इतने बड़े हादसे के बाद भी नहीं चेता कुंभमेला प्रशासन!
श्रद्धालु जगह-जगह रास्तों को ढूंढने में परेशान दिखे
परिजनों को नहीं मिल रहे अपने लोग
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। हादसे बाद गुरुवार को भी महाकुंभ प्रशासन व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने में कोताही दिखाइ दी। कुं भ क्षेत्र में श्रद्धालु जगह-जगह रास्तों को ढूंढने में परेशान दिखे। सबसे ज्यादा तो दुर्दशा उन परिजनों की हुई जो जिन्होंने अपनो को मौनी अमावस्या के दिन दर्दनाक हादसे में खो दिया था। उधर मौनी अमावस्या में भगदड़ में मारे लोगों की संख्या अब सामने आने लगी है। योगी सरकार व महाकुंभ मेला प्रशासन ने 30 लोगों के मरने की बात की जबकि वहां से लौटे प्रत्यक्षदर्र्शियों ने मरने वालों की संख्या 100 से ज्यादा बताई है। इन सबके बीच कई तरह क ी बातें चारों ओर हो रही। विपक्ष तो भाजपा सरकार पर आरोप लगा रहा है कि मौत के आंकड़े सरकार द्वारा छुपाए जा रहे हैं।
उधर सोशल मीडिया पर सरकार द्वारा मौतों के आकड़े बताने में समय लगने पर भी सवाल उठने लगा है। लोग कह रहे जब सरकार दावा कर रही है कि कुंभ में एक मिनट में हर सेवा उपलब्ध हो जाएगी ऐसे में मौतों के आंकड़े बताने में 17 घंटे क्यों लग गए। वहीं महाकुंभ भगदड़ पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी पहुंच गई है। महाकुंभ में दूसरे शाही स्नान के पहले मची भगदड़ में 30 लोगों के मारे जाने के बाद मैला क्षेत्र की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं। भगदड़ में वे लोग जिनके अपने बिछड़ गए थे। उन्होंने तमाम हेल्पलाइन नंबर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कई लोग खुद ही अस्पतालों के चक्कर लगाने लगे। कई मॉर्च्युरी पहुंच गए। लेकिन यहां भी कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद जिसने जो देखा वो बयान करने लगा। इसी में मौतों की संख्या भी आने लगी। कोई कह रहा कि मैंने 50 लाशें देखीं, कोई कह रहा 17, कोई 100 से ज्यादा घायल बता रहा था। सोशल मीडिया पर तरह-तरह के आंकड़े, विजुअल शेयर होने लगे। लेकिन सच किसी को नहीं पता था। पता भी कैसे चले, प्रशासन में सब अनभिज्ञता ही जताते रहे।
17 घंटे क्यों लगे मौत और घायलों का आंकड़ा देने में
भगदड़ के बाद लोग जानना चाहते थे कि भगदड़ में कितने लोग घायल हैं, कितनों की मौत हो गई है? लेकिन किसी को कोई जवाब नहीं मिल रहा था। पूरा प्रशासनिक अमला चुप्पी साधे रहा। प्रयागराज से लखनऊ तक कोई ये कन्फर्म नहीं कर पा रहा था कि घायल कितने हैं, कितने लोगों की जान चली गई है। आखिरकार हादसे के करीब 17 घंटे बाद बुधवार देर शाम को मेला अधिकारी विजय किरण आनंद और डीआईजी वैभव कृष्ण ने बताया कि लगभग 90 घायलों को हॉस्पिटल पहुंचाया गया, इनमें से 30 श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई है। अब सवाल ये है कि वो कुंभ मेला क्षेत्र जहां प्रशासन संगम में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार अपडेट दे रहा है। वहां इतने बड़े हादसे में मौत और घायलों का आंकड़ा देने में 17 घंटे क्यों लग गए?
महाकुंभ में फिर लगी आग कई पंडाल चपेट में आए
महाकुंभ के सेक्टर 22 छतनाग झूंसी में बने टेंट सिटी में बृहस्पतिवार को आग लग गई। आग लगने के कारणों का पता नहीं चल सका है। जब तक लोग कुछ समझ पाते आगे ने विकराल रूप धारण कर लिया। टेंट सिटी के दर्जन भर से अधिक टेंट जलकर राख हो गए। राहत की बात यह रही कि हादसे में किसी की जान नहीं गई। सूचना पाकर दमकल की कई गाडय़िां मौके पर पहुूंच गईं। काफी मशक्त के बाद आग पर काबू पाया जा सका।
महाकुंभ में भगदड़ का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि वह यूपी सरकार से इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट मांगे और जिम्मेदार अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश भी दें। महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर दूसरे शाही स्नान से ठीक पहले भगदड़ मची थी, इसमें 30 लोग मारे गए थे. कई रिपोर्ट्स में मरने वालों की संख्या 40 से ज्यादा भी बतायी जा रही है. इस हादसे के बाद प्रशासन की भीड़ प्रबंधन व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए हैं, इसके साथ ही बुनियादी सुविधाओं के अभाव की भी बातें सामने आ रही हैं।एडवोकेट विशाल तिवारी ने इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से सभी राज्यों को प्रयागराज में अपने सुविधा केंद्र बनाने और उन पर तीर्थयात्रियों को सुरक्षा उपायों और दिशा-निर्देशों के बारे में बुनियादी जानकारी देने के निर्देश देने की मांग की है। याचिका में महाकुंभ में अन्य भाषाओं में घोषणाएं, दिशा दिखाने वाले डिस्प्ले बोर्ड, सडक़ें आदि की व्यवस्था करने की भी मांग की गई है, ताकि दूसरे राज्यों के लोगों को परेशानी का सामना न करना पड़े और उन्हें आसानी से मदद मिल सके। याचिका में यह भी लिखा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार के समन्वय से सभी राज्य सरकारों को प्रयागराज महाकुंभ में डॉक्टरों और नर्सों वाली अपनी छोटी मेडिकल टीम भी तैनात करनी चाहिए ताकि मेडिकल इमरजेंसी के समय मेडिकल स्टाफ की कमी न हो।