केरल में फिर से मोदी फेल, बड़ी मुश्किल से निकल पाई एक सीट

कांग्रेस की बंपर जीत। बड़े मार्जिन से कांग्रेस ने भाजपा को दी मात। भाजपा के सभी दावे हो गए हवाहवाई। चुनावी नतीजों में भाजपा की बुरी हार। मोदी को पछाड़ राहुल निकले आगे।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: कांग्रेस की बंपर जीत। बड़े मार्जिन से कांग्रेस ने भाजपा को दी मात। भाजपा के सभी दावे हो गए हवाहवाई। चुनावी नतीजों में भाजपा की बुरी हार। मोदी को पछाड़ राहुल निकले आगे। हर वक्त चुनावी मोड में रहने वाली भाजपा को बड़ा झटका लगा है।

दरअसल, केरल में स्थानीय निकाय चुनाव परिणाम आ चुके हैं। इन परिणामों में जहां कांग्रेस का परचम लहराया है, वहीं सत्ताधारी लेफ्ट को झटका लगा है। वहीं भाजपा को भी तगड़ा झटका भी लगा है। भाजपा को सबरीमाला मंदिर के नजदीक स्थित, पत्तनमतिट्टा जिले की पंदलम नगर पालिका पर करारी हार मिली है। इस स्थानीय निकाय चुनाव रिजल्ट को नए राजनीतिक समीकरण का संकेत माना जा रहा है।

विश्लेषकों के मुताबिक इन चुनावों ने यूडीएफ की शहरी और ग्रामीण इलाकों में व्यापक पहुंच और राजग के बढ़ते कदमों को रेखांकित किया है। तो कांग्रेस को इस जीत से क्या हासिल हुआ? क्या ये परिणाम 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक रणनीतियों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेंगे? राहुल की इस जीत के क्या मायने हैं?

अगले साल होने वाले केरल विधानसभा चुनाव से पहले वहां हुए स्थानीय निकाय चुनाव, या यूं कहें कि सेमीफाइनल्स के जो शुरुआती नतीजे सामने आ रहे हैं, वो एक साफ संदेश देते हैं कि जिस उद्देश्य से प्रियंका गांधी को केरल की वायनाड सीट से सांसद बनाया गया था और उन्हें वहां भेजा गया था, वह उद्देश्य अब काफी हद तक पूरा होता दिखाई दे रहा है।

देश के कई राज्यों से जहां कांग्रेस के लिए कोई खास अच्छी चुनावी खबरें नहीं आईं, वहीं केरल से बेहद सकारात्मक संकेत मिलते दिख रहे हैं। केरल में छह नगर निगम, 14 जिला पंचायत, 87 नगर पालिका, 152 ब्लॉक पंचायत और 941 ग्राम पंचायतों के लिए चुनाव हुए थे। इन चुनावों के शुरुआती रुझान कांग्रेस के लिए बेहद शानदार खबर लेकर आए हैं।

कांग्रेस समर्थित यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) को भारी जीत मिलती दिखाई दे रही है। जिस वक्त यह जानकारी सामने आई, उस समय तक यूडीएफ ने 477 सीटें जीत ली थीं। वहीं राज्य में सत्ता में काबिज सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ ने 362 सीटें हासिल की थीं। बीजेपी समर्थित एनडीए इस मुकाबले में काफी पीछे रह गया और उसे केवल 26 सीटों पर ही जीत मिली। ब्लॉक पंचायत के नतीजों की बात करें तो यहां यूडीएफ को 81 सीटें मिली हैं, जबकि एलडीएफ को 66 सीटें मिली हैं। एनडीए यहां लगभग शून्य पर सिमटता हुआ नजर आ रहा है, हालांकि आंकड़ों में आगे चलकर थोड़ा बहुत बदलाव संभव है।

जिला पंचायत की 14 सीटों में यूडीएफ और एलडीएफ दोनों को छह-छह सीटें मिली हैं, यानी यहां सीधा मुकाबला इन्हीं दो गठबंधनों के बीच रहा। नगर पालिकाओं में यूडीएफ ने 55 सीटों पर जीत दर्ज की, एलडीएफ को 28 सीटें मिलीं और एनडीए केवल दो नगर पालिकाओं में जीत हासिल कर सका। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कांग्रेस नीत यूडीएफ ने केरल में बेहद शानदार और दमदार प्रदर्शन किया है। यह नतीजे साफ तौर पर इशारा करते हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव में यूडीएफ किस आत्मविश्वास और किस मूड के साथ मैदान में उतरने वाला है।

हालांकि एक दिलचस्प और चौंकाने वाला आंकड़ा भी सामने आया है। बीजेपी समर्थित एनडीए ने तिरुवनंतपुरम कॉरपोरेशन में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। यहां 101 वार्डों में एनडीए 49 पर बढ़त बनाए हुए है। यह वही इलाका है जो शशि थरूर का क्षेत्र माना जाता है। शशि थरूर अभी भी आधिकारिक तौर पर कांग्रेस सांसद हैं, लेकिन उनके राजनीतिक रुख को लेकर लगातार चर्चाएं होती रही हैं।

