मंत्री का रसूख फेल, अरावली में परमार के बेटे की शर्मनाक हार
अरावली में मंत्री का रसूख फेल... पंचायत चुनाव में मंत्री के बेटे की शर्मनाक हार... मोदी- शाह का भी नहीं चला जादू...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात मोदी और शाह का गृह राज्य है….. गुजरात को लेकर बीजेपी तमाम दावे करती है….. देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा गुजरात पर बहुत अधिक ध्यान देते है…. और गुजरात को विश्व में नंबर वन बनाने की बात करते हैं….. वहां के लोगों का देश के सभी राज्यों नें विस्तार करने का काम मोदी- शाह के द्वाका बड़े स्तर पर किया जा रहा है…. बावजूद इसके बीजेपी सरकार के मंत्री भीखू सिंह परमार के बेटे किरण सिंह परमार की प्रधानी के चुनाव में शर्मनाक हार हुई है….. जिसको लेकर बीजेपी सरकार पर कई तरह के आरोप लग रहे हैं….. आपको बता दें कि देश में एक दशक से राज कर रही पार्टी के मंत्री का रसूख बिल्कुल खत्म हो चुका है…. और सबसे बड़ी बात कि वर्तमान सरकार में विधायक और मंत्री का बेटा एक सरपंची का चुनाव हार गया है….. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीजेपी की हनक अब खत्म होने के कगार पर है….. और जनता ने बीजेपी को प्रधानी के चुनाव में भी नकार दिया है……
आपको बता दें कि गुजरात में 25 जून 2025 को 8,326 ग्राम पंचायतों के चुनाव परिणाम घोषित किए गए……. इनमें से 3,894 ग्राम पंचायतों के नतीजे बुधवार को सामने आए…… जो कई उम्मीदवारों और उनके समर्थकों के लिए उत्साह, आश्चर्य…… और कुछ के लिए निराशा लेकर आए…… इन परिणामों में एक खास खबर ने सबका ध्यान खींचा…… गुजरात सरकार के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री भीखूसिंह परमार के पुत्र किरणसिंह परमार अरावली जिले के मोडासा तालुका के जीतपुर गांव में सरपंच पद का चुनाव हार गए……. यह हार इसलिए भी चर्चा में रही क्योंकि भीखूसिंह परमार भारतीय जनता पार्टी के मोडासा से विधायक हैं…… और उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि के बावजूद उनके बेटे को इस स्थानीय चुनाव में सफलता नहीं मिली……. किरणसिंह को मंगलसिंह परमार ने 623 वोटों के अंतर से हराया…… मंगलसिंह को 1,374 वोट मिले….. जबकि किरणसिंह को 751 वोट प्राप्त हुए……
गुजरात में ग्राम पंचायत चुनाव स्थानीय स्तर पर शासन की नींव रखते हैं…… ये चुनाव हर पांच साल में आयोजित किए जाते हैं…… और इनके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सरपंच…… और पंचायत सदस्य चुने जाते हैं…… ये जनप्रतिनिधि गांवों के विकास, बुनियादी सुविधाओं, और सामुदायिक कल्याण से जुड़े फैसले लेते हैं……. 2025 के ग्राम पंचायत चुनावों में गुजरात की 8,326 ग्राम पंचायतों में मतदान हुआ…….. जिसमें लाखों मतदाताओं ने हिस्सा लिया……. मतदान 22 जून 2025 को हुआ….. और परिणाम 25 जून को घोषित किए गए…… वहीं इन चुनावों में कई स्थानों पर कांटे की टक्कर देखने को मिली……. और कुछ जगहों पर अप्रत्याशित नतीजे सामने आए…….
