नौ साल मोदी सरकार, ठगा गया बेरोजगार

सरकारी नौकरी की बाट जो रहा युवा

  • काम की तलाश में भटक रहे युवा मजदूर
  • स्वरोजगार में भी मंदी का असर
  • असंगठित क्षेत्रों और सुरक्षित रोजगार का दबदबा

सिद्धार्थ शर्मा/4पीएम न्यूज़
नई दिल्ली। मोदी सरकार के नौ साल हो गए । इसबीच सरकार ने रोजगार के कई दावे किए हैं, पर हकीकत में वे दावे खोखले साबित हो रहे है क्योंकि बेरोजगारी की समस्या एक अभिशाप की तरह युवाओं के दिलों दिमाग को खोखला कर रही है। युवाओं के सामने सिर्फ यही सवाल है कि पढ़ाई के बाद नौकरी कैसे हासिल की जाए? इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के अनुमान के मुताबिक भारत में 2018 की बेरोजगारी दर 3.5 प्रतिशत थी। भारत के लिए यह चिंता का विषय है। देश में 77 प्रतिशत रोजगार असुरक्षित बने रहेंगे।
1-2 दशकों में सर्विस सेक्टर में खासकर भारत में अधिक तादाद में रोजगार सृजित हुए रोजगार के मामले में असंगठित क्षेत्रों और सुरक्षित रोजगार का दबदबा है। असुरक्षित रोजगार में स्वरोजगार या परिवार द्वारा चलाए जा रहे प्रतिष्ठान में काम करना भी शामिल है। ऐसे लोगों के लिए बेहतर कामकाजी सुरक्षा की कमी रहती है। आईएलओ के डाटा के मुताबिक दुनिया में इस साल 1.4 अरब लोग असुरक्षित रोजगार की श्रेणी में हैं। इनमें से अकेले भारत में 39.4 करोड़ यानी एक चौथाई से ज्यादा लोग हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर 20 वर्षों में सबसे अधिक हो गई है। लेकिन इन दावों पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर 20 वर्षों में सबसे अधिक हो गई है। बेरोजगारी बढऩे के सामने दो ही वजह सामने आई हैं। पहली नौकरी के सृजन की रफ्तार धीमी है और दूसरी इंडस्ट्री में कार्यबल मैन पावर में कटौती। वैसे तो बेरोजगारी की चपेट में पूरा देश है, लेकिन देश के उत्तरी राज्य से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश आदि सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

औपचारिक नौकरियों की कमी

भारत के श्रम बाजार को सामान्य रूप से उत्पादन और सेवा क्षेत्रों में विशेष रूप से औपचारिक नौकरियों की कमी से जूझना पड़ रहा है। कई श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार करते हैं, जिसमें कम वेतन, खराब काम के शर्तें और थोड़ी सी नौकरी सुरक्षा होती है। इससे श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा और लाभ तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है और इससे आर्थिक असुरक्षा और गरीबी का भी योगदान हो सकता है। भारत की ऊंची बेरोजगारी दर में एक और कारक कौशल का अंतर है। कई नियोक्ता उचित कौशल और योग्यता वाले कामगारों को ढूंढने में कठिनाई रिपोर्ट करते हैं, विशेष रूप से आईटी और स्वास्थ्य सेक्टर जैसे क्षेत्रों में। इससे शिक्षा और प्रशिक्षण में अधिक निवेश की आवश्यकता हाइलाइट होती है, साथ ही एक से अधिक उपयोगकर्ताओं और अल्पसंख्यक समूहों को श्रम बाजार में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन उपलब्ध कराने की भी जरूरत होती है।

बेरोजगारी से बढ़ता है अपराध

अगर देखा जाए तो अपराध बढऩे का प्रमुख कारण बेरोजगारी ही है। कुछ युवा वर्ग बेरोजगारी के अभाव के कारण अपना कदम अपराध की ओर बढ़ा लेते हैं। हालांकि उनका यह कदम पूरी तरह गलत होता है। देश में राजनीतिक दल सरकार तो बनाते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही उनके वादे ठंडे बस्ते में चले जाते हैं। रोजगार के लिए सरकार द्वारा प्रयास नहीं किया जाता जो करना चाहिए। हालांकि हम पूरी तरह नहीं कह सकते कि सरकार रोजगार देने का प्रयास नहीं कर रही है।

नौकरी के नाम पर ठगी के शिकार भी बनते हैं युवा

बेरोजगारी की स्थिति को देखते हुए नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी और लूटमारी के षडयंत्र के मामले में भी तेजी से सामने आ रहे हैं। इस जाल में युवा वर्ग फंस जाता है और नौकरी के नाम पर ठग मनमाना पैसा युवाओं से लूटकर रफूचक्कर हो जाते हैं। कुछ बेरोजगार युवा पढ़-लिखकर सोशल नेटवर्किंग के द्वारा लोगों को नौकरी के नाम पर लूट रहे हैं। नौकरी के नाम पर लूटने वाले युवा अपराधियों का शिकार मुझे खुद होना पड़ा। नौकरी के नाम पर लोगों से पैसा लूटकर बैठे हुए हैं और शासन उनका कुछ नहीं कर पा रहा। हालांकि इस पर लगाम कसने की कोशिश की जा रही है, लेकिन बेरोजगारी का आलम ऐसा है कि युवा कुछ भी करने को तैयार है।

