फिर बाहर निकला जातिगत जनगणना का जिन्न

विपक्षी पार्टियों ने उठाई मांग,बीजेपी भी घबराई

  • चुनाव व विकास के मामले में मिलेगी मदद
  • बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक मांग उठी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। एकबार फिर जातिगत जनगणना का जिन्न बाहर आ गया है। उन जिन्न के बाहर आते ही राजनीति भी उफान मारने लगी है। कई विपक्ष दल इस मुद्दे पर एक साथ आ गए हैं। इन दलों ने आबादी के आधार पर ओबीसी एससी-एसटी को आरक्षण देने की मांग की है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इसी बाबत एक चिट्ठïी पीएम मोदी को लिखाी है। कांग्रेस, जदयू, राजद, एनसीपी, द्रमुक और आम आदमी पार्टी समेत कई विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की है। मोदी सरकार इसको खास तव्वजों नहीं दे रही है। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना कि कांग्रेस भाजपा के ओबीसी वाले मुद़े को लेकर उसे घेरने की जुगत में लगी हैं।
पहले उसने कोविड-19 महामारी की वजह से इसको टाल दिया जो अब तक टलता जा रहा है। उधर नियमित जनगणना में देरी होने के कारण जातिगत जनगणना की नए सिरे से मांग की जा रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी कर्नाटक रैलियों में दो दिनों में दूसरी बार जातिगत जनगणना की मांग की है। जातिगत जनगणना के समर्थक इसे समय की जरूरत बताते हैं, जबकि केंद्र की इस मामले पर अलग राय है। पिछले हफ्ते तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने भी राज्य विधानसभा में केंद्र से दशकीय जनगणना के साथ-साथ एक व्यापक जातिगत जनगणना कराने का आग्रह किया था। महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता अजित पवार ने फरवरी में मांग की थी कि भाजपा-शिवसेना सरकार को बिहार जैसा जाति आधारित सर्वे कराना चाहिए। पिछले साल एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने भी सामाजिक समानता सुनिश्चित करने के लिए इसे एक आवश्यकता बताते हुए जाति आधारित जनगणना की मांग की थी। वही यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव भी प्रदेश में इसकी मांग कर चुके हैं।

भाजपा के ओबीसी कार्ड का पलटवार

कांग्रेस के जातिगत जनगणना कराने की मांग भाजपा के ओबीसी कार्ड के दांव के पलटवार के तौर पर देखा जा रहा है। राहुल गांधी की मोदी सरनेम पर की गई टिप्पणी को लेकर भाजपा ने संसद के बजट सत्र में ओबीसी ट्रंप कार्ड खेला था। भाजपा ने इसे ओबीसी का अपमान बताया था और राहुल गांधी को घेरने की कोशिश की थी। राहुल पर ओबीसी और दलितों का अपमान करने का भी आरोप लगाया गया था। अब कांग्रेस के इस दांव से यह साफ है कि भाजपा के लिए ओबीसी अपमान का ट्रंप कार्ड चलना बिल्कुल आसान नहीं रहेगा।

कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने पीएम मोदी को लिखा पत्र

राहुल गांधी ने आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने की मांग करते हुए पीएम मोदी को 2011 की जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक डोमेन में जारी करने की चुनौती दी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर तुरंत जनगणना कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इससे सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण को मजबूती मिलेगी।

जातिगत जनगणना क्या है?

जातिगत जनगणना का अर्थ है जनगणना की कवायद में भारत की जनसंख्या का जातिवार सारणीकरण शामिल करना। भारत ने केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के – 1951 से 2011 तक – जातिगत आंकड़ों को गिना और प्रकाशित किया है। यह धर्मों, भाषाओं और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से संबंधित डेटा भी प्रकाशित करता है। आखिरी बार जातिगत जनगणना 1931 में की गई थी। सभी जातिगत आंकड़ों को इसके आधार पर पेश किया जाता है। यह मंडल फार्मूले के तहत कोटा कैप का आधार बन गया। 2011 की जनगणना के लिए जाति के आंकड़े एकत्र किए गए थे, लेकिन डेटा को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। यह वास्तव में एक पुरानी मांग है, जो इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि उपलब्ध डेटा-सेट 90 वर्ष पुराना है, जबकि जातियों को अक्सर कई कल्याणकारी कार्यक्रमों के आधार के रूप में लिया जाता है। राजनीतिक रूप से, भाजपा कथित तौर पर 2024 के चुनाव से पहले अपने हिंदुत्व अभियान के लिए एक संभावित चुनौती के डर से जातिगत जनगणना का विरोध करती रही है। जाति आधारित पार्टियां जाति आधारित जनगणना की प्रबल हिमायती रही हैं।