गुजरात में ग्राम पंचायत चुनाव गैर-दलीय आधार पर लड़े जाते हैं……. यानी उम्मीदवार किसी राजनीतिक दल के आधिकारिक प्रतीक के साथ नहीं उतरते…… हालांकि, स्थानीय स्तर पर राजनीतिक प्रभाव और समर्थन की भूमिका अहम रहती है…… कई उम्मीदवारों को स्थानीय नेताओं, विधायकों या मंत्रियों का समर्थन प्राप्त होता है…….. जो उनके अभियान को मजबूती देता है……. फिर भी, ग्रामीण मतदाता अपने गांव के विकास…… और उम्मीदवार की विश्वसनीयता को प्राथमिकता देते हैं……. जिसके कारण कई बार बड़े नेताओं से जुड़े उम्मीदवारों को भी हार का सामना करना पड़ता है……
अरावली जिले के मोडासा तालुका में स्थित जीतपुर गांव के सरपंच चुनाव ने इस बार सुर्खियां बटोरीं……. इस छोटे से गांव में सरपंच पद के लिए हुए मुकाबले में किरणसिंह परमार…… और मंगलसिंह परमार आमने-सामने थे……. किरणसिंह परमार गुजरात के कैबिनेट मंत्री भीखूसिंह परमार के पुत्र हैं……. उनको इस चुनाव में जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा था…….. उनके पिता न केवल मोडासा से भाजपा विधायक हैं…….. बल्कि राज्य सरकार में एक महत्वपूर्ण मंत्रालय भी संभालते हैं……. इसके बावजूद किरणसिंह को मंगलसिंह परमार ने 623 वोटों के अंतर से हराया…….. मंगलसिंह को कुल 1,374 वोट मिले……. जबकि किरणसिंह को 751 वोट प्राप्त हुए।….
जीतपुर गांव में मतदान शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ…….. 22 जून को हुए मतदान में गांव के मतदाताओं ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया……. मतगणना के दौरान दोनों उम्मीदवारों के समर्थकों में भारी उत्साह और तनाव का माहौल था…….. जैसे-जैसे वोटों की गिनती आगे बढ़ी…… मंगलसिंह परमार की बढ़त साफ होती गई……. अंतिम परिणामों ने सभी को चौंका दिया…….. क्योंकि किरणसिंह परमार को अपने पिता के राजनीतिक प्रभाव के बावजूद हार का सामना करना पड़ा……
आपको बता दें कि ग्राम पंचायत चुनावों में मतदाता अक्सर स्थानीय मुद्दों……. और उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि को प्राथमिकता देते हैं…… जीतपुर गांव के मतदाताओं ने शायद मंगलसिंह परमार को गांव के विकास के लिए अधिक उपयुक्त माना……. हो सकता है कि मंगलसिंह ने अपने अभियान में गांव के जल, सड़क, बिजली या अन्य बुनियादी समस्याओं को हल करने के लिए ठोस योजनाएं पेश की हों……. जो मतदाताओं को आकर्षित कर गईं….
हालांकि किरणसिंह परमार के पास अपने पिता का समर्थन था……. लेकिन ग्रामीण मतदाता कभी-कभी वंशवादी राजनीति के खिलाफ मतदान करते हैं……. यह संभव है कि मतदाताओं ने किरणसिंह को उनके पिता की छवि के आधार पर नहीं……. बल्कि उनकी व्यक्तिगत योग्यता के आधार पर परखा और उन्हें कमतर पाया…… मंगलसिंह परमार की जीत से पता चलता है कि उन्हें गांव में अच्छा-खासा समर्थन प्राप्त था…….. उनकी सामाजिक सक्रियता, स्थानीय लोगों के साथ संबंध…….. या पिछले कार्यों ने उन्हें मतदाताओं की नजर में विश्वसनीय बनाया होगा…….
वहीं ग्राम पंचायत चुनावों में जातिगत और सामाजिक समीकरण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं……. हो सकता है कि मंगलसिंह ने गांव के प्रभावशाली समुदायों का समर्थन हासिल किया हो……. जिसने उनकी जीत सुनिश्चित की……. यदि किरणसिंह परमार ने पहले कोई प्रमुख सार्वजनिक या सामाजिक भूमिका नहीं निभाई थी…… तो मतदाताओं को उन पर भरोसा करने में संकोच हुआ होगा…….. ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाता अक्सर उन उम्मीदवारों को पसंद करते हैं…….. जिन्हें वे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं…… या जिनका गांव में योगदान रहा हो…..
भीखूसिंह परमार गुजरात की राजनीति में एक जाना-माना नाम हैं……. वे मोडासा विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं…… और वर्तमान में गुजरात सरकार में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री के रूप में कार्यरत हैं……. उनकी राजनीतिक यात्रा और क्षेत्र में प्रभाव ने उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया है…… फिर भी, उनके बेटे की इस हार ने यह साबित किया कि स्थानीय चुनावों में व्यक्तिगत प्रभाव…… और परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि हमेशा निर्णायक नहीं होती…….