आर्थिक विकास में सुधार से होगा लाभ

इन चुनौतियों के बावजूद, आशा के भी कुछ कारण हैं। भारत की अर्थव्यवस्था का 2023 में मजबूत बढ़ोतरी की उम्मीद है, जिसमें वृद्धि के अधिकारिक अंकों की उम्मीद है। सरकार ने नौकरी निर्माण को बढ़ावा देने के लिए नई पहलों की घोषणा भी की है, जिसमें नए औद्योगिक कोरिडोरों की सृजन की जानकारी और राष्टï्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के विस्तार शामिल हैं। भारत में बेरोजगारी को कम करने की चुनौती अंतत: लेबर मार्केट में लंबी समय तक के संरचनात्मक मुद्दों के अलावा छोटी अवधि की आर्थिक चुनौतियों का भी सामना करने वाली एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके लिए, सटीक नीति निर्माताओं, व्यवसायों, और सिविल सोसायटी आर्गेनाइजेशनों द्वारा स्थायी और समावेशी आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त माहौल बनाने के लिए संयुक्त प्रयास की आवश्यकता होगी।

बड़ी-बड़ी डिग्रियोंं वाले कर रहे चपरासी का आवेदन

एमबीए, एमएससी जैसी बड़ी डिग्रियां हासिल कर चुके युवा राजस्थान अलवर में स्थित कृषि विभाग के चपरासी के पद के लिए आवेदन किया था। दरअसल, यह कोई किसी एक राज्य की स्थिति नहीं है। वहीं उत्तर प्रदेश में भी देखा गया कि पीएचडी बीटेक डिग्री वाले भी विधानसभा सचिवालय में चपरासी पद के लिए 368 पोस्ट के लिए 23 लाख से भी ज्यादा उम्मीदवारों ने आवेदन किया था। ठेकेदारी प्रथा से रोजगार सुलभ तो हो जाता है लेकिन मनमानी इस कदर है कि रोजगार के नाम पर युवाओं का शोषण किया जा रहा है। सरकारी नियमानुसार मिलने वाली राशि या कहें की सैलरी का हिसाब कुछ अलग ही होता है। निर्धारित किया गया कलेकटर रेट सिर्फ फाइलों में ही पूरा होता है। बेरोजगारी की ऐसी स्थिति को देखने के बाद केंद्र सरकार पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो जाते हैं कि कहां गई वह व्यवस्थाएं जो चुनाव के समय स्वरोजगार योजना देने एवं सरकार युवाओं के हित की बात करती थी वह असफल दिखाई देती है। बहरहाल, अब चूंकि मोदी सरकर दोबारा सत्ता में है तो एक बार पुन: मोदी सरकार ने अपने बजट में बेरोजगारी से लडऩे के लिए दिया विजन केंद्र सरकार ने अपनी अंतिम बजट में शामिल किया है। ऐसे में उम्मीद है कि सरकार भविष्य में बेरोजगारी की समस्या से लडऩे के लिए कोई नई नीति पर काम करे।
भारत की बेरोजगारी दर मार्च 2023 में 7.8 प्रतिशत भारत की बेरोजगारी दर मार्च 2023 में 7.8 प्रतिशत के 3 महीने के उच्च स्तर पर बढ़ी 7.50.1के उच्च स्तर पर बढ़ी हई है। केंद्रीय ऑफ मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत की बेरोजगारी दर मार्च 2023 में 7.8 प्रतिशत हो गई है। यह फरवरी में दर्ज की गई 7.2 बेरोजगारी दर से बढ़त है और कोविड-19 महामारी के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए देश के प्रयासों के लिए एक विफलता का प्रतीक है। बेरोजगारी में वृद्धि निश्चित रूप से चिंता का कारण होगी, जो विपणन को उत्तेजित करने और महामारी के बाद नए नौकरियों को बनाने के लिए काम कर रहे नीतिनिर्माताओं के लिए एक चुनौती का स्रोत होगी। सरकार ने व्यापक उद्यमों का समर्थन करने और रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिए एक रेंज के उपाय शुरू किए हैं, जिसमें अत्मनिर्भर भारत पहल और राष्ट्रीय रोजगार नीति शामिल है। तथापि, नवीनतम डेटा संकेत देता है कि इन प्रयासों का अभी तक इच्छित प्रभाव नहीं हो रहा है। बेरोजगारी में वृद्धि कई कारकों के कारण हो सकती है, जिसमें व्यापारों और व्यापक अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रभाव के अलावा श्रम बाजार में जारी संरचनात्मक मुद्दों का भी असर हो सकता है।

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