ऐसे में उनके इलाके में बीजेपी का अच्छा प्रदर्शन कांग्रेस के लिए झटका और बीजेपी के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है। इसके अलावा भी बीजेपी ने कुछ इलाकों में बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन सच्चाई यह है कि केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बीजेपी कभी भी नंबर एक या मजबूत नंबर दो पार्टी नहीं रही है। यहां वह लंबे समय से संघर्ष कर रही है, ठीक वैसे ही जैसे वह करीब 15–20 साल पहले पश्चिम बंगाल में संघर्ष कर रही थी। पश्चिम बंगाल में वह अब नंबर दो पार्टी बन चुकी है, लेकिन केरल में अभी भी उसके सामने चुनौतियां काफी बड़ी हैं।

इन स्थानीय चुनावी नतीजों से फिलहाल जो सबसे अहम बात सामने आती है, वह यह है कि कांग्रेस समर्थित यूडीएफ पहले नंबर पर और सत्ता में मौजूद एलडीएफ दूसरे नंबर पर दिखाई दे रहा है। यह साफ तौर पर एंटी-इनकंबेंसी का संकेत है, यानी सरकार के खिलाफ नाराजगी का वोट। यही संदेश इन चुनावी नतीजों के जरिए उभरकर सामने आया है।

इन नतीजों से यह भी साफ होता है कि भाजपा का केरल मॉडल अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। पार्टी कभी वामपंथ के खिलाफ कांग्रेस को निशाना बनाती है, तो कभी कांग्रेस पर नरम और लेफ्ट पर आक्रामक रुख अपनाती है। यह दोहरी रणनीति मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा करती है। दूसरी ओर कांग्रेस समर्थित यूडीएफ ने अपेक्षाकृत संतुलित और स्थिर राजनीतिक संदेश दिया है। उसने न तो अति-आक्रामकता दिखाई और न ही मुद्दों से भटकने की कोशिश की।

यही वजह है कि शहरी और ग्रामीण, दोनों ही इलाकों में उसे व्यापक समर्थन मिला। इन स्थानीय निकाय चुनावों को सेमीफाइनल कहा जा रहा है और इसमें काफी हद तक यह साफ हो गया है कि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है। यूडीएफ की जीत यह संकेत देती है कि कांग्रेस नेतृत्व वाला गठबंधन राज्य में सत्ता में वापसी के लिए खुद को मजबूती से तैयार कर रहा है। संगठनात्मक स्तर पर भी कांग्रेस ने यह दिखाया है कि वह अब सिर्फ पुराने भरोसे पर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर सक्रियता और स्थानीय मुद्दों पर पकड़ के साथ आगे बढ़ रही है।

वहीं भाजपा के लिए ये नतीजे आत्ममंथन का मौका भी हैं। कुछ जगहों पर मिली सफलता के बावजूद पार्टी का कुल प्रदर्शन यह बताता है कि केरल में उसकी स्वीकार्यता सीमित है। बार-बार बड़े-बड़े दावे करने और हर छोटे लाभ को ऐतिहासिक जीत के तौर पर पेश करने से सच्चाई नहीं बदलती। जनता यह देख रही है कि कौन सी पार्टी उसके सामाजिक ताने-बाने, विविधता और संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करती है। केरल जैसे राज्य में, जहां शिक्षा और राजनीतिक चेतना का स्तर ऊंचा है, वहां केवल नारों और प्रतीकों से लंबी दूरी तय करना मुश्किल है।

इन चुनावों का एक और अहम पहलू यह है कि उन्होंने यह दिखा दिया है कि केरल की राजनीति अब भी मुख्य रूप से यूडीएफ और एलडीएफ के बीच ही घूमती है। भाजपा के लिए जगह बनाना अब भी चुनौतीपूर्ण है। हालांकि पार्टी कुछ शहरी इलाकों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में सफल रही है, लेकिन राज्यव्यापी विकल्प बनने के लिए उसे अभी लंबा रास्ता तय करना होगा।

कुल मिलाकर, केरल के स्थानीय निकाय चुनावों ने यह साफ कर दिया है कि कांग्रेस समर्थित यूडीएफ इस वक्त राजनीतिक बढ़त में है। जनता ने उसे भरोसे के साथ आगे बढ़ाया है, जबकि सत्ता में बैठी लेफ्ट सरकार को चेतावनी दी है। भाजपा के लिए यह परिणाम मिश्रित हैं, जहां कुछ जगहों पर उम्मीद की किरण दिखी है, वहीं कई दावों की हवा भी निकल गई है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये नतीजे किस तरह से राजनीतिक रणनीतियों को आकार देते हैं, लेकिन फिलहाल इतना तय है कि केरल की राजनीति में कांग्रेस की वापसी की आहट अब और तेज हो चुकी है।

Related Articles

Back to top button