्षीय नर्स प्रीति राठी मुंबई कोलाबा के नेवी अस्पताल जा रही थी. इसी दौरान अंकुर पंवार नाम के शख्स ने उस पर सल्फ्यूरिक एसिड फेंका था. एक महीने इलाज के बाद प्रीति राठी की मौत हो गई थी. पुलिस ने आरोपी पर 326 बी के साथ धारा 302 भी लगाई थी. 2016 में विशेष महिला अदालत ने अंकुर पंवार को मौत की सजा सुनाई. हालांकि 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में बिना लाइसेंस एसिड की बिक्री पर रोक लगा दी थी. साथ ही राज्यों को इसका पालन करने के सख्त आदेश दिए थे, ताकि एसिड की खुले बाजार में बिक्री न हो. इसके साथ एसिड बेचने वाले को इस बात की जानकारी भी रखनी थी कि एसिड किसे बेचा गया है. इसके लिए एसिड खरीदने वाले को सरकारी पहचान पत्र देना होता है.

 

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