अभी शुरुआत… आगे और सियासी घात!
- राहुल की सजा के बहाने 24 पर नजर, मोदी सरकार पर उल्टा न पड़े दांव, विपक्ष हो गया एकजुट तो भाजपा होगी चित
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। जैसे-जैसे 2024 लोकसभा चुनाव की आहट सुनाई दे रही देश के सियासी माहौल में राजनीति भी तेजी से गरमा रही है। राजनैतिक दलों ने चुनावी रणनीति बनाने के लिए अपने सभी तीर तरकश से निकालने शुरू कर दिए हैं। सत्ता पक्ष व विपक्ष की लड़ाई जुबानी जंग से आगे निकलते हुए संसद के हंगामें को पार करके अदालतों की दहलीज पर पहुंच चुकी है या अब कह सकते हैं उससे भी आगे निकलने लगी है। अब तो जनता की अदालत में ही मामला पहुंचेगा तब ही पता चलेगा कौन कितना सही या गलत था। ताजा मामला कांग्रेस नेता राहुल गंाधी को सूरत कोर्ट से मिली दो साल की सजा सुनाने का है। हालांकि इसमें उनको जमानत मिल गई है और एक महीने में बड़ी अदालत में अपील करने को कहा गया है। राहुल की सजा के ऐलान के बाद कांगे्रस समेत पूरा विपक्ष भाजपा की मोदी सरकार पर बिफर पड़ी है। जबकि भाजपा ने कहा है सारी कार्रवाई कानून के दायरे में हो रही है। मामला खबर के हिसाब से बस एक खबर है पर इसका राजनीति पर दूरगामी असर होगा।
भाजपा भले ही इसे ऐेसे पेश कर रही हो कि जो गलत करेगा वो सजा तो पाएगा। पर जिस तरह से पिछले एक महीने में कई नेताओं को ईडी-सीबीआई व आईटी के सामने आने को मजबूर कि या गया उसका नुकसान अगले चुनाव में बीजेपी को मिल सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं गलत के साथ सहानुभूति नही होना चाहिए परंतु इस तरह की कार्यवाहियों में दो आंख नही होना चाहिए। सत्ता पक्ष के लोगों पर भी उतनी तेजी से एक्शन करना चाहिए। राहुल पर भारत जोड़ो यात्रा के बाद से सत्तारुपी कहर ज्यादा ढाया जा रही है। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा, भारतीय लोकतंत्र, मीडिया, न्यायपालिका जैसे कई मुद्दों पर बात की। राहुल ने कहा कि हर कोई जानता है कि भारतीय लोकतंत्र पर हमले किए जा रहे हैं।
इस मामले में बीजेपी ने स्पीकर ओम बिरला से लोकसभा की एक विशेष समिति का गठन करने के लिए कहा था ताकि पता लगाया जा सके कि क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी को यूनाइटेड किंगडम की अपनी हालिया यात्रा के दौरान देश, लोकतंत्र और संसद का कथित रूप से अपमान करने के लिए निलंबित किया जाना चाहिए। राहुल ने आरोपों को खारिज किया है और अपने बयानों के लिए माफी मांगने से इनकार किया है।
राहुल की सांसदी पर भी लटकी तलवार
लोक-प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 8(3) के मुताबिक, अगर किसी नेता को दो साल या इससे ज्यादा की सजा सुनाई जाती है तो उसे सजा होने के दिन से उसकी अवधि पूरी होने के बाद आगे छह वर्षों तक चुनाव लडऩे पर रोक का प्रावधान है। अगर कोई विधायक या सांसद है तो सजा होने पर वह अयोग्य ठहरा दिया जाता है। उसे अपनी विधायकी या सांसदी छोडऩी पड़ती है। संविधान विशेषज्ञ कहते हैं कि राहुल गांधी को दो साल की सजा जरूर हुई है, लेकिन सजा अभी निलंबित है। ऐसे भी फिलहाल उनकी सांसदी पर कोई खतरा नहीं है। राहुल को अगले तीस दिन के भीतर ऊंची अदालत में फैसले को चुनौती देनी होगी। अगर वहां भी कोर्ट निचली अदालत को बरकार रखती है तो राहुल की संसद सदस्यता जा सकती है।
हमेशा से ऐसा होता रहा है?
नहीं, 2013 के पहले ऐसा नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस अधिनियम को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए धारा 8(4) को असंवैधानिक करार दिया था। इस प्रावधान के मुताबिक, आपराधिक मामले में (दो साल या उससे ज्यादा सजा के प्रावधान वाली धाराओं के तहत) दोषी करार किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को उस सूरत में अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता था, अगर उसकी ओर से ऊपरी न्यायालय में अपील दायर कर दी गई हो। यानी धारा 8(4) दोषी सांसद, विधायक को अदालत के निर्णय के खिलाफ अपील लंबित होने के दौरान पद पर बने रहने की छूट प्रदान करता है। इसके बाद से किसी भी कोर्ट में दोषी ठहराए जाते ही नेता की विधायकी-सासंदी चली जाती है।
क्यों भडक़ी बीजेपी?
