ताजा रिपोर्ट में बीजेपी का बहुत बुरा हाल, INDIA ने तो NDA को साफ कर दिया!

लोकसभा चुनाव में ‘एक अकेला सबपर भारी’ मोदी की तानाशाही का जनता ने करारा जवाब दे दिया... बावजूद इसके मोदी के व्यवहार में कोई बदवाल नहीं आया... मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते ही देश में एक के बाद एक कई घटनाएं हुई... लेकिन मोदी ने हमेशा की तरह इन सभी मुद्दों पर चुप्पी साध लिया... देखिए खास रिपोर्ट...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः लोकसभा चुनाव दो हजार चौबीस के आंकड़े ने यह साबित कर दिया कि… देश की जनता ने मोदी को पूरी तरीके से नकार दिया है… पिछले दस सालों से बीजेपी आईटी सेल ने मोदी को लेकर बड़े से बड़े सफेद झूट जनता के सामने परोसा था… जिसका एक भी फीसदी लाभ जनता को नहीं मिला… देश की जनता पिछले दस सालों से महंगाई, बेरोजगारी का दंश झेल रही थी… जिसके बाद जब जनका को दो हजार चौबीस में मौका मिला तो मोदी को उनके सफेद झूठ का आईना दिखा दिया… और तीन सौ तीन के आंकड़े से दो सौ चालीस पर लाकर रख दिया… जिससे मोदी की लोकप्रियता खत्म होने के कगार पर आ गई है… आपको बता दें कि बीजेपी और मोदी ने सत्ता में आने के बाद से राहुल गांधी की छबि खराब करने के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर दिए… जिससे भी कोई फायदा नहीं हुआ… और देश की जनता ने मोदी को नकार दिया… जिसके बाद मोदी ने अपने सहयोगियों से मिलकर बहुमत का आंकड़ा पार किया.. और तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गए… प्रधानमंत्री मोदी की तानाशाही का जनता ने करारा जवाब दे दिया… बावजूद इसके मोदी के व्यवहार में कोई बदवाल नहीं आया… मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते ही देश में एक के बाद एक कई घटनाएं हुई… लेकिन मोदी ने हमेशा की तरह इन सभी मुद्दों पर चुप्पी साध लिया… और आज तक एक भी शब्द नहीं बोला… जिसको लेकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सदन में कई बार इस सभी मुद्दों पर सरकार से चर्चा करने की मांग की… लेकिन मोदी चर्चा के लिए तैयार नहीं हुए…  और सभी मामले जस के तस बने हुए है… और छात्र सड़कों पर संघर्ष कर रहें है…

वहीं नरेंद्र मोदी नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से इतना क्यों डरने लगे हैं कि राहुल गांधी के किसी भी सवाल का जवाब नहीं देते हैं… और राहुल गांधी की बार- बार छबि खराब करने की कोशिश में लगे हुए है… आपको बता दें कि मोदी और बीजेपी के पास राहुल के किसी भी सवाल का जवाब नहीं देती है… और उनकें सवालों को लेकर अब कांग्रेस कार्यालयों पर हमला कराने लगी है… जिसको देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि एक अकेला सबपर भारी कहने वाले मोदी की अकेले राहुल गांधी ने परेशान करके रख दिया है… आपको बता दें कि एक बड़ा वर्ग जो मोदी की कार्य प्रणाली से क्रोधित था…. सत्ता से बेदखल होते देखने को उतावला भी था… और उसने सपने संजो लिए थे कि अब मोदी सरकार के लिए नायडू…. और नीतीश बैसाखी नहीं बनेंगे… वहीं विचार बना लेना कि परिस्थितियों का सही आंकलन करना दोनों अलग-अलग पैमाने है… आपको बता दें कि अपेक्षा से अधिक विचार करने वाली बात है कि नायडू और नीतीश ने क्या चुनाव परिणाम के बाद एनडीए में शामिल होने का मन बनाया है…. नहीं न? मतलब साफ़ है कि दोनों पहले से ही एनडीए का हिस्सा थे…. एनडीए में शामिल होने के पहले ही उन सबने हर पहलू पर मंथन किया होगा…. वे बीजेपी के प्रबन्धन कौशल से पूर्णतः परिचित थे… वे बेहतर तरीक़े से जानते थे कि चुनाव स्वतन्त्र… और निष्पक्ष होंगे की संभावना कम ही है… ऐसी स्थिति में एनडीए का पलड़ा भारी रह सकता है… और गठबंधन में रहने का उन्हें बड़ा लाभ मिल सकता है…