बिहार में हो रही है जातिगत गणना

बिहार में दो चरणों मं हो रही जातिगत गणना। जाति आधारित सर्वेक्षण का पहला चरण 7 जनवरी, 2023 से शुरू हुआ जो 21 जनवरी को समाप्त हुआ। पहले चरण में राज्य के सभी घरों की संख्या गिनी और दर्ज की गई।पहले चरण के आकड़ों के आधार पर दूसरे चरण की गणना होगी। प्रथम चरण में एकत्रित किए गए सभी आंकड़ों को अब इस पोर्टल पर अपलोड किया जायेगा और ये आंकड़े मोबाइल एप पर द्वितीय गणना के समय प्रगणक और पर्यवेक्षकों को उपलब्ध होंगे। पहले चरण में ढाई करोड़ से अधिक परिवारों की हुई गिनती जाति गणना के पहले चरण में 38 जिलों में बिहार भर (जिनमें 534 ब्लॉक और 261 शहरी स्थानीय निकाय हैं), के करीब दो करोड़ 58 लाख 90 हजार 497 परिवारों तक गणना कर्मियों ने पहुंच कर मकानों की नंबरिंग की। पहले चरण में परिवार के मुखिया का नाम और वहां रहने वाले सदस्यों की संख्या को अंकित किया गया था। सात जनवरी से शुरू हुए पहले चरण की जाति गणना में पांच लाख 18 हजार से अधिक कर्मी लगाये गये थे। पटना जिले में 14.35 लाख परिवारों का हुआ सर्वेक्षण,छुटे हुए परिवार जिला जाति गणना कोषांग को दे सकते जानकारी। सर्वेक्षण के दूसरे चरण में जो 15 अप्रैल से 15 मई होना है, घरों में रहने वाले लोगों, उनकी जाति,, उपजातियों, सामाजिक-आर्थिक स्थिति आदि को एकत्र किया जाएगा। सर्वेक्षण 31 मई, 2023 को समाप्त होगा। इस चरण में, 3.04 लाख से अधिक प्रगणक उत्तरदाताओं से जाति सहित 17 प्रश्न पूछेंगे। जबकि सभी 17 प्रश्न अनिवार्य हैं,प्रत्येक प्रगणक को 150 घरों तक पहुंचने का लक्ष्य दिया गया है। जबकि सभी 17 प्रश्न अनिवार्य हैं, आधार संख्या, जाति प्रमाण पत्र संख्या और परिवार के मुखिया का राशन कार्ड नंबर भरना वैकल्पिक है। बिहार सरकार ने सूबे की 215 अलग-अलग जातियों के लिए अलग-अलग कोड निर्धारित किए हैं।कसी विशेष जाति की संबंधित उप-श्रेणियों को एक एकल सामाजिक इकाई में मिला दिया गया है, और उनके पास जाति-आधारित हेडकाउंट के महीने भर के दूसरे चरण के दौरान उपयोग के लिए एक संख्यात्मक जाति कोड है।वहीं इस चरण में नाम दर्ज कराने को लेकर विशेष सख्ती रहेगी। अगर कोई दो बार नाम लिखाने का प्रयास करेगा तो अब एप ऐसे लोगों को चिन्हित कर लेगा। राज्य के बाहर रहने वाले लोगों के नाम भी दर्ज किये जायेंगे। पटना जिले में 12 हजार 831 गणना कर्मियों को 15 अप्रैल से 15 मई तक 73 लाख 52 हजार 729 लोगों की गणना करनी है।15 अप्रैल 2023 को, नीतीश कुमार ने बख्तियारपुर स्थित अपने पैतृक घर से जाति आधारित सर्वेक्षण के दूसरे चरण का शुभारंभ किया। नीतीश कुमार ने बताया कि डाटा का काम पूरा होने के बाद जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट बिहार विधानसभा और बिहार विधान परिषद के पटल पर रखी जाएगी। उसके बाद रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी। गणना के दूसरे चरण का कार्य 15 अप्रैल से 15 मई, 2023 तक सभी 261 निकायों व 534 प्रखंडों में चलेगा। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर बिहार में परिवार की संख्या एक करोड़ 89 लाख थी। 12 वर्षों में इसमें एक करोड़ 61 लाख वृद्धि होने की संभावना जताई जा रही है। इसी तरह राज्य में एक से सवा करोड़ घर या बसावट होने का भी आंकलन किया जा रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार पटना में प्रति परिवार में सदस्यों की संख्या औसतन 4.1 थी जो 2022 में बढ़ाकर 5.3 हो गई है यानी प्रति परिवार सदस्यों की संख्या में 1.2 की बढ़ोतरी हुई है। पटना जिले की जनसंख्या 58 लाख से बढक़र 73 लाख हो गई है।[45] पिछले 11 वर्षों में पटना की जनसंख्या में 15 लाख से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। पटना जिले की जनसंख्या वृद्धि दर 2011 की तुलना में 2 अधिक बढ़ी है। परिवारों की संख्या भी चार लाख से अधिक बढ़ी है। यह 21 जनवरी तक कराई गई जाति आधारित गणना के पहले चरण की रिपोर्ट में सामने आया है।

 

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