राहुल गांधी ने लंदन में भारत जोड़ो यात्रा, भारतीय लोकतंत्र, मीडिया, न्यायपालिका जैसे कई मुद्दों पर बात की। संसद, प्रेस, न्यायपालिका … सभी मजबूर हो गए हैं। 6 मार्च को चैथम हाउस में एक चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि ये एक भारतीय समस्या है कि सबको लगता है कि समाधान अंदर से आएगा… लेकिन लोकतंत्र का मतलब ये होता है कि लोगों की सहमती से हर काम हो… ऐसे में ये लोकतंत्र का पतन होने जैसा है। भाजपा के अनुसार, राहुल ने अपमानजनक, अनुचित टिप्पणियां कीं और उन्हें बदनाम करने के लिए सोची-समझी कोशिश के हिस्से के रूप में विदेशी धरती पर भारतीय संस्थानों के बारे में एक हानी फैलाई।
विशेषाधिकार का हनन लाना चाहती थी भाजपा
सातवीं, आठवीं और नौवीं लोकसभा के महासचिव और संविधान विशेषज्ञ ने कहा कि यह सदन को तय करना है। सदन यह तय कर सकता है कि सदस्य ने विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है या सदन की अवमानना की गई है। सदन को पूरा अधिकार है। सामान्य तौर पर, राहुल का यह आरोप कि जब विपक्षी सांसद बोलते हैं तो उनके माइक बंद कर दिए जाते हैं, यह विशेषाधिकार समिति के लिए मामला हो सकता है क्योंकि इसे अध्यक्ष के अपमान के रूप में देखा जा सकता है। हालाँकि, उनका यह कहना कि भारत में लोकतंत्र पर हमला हो रहा है, शायद संसद के विशेषाधिकार का हनन नहीं होगा। यहां भी सदन सर्वोच्च है। सदन एक समिति का गठन कर सकता है और इसके संदर्भ की शर्तें तय कर सकता है। यह पूरी तरह से इसकी शक्ति के भीतर है। ऐसी समिति की स्थापना और उसके संदर्भ की शर्तों के लिए एक प्रस्ताव लाकर एक विशेष समिति का गठन किया जा सकता है। किसी को भी इसके लिए दंडित किए जाने से पहले अपराध को परिभाषित करना होगा। 2008 में नोट के बदले वोट घोटाले की जांच के लिए जिस तरह की समिति गठित की गई थी, उसी तरह की एक समिति का गठन जांच और सांसद को दंडित करने के लिए किया जा सकता है। लोकसभा की आचार समिति में सदस्यों के नैतिक और नैतिक आचरण को देखने के लिए एक तंत्र पहले से मौजूद है। हालाँकि, भाजपा नहीं चाहती कि राहुल का मामला समिति के समक्ष कई मुद्दों में से हो। इसके बजाय, वह 2005 में कैश-फॉर-क्वेरी स्कैंडल की जांच के लिए गठित एक विशेष समिति की तर्ज पर एक विशेष समिति चाहता है।
सजा मिलने के बाद कई माननीयों की सदस्यता जा चुकी है
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत ने मानहानि के मामले में दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई है। राहुल पर 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी सरनेम पर विवादित टिप्पणी करने का आरोप लगा था। इसी मामले में राहुल पर गुजरात के भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था। अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या इससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता चली जाती है। हालांकि, राहुल को अभी एक महीने की मोहलत मिली हुई है। राहुल इस फैसले के खिलाफ एक महीने के अंदर सेशंस कोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं। अगर सेशंस कोर्ट भी सजा बरकरार रखती है तो जरूर राहुल की सदस्यता पर खतरा मंडरा सकता है।
राहुल पहले ऐसे नेता नहीं हैं, जिनकी सदस्यता जा सकती है। इसके पहले भी कई ऐसे सांसद और विधायकों की सदस्यता जा चुकी है, जिन्हें कोर्ट ने दो साल या इससे अधिक की सजा सुनाई है। आज हम ऐसे ही कुछ नेताओं के बारे में बताएंगे, जिनकी सदस्यता सजा के चलते चली गई। ये भी बताएंगे कि वो कौन सा नियम है, जिसके जरिए विधायकों और सांसदों की सदस्यता रद्द हो जाती है? समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और रामपुर से विधायक रहे आजम खान की सदस्यता भी चली गई है। आजम रामपुर से लगातार 10 बार विधायक चुने जा चुके हैं और सांसद भी रहे। आजम खान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अभद्र टिप्पणी का आरोप लगा था। इस मामले में तीन साल तक कोर्ट में केस चला और फिर कोर्ट ने उन्हें तीन साल की सजा सुनाई। सजा होने के बाद आजम को जमानत तो मिल गई लेकिन उनकी विधानसभा की सदस्यता जरूर चली गई। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान के बाद उनके बेटे अब्दल्ला आजम की भी विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई है। मुरादाबाद की एक विशेष अदालत ने 15 साल पुराने मामले में सपा महासचिव आजम खान और उनके विधायक पुत्र अब्दुल्ला आजम को दो साल की सजा सुनाई थी। मुजफ्फरनगर की खतौली से विधायक रहे विक्रम सैनी की भी सदस्यता चली गई है। विक्रम दंगे में शामिल होने के दोषी पाए गए थे। लक्षद्वीप सांसद मोहम्मद फैजल को भी कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई है। जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई थी। अभी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। फैजल पर कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पीएम सईद और मोहम्मद सालिया पर हमला करने का आरोप था। झारखंड की रामगढ़ विधानसभा सीट से विधायक ममता देवी को अयोग्य करार दिया गया था। ममता को हजारीबाग जिले की एक विशेष अदालत ने पांच साल कारावास की सजा सुनाई थी। इन सभी को 2016 के दंगे और हत्या के प्रयास के एक मामले में दोषी ठहराया गया था। वहीं भारतीय जनता पार्टी से अयोध्या की गोसाइगंज सीट से विधायक रहे इंद्र प्रताप सिंह उर्फ खब्बू तिवारी की सदस्यता 2021 में चली गई थी। खब्बू तिवारी फर्जी मार्कशीट केस में दोषी पाए गए थे और 18 अक्टूबर 2021 को एमपी-एमएलए कोर्ट द्वारा उन्हें पांच साल की सजा सुनाई थी।
उन्नाव रेप कांड में दोषी ठहराए गए भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की भी सदस्यता जा चुकी है। कुलदीप सेंगर को रेप मामले में दोषी ठहराया गया था और कोर्ट ने आजीवन करावास की सजा सुनाई गई थी। हमीरपुर जिले के भारतीय जनता पार्टी के विधायक रहे अशोक कुमार सिंह चंदेल को भी एक अदालत ने हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद चंदेल की विधानसभा सदस्यता चली गई। आरजेडी विधायक अनिल कुमार साहनी को दिल्ली की एक सीबीआई अदालत ने धोखाधड़ी के एक मामले में दोषी ठहराया था। उन्हें तीन साल की सजा सुनाई थी। इसके चलते बिहार विधानसभा से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। बिहार के मोकामा विधायक अनंत कुमार सिंह की भी सदस्यता जा चुकी है। सिंह के आवास से हथियार और विस्फोटक की बरामदगी हुई थी। इस मामले में पटना की एक अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया था। जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई।
2005 में समिति हुई थी गठित
12 दिसंबर, 2005 को एक निजी टीवी चैनल ने ऑनलाइन पोर्टल कोबरापोस्ट द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित किया, जिसमें 10 लोकसभा और एक राज्यसभा सांसद को संसद में सवाल पूछने के बदले में नकद स्वीकार करने का दावा किया गया था। 11 आरोपी सांसदों में से छह भाजपा, तीन बसपा के और एक-एक राजद और कांग्रेस के थे। सांसदों की कथित कार्रवाई को अनैतिक और भ्रष्ट के रूप में देखा गया। लोकसभा ने कांग्रेस सांसद पवन कुमार बंसल के नेतृत्व में पांच सदस्यीय समिति गठित की गई जिसमें वी के मल्होत्रा (बीजेपी), राम गोपाल यादव (समाजवादी पार्टी), मोहम्मद सलीम (सीपीआई-एम) और सी कुप्पुसामी (डीएमके) सदस्य के रूप में थे। राज्यसभा में जांच सदन की आचार समिति ने की। लोकसभा में पेश की गई 38 पन्नों की रिपोर्ट में समिति ने कहा कि 10 सांसदों के खिलाफ आरोप सिद्ध हो चुके हैं। यह नोट किया गया कि 1951 की अस्थायी संसद में जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किए गए एक प्रस्ताव में संसद में किसी मुद्दे की वकालत करने के बदले में धन स्वीकार करने वाले किसी भी सदस्य के प्रति पूरी तरह से घृणा व्यक्त की गई थी। 24 दिसंबर, 2005 को संसद ने 11 सांसदों को निष्कासित करने के लिए मतदान किया। भाजपा ने जोरदार विरोध किया।
न्यायपालिका को भी अपनी जेब में रखना चाहती है कांग्रेस : बीजेपी
भाजपा सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत ने मानहानि के मामले में दो साल की सजा दी है। कांग्रेस पार्टी बहुत कुछ कह रही है, लेकिन यह नहीं बता रही है कि राहुल गांधी ने क्या कहा था? राहुल गांधी ने कर्नाटक में 2019 की चुनावी रैली में कहा था..सारे चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?