आपको बता दें कि बिहार में तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता नीतीश को हज़म नहीं हो पा रही है… वहीं तेजस्वी अपनी लोकप्रियता को चुनावी परिणाम में बदल पाने में हमेशा फेल साबित होते रहे हैं…. बता दें कि असरदार राणनीति और कमजोर चुनावी प्रबंधन उनकी विफलता के कारण हो सकते हैं…. जब नीतीश अपनी पार्टी की बेहतरी के बारे में सोच रहे हैं… तब गलत ही क्या है…. उन्हें अपनी पार्टी को ऊंचाई पर स्थापित करने का पूरा हक़ है… वह राजनीति के दांवपेंच ख़ूब समझते हैं… पिछले चौदह सालों में उनकी पार्टी हिमालय की ऊंचाई से लुढ़कते लुढ़कते बमुश्किल ज़मीन पर टिक पाई है…. यहां पर चुनावी परिणाम का एक आंकड़ा देना सही होगा… आपको बता दें कि जेडीयू दो हजार दस के विधान सभा में एक सौ पंद्रह सीट जीती थी… लेकिन  दो हजार पंद्रह के चुनाव में महागठबंधन में चुनाव लड़कर महज इकहत्तर सीट जीतने में सफल रही…. महागठबंधन में आरजेडी और जेडीयू ने सौ सौ सीटों पर चुनाव लड़ा था…. बाकी की बची तैंतालीस सीट कांग्रेस के खाते में थी… वहीं नीतीश के पलटने के कौशल के पारखी लालू ने वायदे के मुताबिक़ नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी खुशी खुशी सौंप दी थी… वहीं चुनाव प्रचार में मोदी द्वारा कसे तंज की नीतीश का, डीएनए ख़राब है, को हथियार बनाते हुए नीतीश ने इस बयान को बिहारियों की अस्मिता से जोड़ दिया… फलस्वरूप बीजेपी इक्यानबे सीट की संख्या से धड़ाम से नीचे गिरते हुए तिरपन सीट पर आकर अटक गई…. चुनाव के पहले से लालू जी को चारा चोर, रेलवे घोटाला से जोड़कर उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का दुष्प्रचार चल रहा था…. तब नीतीश को लालू का खोट दिखाई नहीं पड़ा जैसे ही तेजस्वी लोकप्रिय… और प्रभावशाली होने लगे नीतीश को दोनों बाप बेटे भ्रष्टाचारी दिखने लगे…. सबसे अधिक बार मुख्यमंत्री बनने का विश्व रिकॉर्ड बनाने के मार्ग पर बढ़ते हुए नीतीश को थोड़ी परेशानी होने लगी की आने वाले समय में मेरी कुर्सी तेजस्वी यादव यादव के हाथों में न चली जाए…जिसके चलते नीतीश कुमार आरजेडी से अलग हो गए… और एक बार फिर बीजेपी में शामिल होने की बात कह ही…और बीजेपी के साथ गठबंधन करके सरकार बना ली…

बता दें कि बिहार में हुए दो हजार बीस विधानसभा चुनाव में नीतीश एक बार फिर एनडीए का हिस्सा थे…. पीठ में छुरा घोंपने में पारंगत बीजेपी ने जेडीयू को दीमक की तरह खत्म करने का अभियान चला दिया…. वहीं चिराग़ पासवान के सहयोग से ख़ुद के पार्टनर की नैय्या डुबाने का पूरा इंतज़ाम कर दिया था…. लेकिन जेडीयू डूबने से पहले ही किनारे पहुंच गई….और जेडीयू गिरते- गिरते तैंतालीस सीट जीतने में कामयाब रही…. आपक बता दें कि 2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव है…. जाहिर सी बात है डील हुई होगी कि बिहार नीतीश के हवाले… जहां बीजेपी कोई दख़ल नही देगी… केन्द्र मोदी के जिम्मे जहां जेडीयू दख़ल देने से अलग रहेगी… आरसीपी सिंह को नीतीश की मर्ज़ी के बिना ही बीजेपी ने केन्द्र में 7 जुलाई 2021को उन्हें स्टील मंत्रालय दे दिया था…. यहीं से जेडीयू और बीजेपी में विवाद शुरू हुआ था… अंततः आरसीपी सिंह को जेडीयू से निष्कासित कर मामला शान्त हुआ…. नीतीश जब राज्य के मुख्यमंत्री हैं… ऐसी दशा में केन्द्र में अपने दल के लिए महत्वपूर्ण विभाग की मांग कर किसी को बड़ा नेता बनाने का जोख़िम वह क्यों उठायेंगे…. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की डील तक सहमति बन गई होगी…. इसी के सहारे नीतीश अपना व्यक्तित्व चमका कर फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मजबूती से बैठना चाहेंगे…. रही उनकी आखिरी इच्छा प्रधानमन्त्री बनने की, यह विकल्प बिहार विधानसभा चुनाव के बाद ही शुरू होगा… तब तक नीतीश मोदी की जेब में हाथ डालते रहेंगे…. और मोदी अपनी जेब से कुछ न कुछ निकालकर नीतीश की जेब भरते रहेंगे… जब तक दोनों एक दूसरे की जरूरत रहेंगे…. संभव है कि दोनों के बीच यह तब तक चलती रहेगी…. जब तक कि किसी एक के सामने कोई समस्या न आ जाए…