किरणसिंह की हार न केवल उनके लिए…….. बल्कि भाजपा के लिए भी एक झटका माना जा सकता है……. हालांकि ग्राम पंचायत चुनाव गैर-दलीय होते हैं…….. लेकिन स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दलों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है…….. किरणसिंह की हार से यह संदेश जा सकता है कि मतदाता अब नेताओं के परिवारवाद को स्वीकार करने के मूड में नहीं हैं…….. साथ ही यह भीखूसिंह परमार के लिए एक चेतावनी हो सकती है कि उन्हें अपने क्षेत्र में जनता की नब्ज को…… और बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है…..
गुजरात में ग्राम पंचायतें ग्रामीण शासन की रीढ़ हैं…… ये स्थानीय निकाय गांवों में सड़क, पानी, बिजली, स्वच्छता और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं……… सरपंच का पद गांव के लिए एक नेतृत्वकारी भूमिका निभाता है……. जो न केवल प्रशासनिक कार्यों को देखता है…… बल्कि गांव की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में भी योगदान देता है……
बता दें कि 2025 के चुनावों में गुजरात के विभिन्न जिलों में कई रोचक परिणाम देखने को मिले…… कुछ जगहों पर कांटे की टक्कर हुई……. तो कुछ जगहों पर लॉटरी के जरिए विजेता का फैसला किया गया…….. उदाहरण के लिए गांधीनगर जिले की नादरी ग्राम पंचायत में दोनों उम्मीदवारों को बराबर वोट मिलने के कारण लॉटरी निकाली गई……. जिसमें हार्दिक बारोट विजेता बने……. इसी तरह सूरत के डभारी ग्राम पंचायत में भी रीकाउंटिंग के बाद टाई होने पर लॉटरी के जरिए धर्मिष्ठा पटेल को सरपंच चुना गया…..
आपको बता दें कि ग्राम पंचायत चुनाव देश के अन्य राज्यों में भी समय-समय पर आयोजित होते हैं……. और इनके परिणाम भी कई बार चर्चा का विषय बनते हैं…….. उदाहरण के लिए पंजाब में 2024 के ग्राम पंचायत चुनावों में कई गांवों में हिंसक घटनाएं देखने को मिलीं…….. जिसमें गोलीबारी और मतपेटी छीनने की घटनाएं शामिल थीं……. फिर भी कई युवा और महिला उम्मीदवारों ने सरपंच पद पर जीत हासिल की……… जैसे संगरूर के हरकिशनपुरा गांव में 21 साल की नवनीत कौर ने सरपंच का चुनाव जीता…….
किरणसिंह परमार की हार का स्थानीय और क्षेत्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा……. यह देखना दिलचस्प होगा……. यह हार भीखूसिंह परमार के लिए एक व्यक्तिगत……. और राजनीतिक झटके के रूप में देखी जा सकती है……. हालांकि वे स्वयं इस चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं थे…….. लेकिन उनके बेटे की हार से उनकी क्षेत्र में पकड़ पर सवाल उठ सकते हैं……. वहीं यह घटना अन्य भाजपा नेताओं के लिए भी एक सबक हो सकती है कि स्थानीय चुनावों में जीत के लिए केवल राजनीतिक प्रभाव पर्याप्त नहीं है……. उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि और स्थानीय मुद्दों पर पकड़ भी उतनी ही महत्वपूर्ण है…….
इसके अलावा यह हार विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को भाजपा के खिलाफ प्रचार करने का मौका दे सकती है…….. सोशल मीडिया पर पहले ही इस हार को लेकर चर्चा शुरू हो चुकी है……. जहां कुछ लोगों ने इसे “भाजपा के पैरों तले जमीन खिसकने” का प्रतीक बताया है……. हालांकि ये टिप्पणियां अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकती हैं…… क्योंकि ग्राम पंचायत चुनावों का प्रभाव आमतौर पर स्थानीय स्तर तक सीमित रहता है…….
गुजरात के जीतपुर गांव में किरणसिंह परमार की हार 2025 के ग्राम पंचायत चुनावों की सबसे चर्चित घटनाओं में से एक बन गई है……. यह हार न केवल एक व्यक्तिगत पराजय है…….. बल्कि यह स्थानीय चुनावों की गतिशीलता……. और मतदाताओं की सोच को भी दर्शाती है……. ग्रामीण मतदाता अब विकास, विश्वसनीयता और स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता दे रहे हैं…….. और बड़े नेताओं का समर्थन भी जीत की गारंटी नहीं देता……. मंगलसिंह परमार की जीत इस बात का प्रमाण है कि सही रणनीति…….. और स्थानीय समर्थन के साथ कोई भी उम्मीदवार बड़े नामों को चुनौती दे सकता है…….



