उदयपुर की तरह क्या बेलगावी के मंथन से भी कांग्रेस के लिए निकलेगा अमृत?
नई दिल्ली। कांग्रेस दस सालों से देश की सत्ता से बाहर है और एक के बाद एक राज्यों की सत्ता से दूर होती जा रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस को एक बार फिर हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में बुरी हार का सामना करना पड़ा. चुनावी हार से हताश पड़ी कांग्रेस अपने 200 सिपहसालारों के साथ कर्नाटक के बेलगावी में दो दिनों तक मंथन करेगी. इस दौरान पार्टी अपने संगठनात्मक कमजोरियों पर आत्मचिंतन करने के साथ देश की सियासत में अपने रिवाइवल का भी रोडमैप तय करेगी. इसके साथ ही बीजेपी और मोदी सरकार को घेरने की स्ट्रैटेजी बनाई जाएगी.
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने राजस्थान के उदयपुर में चिंतन और छत्तीसगढ़ के रायपुर में अधिवेशन कर बीजेपी के खिलाफ एक नई रणनीति के साथ उतरी थी. उदयपुर में ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का प्लान तैयार हुआ था. जिसके जरिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा कर राहुल ने लोगों के साथ संवाद किया था. राहुल की यात्रा से कांग्रेस में नया जोश और नया जज्बा भरा था, जिसका फायदा पार्टी को 2024 में मिला था.
कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में 99 सीटें लेकर आई तो लगा कि उसकी वापसी हो रही है, लेकिन उसके बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए चुनाव में मिली हार ने कांग्रेस के नेतृत्व और उसकी चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. इतना ही नहीं इंडिया गठबंधन के अगुवाई करने को लेकर घटक दलों ने कांग्रेस को कठघरे में खड़े करना शुरू कर दिया था.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की विशेष बैठक महात्मा गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष पद की 100वीं वर्षगांठ पर हो रही है. यह बैठक कांग्रेस ने कर्नाटक के उस बेलगावी में बुलाई है, जहां पर 100 साल पहले महात्मा गांधी ने कार्यसमिति की अध्यक्षता की थी. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की अगुवाई में होने वाली बेलगावी की सीडब्ल्यूसी बैठक में कांग्रेस दो प्रस्ताव पारित करेगी, जिसमें एक प्रस्ताव आंबेडकर के कथित अपमान से संबंधित होंगे और दूसरा प्रस्ताव मोदी सरकार के दौरान अमीर-गरीब की बढ़ती खाई, संवैधानिक संस्थाओं पर हमले जैसे मुद्दों पर जुड़ा होगा. इसके अलावा कांग्रेस अपने संगठन को मजबूत करने की दिशा में भी मंथन करेगी.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि बेलगावी में होने जा रहा कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक ढाई साल पहले हुए उदयपुर चिंतन शिविर की तरह अहम और देश की राजनीति को नई दिशा देने वाली होगी.
उन्होंने कहा कि उदयपुर चिंतन में ही भारत जोड़ो यात्रा का निर्णय हुआ था, जिसमें राहुल गांधी को जनता से सीधे संवाद का मौका मिला था. ऐसे में बेलगावी नव सत्याग्रह बैठक में भी इसी तरह से अगले एक साल के लिए कांग्रेस के अपने कार्यक्रम तय किए जाएंगे.
कांग्रेस ने संविधान,आरक्षण, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाकर लोकसभा चुनावों में बीजेपी और एनडीए को दबाव में लाने में बहुत हद तक कामयाबी हासिल में सफल रही थी. 2024 में कांग्रेस भले ही सत्ता की दहलीज तक नहीं पहुंच सकी, लेकिन बीजेपी को अकेले दम पर बहुमत हासिल करने से रोकने में कामयाब रही थी. ऐसे में कांग्रेस जिस संविधान के मुद्दे पर बीजेपी को बहुमत का आंकड़ा छूने नहीं दिया. अब उसी संविधान के शिल्पकार रहे बाबा साहेब आंबेडकर के सम्मान की लड़ाई को लेकर आगे बढऩे की रणनीति है.