आपको बता दें कि नायडू साहब की स्थिति की विवेचना करना भी ज़रूरी है…. आपको बता दें कि नायडू के लिए गठबंधन का एक ही विकल्प खुला है… आंध्र प्रदेश की जनता कांग्रेस से बहुत गुस्सा है… जिस तरह से कांग्रेस ने तेलंगाना के विभाजन में आंध्र प्रदेश की अनदेखी की है….  हैदराबाद को आंध्र प्रदेश से छीनकर तेलंगाना को दे दिया… इसका खामियाजा उन्हें लम्बे समय तक भुगतना पड़ेगा…. कोई भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ आना नहीं चाहेगा….वहीं टीडीपी कांग्रेस के साथ आंध्र प्रदेश में खड़े होना पसन्द नहीं करेगी…. आवश्यकता पड़ने पर तेलंगाना में एक साथ मिलती नज़र आ सकती है…. आपको बता दें कि विकल्प के अभाव में एनडीए के साथ खड़े होने की टीडीपी की मजबूरी है…. भले ही टीडीपी आंध्र प्रदेश में अपने दम पर सरकार बनाने में सक्षम थी… फिर भी गठबंधन धर्म का अनुपालन करना ही था…. विधान सभा चुनाव में टीडीपी को पैंतालीस दशमलव छः फीसदी और वाईएसआरसी को उनतालीस दशमलव चार फीसदी वोट मिले हैं…. बता दें कि नायडू के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वह अपने बेटे नारा लोकेश को स्थापित करना चाहते हैं…. जगन रेड्डी उस मार्ग के कांटा तो थे ही अब नई मुसीबत पवन कल्याण के रूप में जन्म ले चुकी है…. बता दें कि पवन कल्याण एक ऐसे नेता है… जो लोगों के दिलों में राज करते है…. वहीं नायडू जानते हैं कि दक्षिण के अभिनेताओं की राजनीति में सफ़ल होने की संभावना बहुत है…. एनटी रामाराव जो उनके ससुर ही रहे हैं…. वहीं एमजी रामचंद्रन, के करुणानिधि, जे जयललिता का उदाहरण उनके सामने देखने के लिए उपस्थित है… विधान सभा चुनाव में पवन कल्याण की पार्टी जन सेना ने छः दशमलव आठ फीसदी वोट… और इक्कीस सीट हासिल की है साथ ही साथ लोकसभा में भी इनके दो सदस्य हैं…. पवन कल्याण आंध्र प्रदेश के उप मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं…. उनकी लोकप्रियता बढ़ना तय है…. फिल्मों में भी वह इसी तरह की भूमिका निभाई है…. अब उनके सामने विकल्प उपलब्ध है कि रील लाइफ को रियल लाइफ उतारें…. जब वह आंध्र प्रदेश में ही उलझे हैं…. तब केन्द्र में दख़ल देकर अनावश्यक तौर पर अपनी ऊर्जा बर्बाद क्यों करेंगे….

वहीं इन सभी बातों से साफ हैं कि मोदी के जितने सहयोगी है… सब किसी न किसी रूप में एक दूसरे के पूरक है… जिसके चलते सभी मोदी के साथ है… वहीं जैसे भी कोई कमी आई और उनकी मांगे नहीं पूरी तो कभी भी पलटी मार सकते हैं… और बैसाखी के सहारे चल रही मोदी सरकार कभी भी गिर सकती है… वहीं देखना होगा कि नीतीश कुमार तेजस्वी की और मोदी, राहुल की लोकप्रियता का कैसे सामना करते हैं… यह तो आने वाला वक्त तय करेगा….

 

 

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