ऋषिकेश, नैनीताल के नीचे भी खिसक रही है जमीन

नई दिल्ली। इस साल जनवरी की शुरुआत से जब से उत्तराखंड के जोशीमठ में भूधंसाव का संकट बढ़ा है, तब से इस हिमालयी राज्य में कर्णप्रयाग, उत्तरकाशी, गुप्तकाशी, ऋषिकेश, नैनीताल और मसूरी जैसे कई अन्य स्थानों में भी जर्जर इमारतों की गूंज सुनाई दे रही है। गौरतलब है कि जनवरी में तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना की निर्माणाधीन सुरंग से पानी का स्रोत फटने के बाद जोशीमठ शहर की सैकड़ों इमारतों में न सिर्फ दरारें आ गईं, बल्कि कई में उन दरारों के जरिये पानी का रिसाव भी होने लगा। जाहिर है इस आतंक से त्रस्त निवासियों ने कार्रवाई की मांग का दबाव बढ़ा दिया है। जोशीमठ से लगभग 82 किमी दूर स्थित कर्णप्रयाग में भी केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन और चार धाम ऑलवेदर रोड का काम चल रहा है। इन दोनों परियोजनाओं का उद्देश्य गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ के चार धाम मंदिरों से शेष भारत की कनेक्टिविटी में सुधार लाना है। ऐसे में कर्णप्रयाग के स्थानीय लोगों को भी जोशीमठ जैसा हश्र सामने आने की आशंका का डर सता रहा है। कर्णप्रयाग के कई घरों में बड़ी-बड़ी दरारें आने से वे रहने लायक नहीं रह गए। इस कारण एक दर्जन से अधिक परिवारों को नगरपालिका परिषद के ‘बारिश बसेरों’ में कई रातें बितानी पड़ी।

कर्णप्रयाग में चार धाम सडक़ परियोजना दे रही दरारें

मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार कर्णप्रयाग तहसीलदार सुरेंद्र देव के अनुसार, सीएमपी बेंड, आईटीआई कॉलोनी और बहुगुणा नगर सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र हैं। बद्रीनाथ हाईवे पर स्थित बहुगुणा नगर में दो दर्जन से अधिक घरों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं और कुछ घरों की छतें झूल रही हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि अलकनंदा और पिंडर नदियों के संगम पर स्थित इस शहर में अत्यधिक निर्माण गतिविधियों, चार धाम सडक़ परियोजना के लिए पहाड़ी काटने का काम और आबादी के दबाव ने पहले से ही कठिन स्थितियों को जटिल बना दिया है। कस्बे में 1975 से रह रहे 85 वर्षीय सेवानिवृत्त फौजी गब्बर सिंह रावत ने बताया, ‘मेरा घर ढहने के कगार पर है। इसे सहारा देने वाले स्तंभ झुकने लगे हैं। पिछले साल हुई बारिश के बाद यह समस्या और बढ़ गई है। हमें डर है कि इमारत एक और मानसून से नहीं बचेगी।’

टिहरी गढ़वाल के घरों में भी दरारें पड़ी

ऋषिकेश के अटाली गांव के कम से कम 85 घरों में दरारें आ गई हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि यह ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना के हिस्से के रूप में चल रहे रेलवे सुरंग के काम के कारण हुआ है। ग्रामीणों ने कहा कि लगभग सभी घरों और खेतों में दरारें आ गई हैं। टिहरी गढ़वाल एक अन्य क्षेत्र है जहां दरारें और भूमि धंसने की सूचना मिलती है, विशेष रूप से चंबा के छोटे से गांव और उसके आसपास। भूस्खलन की आशंका से रहवासी तत्काल कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। अधिकांश प्रभावित घर चंबा मुख्य बाजार क्षेत्र में 440 मीटर लंबी सुरंग के पास हैं, जो चार धाम सडक़ परियोजना के लिए बनाई जा रही है। टिहरी गढ़वाल के आपदा प्रबंधन अधिकारी बृजेश भट्ट ने कहा, ‘सुरंग के निर्माण स्थल के पास स्थित लगभग आधा दर्जन घरों में दरारें आने की सूचना है। समस्या पहली बार पिछले साल सामने आई थी।’

मसूरी में सडक़ रही डूब, तो रुद्रप्रयाग में भूधंसाव का खतरा बढ़ा

मसूरी के एक सदी पुराने लंढौर बाजार में सडक़ का एक हिस्सा धीरे-धीरे डूब रहा है और इसमें दरारें विकसित हो गई हैं जो निवासियों के अनुसार चौड़ी होती जा रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रभावित क्षेत्र में 12 दुकानें हैं जिनके ऊपर और नीचे घर हैं और वर्तमान में वहां रहने वाले 500 से अधिक लोगों की जान जोखिम में हैं। इसी तरह नैनीताल के लोअर माल रोड में 2018 में दरारें आ गई थीं और सडक़ का एक हिस्सा नैनी झील में धंस गया था। हालांकि पैचवर्क किया गया था, लेकिन दरारें फिर से आ गई हैं और सडक़ का एक हिस्सा फिर से धंसना शुरू हो गया है। रहवासियों का कहना है कि माल रोड पर लगातार बढ़ते ट्रैफिक लोड के कारण यह स्थिति बनी है। रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि प्रखंड की झालीमठ बस्ती में एक दर्जन से अधिक परिवार मकानों में दरारें आने से विस्थापन के कगार पर हैं। केदारनाथ के प्रवेश द्वार रुद्रप्रयाग जिले में गुप्तकाशी शहर के भी कुछ क्षेत्रों में ‘डूबने’ की सूचना है। अल्मोड़ा में विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पास भू-धंसाव का मामला सामने आया है। संस्थान के निदेशक लक्ष्मी कांत ने कहा, ‘संस्थान की एक इमारत को बगल की सडक़ पर जमीन धंसने के कारण गिराना पड़ा। यहां के आसपास की जमीन पिछले 15 सालों से धंस रही है।’

ये कारण है मुख्य रूप से जिम्मेदार

विशेषज्ञों का कहना है कि पर्याप्त योजना के बिना बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाएं, जनसंख्या में वृद्धि, पर्यटकों के भार और वाहनों के दबाव के साथ संयुक्त रूप से एक घातक कॉकटेल बना रहे हैं जो उत्तराखंड में पहाड़ी शहरों को नुकसान पहुंचा रहा है। पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित वयोवृद्ध पर्यावरणविद अनिल जोशी देहरादून स्थित हिमालयी पर्यावरण अध्ययन और संरक्षण संगठन के संस्थापक हैं। वे कहते हैं, संबंधित अधिकारियों द्वारा बार-बार की गई लापरवाही के कारण जोशीमठ का मुद्दा मेरे लिए एक झटके के रूप में नहीं आया। मामला 1976 में उठाया गया था, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया।अब समय आ गया है कि हम अपने पहाड़ी शहरों पर प्राथमिकता के तौर पर ध्यान केंद्रित करें और आगे की गिरावट को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाएं।

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