बैठक में दो प्रस्ताव हो सकते हैं पारित
बेलगावी में सीडब्ल्यूसी की बैठक में हरियाणा और महाराष्ट्र की हार पर चिंतन करने के साथ आगे बढऩे और बीजेपी को घेरने की रणनीति बनाई जाएगी. ऐसे में कांग्रेस दो अहम प्रस्ताव पास कर मोदी सरकार को कटघरे में खड़े करने की कवायद करेगी. मोदी सरकार की नीतियों के चलते देश के सामने आने वाली चुनौतियों पर केंद्रित राजनीतिक चिंताओं और कार्ययोजना पर प्रस्ताव पास कर आगे बढ़ेगी. इसके बाद दूसरा प्रस्ताव कांग्रेस अमित शाह-आंबेडकर विवाद पर लाएगी. इस तरह से कांग्रेस अब आंबेडकर के अपमान और संविधान हमले को लेकर प्रस्ताव पारित कर सियासी राह में आगे बढऩे की रणनीति है.
कांग्रेस डॉ. आंबेडकर और महात्मा गांधी दोनों के साथ सियासी केमिस्ट्री बनाकर चल रही है. कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक की थीम और नाम से साफ झलक मिलती है. कांग्रेस ने महात्मा गांधी की विरासत के साथ जोड़ते हुए सीडब्ल्यूसी की बैठक का नाम ‘नव सत्याग्रह’ दिया गया है. कांग्रेस सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद एक रैली करेगी. बेलगावी में 27 दिसंबर को कांग्रेस ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान’ के नारे के साथ रैली करेगी. इस तरह कांग्रेस बापू के साथ बाबा साहेब के सियासी एजेंडे से साथ आगे बढ़ेगी. कांग्रेस आंबेडकर के सहारे दलितों के बीच पैठ बनाने की कोशिश करेगी.
इंडिया गठबंधन छिड़ी है रार
कांग्रेस की सीडब्ल्यूसी की बैठक ऐसे समय हो रही है, जब इंडिया गठबंधन के नेतृत्व को लेकर रार छिड़ी हुई है. लालू प्रसाद यादव से लेकर शरद पवार और अखिलेश यादव जैसे सहयोगी नेताओं ने इंडिया गठबंधन की कमान ममता बनर्जी को सौंपने की वकालत कर चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस को आम लोगों के साथ-साथ सहयोगी और क्षेत्रीय दलों को भी भरोसा दिला सके कि कांग्रेस ही है, जो बीजेपी से हर स्तर पर मुकाबला कर सकती है और मजबूत विकल्प भी बन सकती है.
कांग्रेस के लिए सबसे पहले अपनी सियासी जमीन बचाना सर्वोपरि है. नरेंद्र मोदी के केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद से कांग्रेस का लगातार सियासी ग्राफ डाउन हुआ है. महज तीन राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री है. ऐसे में वक्त का तकाजा है कि कांग्रेस आंख मूंदकर अपने राजनीतिक कदम बढ़ाने के बजाय पहले अपनी सिकुड़े राजनीतिक आधार को वापस हासिल करे ताकि बीजेपी का मुकाबला कर सके.
2025 में दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके बाद 2026 में असम, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे अहम राज्यों में विधानसभा चुनाव है. ऐसे में पार्टी को बेलगावी अधिवेशन में बीजेपी को चुनावी मात देने का मंत्र तलाशना होगा. कांग्रेस के सामने बीजेपी के अलावा आम आदमी पार्टी और टीएमसी जैसे छोटे दलों की भी चुनौती मिल रही है. ऐसे में जाहिर है बड़े सियासी बदलावों के बिना कांग्रेस का कायाकल्प नहीं हो सकेगा.
कैसे मिलेगी कांग्रेस को सफलता
कांग्रेस अपने संगठनात्मक सुधारों को एक निश्चित समय सीमा में कार्यान्वित करने का रोडमैप तय करना होगा. ऐसे में कांग्रेस जब तक कमजोर रहेगी, तब तक विपक्ष का गठबंधन मजबूत नहीं बनेगा, इसलिए बेलगावी का सबसे स्पष्ट सियासी संदेश यही होगा कि केवल मजबूत कांग्रेस ही ताकतवर विपक्षी विकल्प की गारंटी होगी. कांग्रेस एक बड़ा एजेंडा गठबंधन के लिए सहयोगियों को ढूंढना भी होगा. उत्तर भारत में कांग्रेस के हाथ से जिस तरह से बड़े राज्य निकल रहे हैं, उस पर भी मंथन करने के बिना पार्टी का सियासी बेड़ा पार नहीं होगा. ऐसे में अब देखना है कि कांग्रेस बेलगावी में सियासी समीकरण तलाशती या फिर जमीनी स्तर पर खुद को मजबूत करने की रणनीति के साथ आगे बढ़ती है?