भारत-चीन क्या लड़ाई का पहला अध्याय खुल चुका है?

  • अरूणाचल प्रदेश के जरिये चीन की कूटनीति
  • नाम बदलने का खेल ताकि मुद्दा जिंदा रहे
  • दृढ़़ता से खड़ा है भारत एक इंच भी नहीं हटेगा पीछे

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। एक बार फिर ड्रैगन ने अपनी चाल बदली है। ड्रैगन यानि चीन द्वारा अरूणाचल प्रदेश के कई हिस्सों के नाम बदलने की कवायद के पीछे की मंशा अब साफ हो चली है। चीन के ताजा दावों को भारत ने खारिज करते कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अविभाज्य और अटूट हिस्सा है भारत ने चीन के दावों को खारिज कर दिया है। भारत के लिए अरुणाचल सिर्फ एक राज्य नहीं सभ्यता, सुरक्षा, रणनीति और संप्रभुता का प्रतीक है। वहीं चीन के लिए अरुणाचल सिर्फ भूभाग नहीं विस्तारवाद, तिब्बत नियंत्रण और एशिया में सुपरपावर बनने की सीढ़ी है। यही वह जगह है जहां भू-राजनीति अपनी सबसे खतरनाक शक्ल में दिखाई देती है। कितना अजीब है कि जहा भारतीय जवान सीमा पर कड़ाके की ठंड में गश्त करते हुए तराई की वादियों को निहारते हैं वहीं बीजिंग के सत्ता गलियारों में बैठी नौकरशाही नक्शों पर रबड़ चलाकर नाम बदलने की कवायद में लगी रहती है। एक तरफ भारत इलाके में सड़कें, ब्रिज, एयरफोर्स बेस, स्मार्ट बॉर्डर सिस्टम बनाकर वास्तविक नियंत्रण को मजबूत कर रहा है तो दूसरी तरफ चीन पुराने नक्शे, बदलते नाम, और नागरिकों की पैठ के जरिये दावा जिंदा रखने की कोशिश करता है।

एक बात साफ है

वलर्ड पालिटिक्ल एनालिस्ट डीएन त्रिपाठी कहते हैं कि ताइवान समुद्री जंग का केंद्र है लेकिन एशिया का भू-रणनीतिक थर्मामीटर अरुणाचल है। क्योंकि यहां जो सन्नाटा है वह तैयार होते तूफान जैसा है। चीन का असली डर यह है कि भारत एशिया का नया निर्णायक शक्ति-केंद्र बन रहा है। और चीन की असली मंशा यह है कि तिब्बत पर अपना नियंत्रण पक्का करने के लिए अरुणाचल पर दावा जिंदा रखे ताकि भविष्य में कोई भू-राजनीतिक सौदा हो तो उसके पास मोलभाव की डील टेबल पर चाबी रखी हो।

पासपोर्ट पर सवाल

यह लड़ाई एक इंच जमीन की नहीं। यह लड़ाई दुनिया की तीसरी महाशक्ति कौन बनेगा इस सवाल की है। और इस लड़ाई का पहला अध्याय खुल चुका है। पासपोर्ट पर सवाल। नाम बदलने की नोटिफिकेशन। राजनयिक तनाव की प्रेस रिलीज। संसद से लेकर सेना तक हर स्तर पर हलचल। भारत दृढ़ खड़ा है। चीन पीछे हटने को तैयार नहीं। अरुणाचल की चुप्पी के पीछे इतिहास की सबसे तेज़ सबसे शांत लेकिन सबसे खतरनाक जंग चल रही है जिसमें हथियार विचार हैं, सैनिक बयान हैं, और मोर्चा भू-राजनीति है।

चीन को मुंहतोड़ जवाब देगा ताइवान

ताइवान ने चीन की आक्रामकता को मुंहतोड़ जवाब देनी की तैयारियां शुरू कर दी हैं। ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने वाशिंगटन पोस्ट के एक लेख में कहा कि देश अपनी रक्षा के दृढ़ संकल्प को दर्शाने के लिए 40 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त रक्षा बजट पेश करेगा। इस बजट में जरूरी नए अमेरिकी हथियारों की खरीद की योजना भी शामिल है। राष्ट्रपति चिंग-ते के इस बयान से चीन को मिर्ची लगना तय है। बीते पांच वर्षों में चीन ने ताइवान को अपने देश का हिस्सा बताने के दावों को पुख्ता करने के लिए ताइपे पर सैन्य और राजनीतिक दबाव बढ़ा दिया है। हालांकि, ताइवान इसे दृढ़ता से खारिज करता रहा है। ताइवान को वाशिंगटन से अपनी रक्षा पर ज्यादा खर्च करने के लिए भी गुजारिश करनी पड़ रही है, जो यूरोप पर अमेरिका के दबाव को दर्शाता है। इस साल अगस्त महीने में लाई ने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि 2030 तक रक्षा व्यय सकल घरेलू उत्पाद के 5 फीसदी तक पहुंच जाएगा।

अरूणाचल की बेटी से बदतमीजी पर भारत ने चीन को लताड़ा

अरुणाचल की निवासी और भारतीय नागरिक पेमा वांगजोम थोंगडोक को जबरन 15 घंटे रोकने को लेकर लगे आरोपों से भी पल्ला झाड़ा है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने माओ निंग ने कहा कि जंगनान चीन का क्षेत्र है। बता दें कि चीन भारत के अभिन्न अंग अरुणाचल प्रदेश को जंगनान कहता है। अरुणाचल प्रदेश पर चीनी विदेश मंत्रालय की टिप्पणी पर भारत सरकार ने कड़ा जवाब दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अटूट और अखंड अंग है। चीनी पक्ष चाहे कितनी ही दफा इस सच्चाई से इनकार करे, लेकिन सच बदल नहीं सकता। चीन ने कहा था कि जंगनान उसका क्षेत्र है। भारत की ओर से अवैध तौर पर बनाए गए तथाकथित अरुणाचल प्रदेश को उसने स्वीकार नहीं किया। गौरतलब है कि अरुणाचल प्रदेश को चीन जंगनान कहकर बुलाता है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश को लेकर फिर अपना पुराना राग दोहराया है। चीन ने कहा कि उसने कभी अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी।

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