बिहार में शपथ से पहले NDA में पेंच, नीतीश की नाराजगी से मोदी-शाह की बढ़ी परेशानी

शपथ से पहले NDA में फंसा पेंच... नीतीश की नाराजगी खुल कर आई सामने... 3 घंटे की बैठक में भी नहीं निकला हल...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है.. कुल 243 सीटों वाली विधानसभा में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने करारी जीत हासिल की है.. चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक एनडीए को 202 सीटें मिली हैं.. जिसमें भारतीय जनता पार्टी को 89 सीटें, जनता दल यूनाइटेड को 85 सीटें.. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 19 सीटें.. हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) को 5 सीटें.. और अन्य सहयोगियों को बाकी की सीटें मिली हैं.. दूसरी तरफ महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन) को सिर्फ 41 सीटें ही नसीब हुईं.. जिसमें आरजेडी को 25.. कांग्रेस को 6 और बाकी अन्य को मिली है.. बता दें कि यह जीत एनडीए के लिए ऐतिहासिक है.. क्योंकि यह 2020 के चुनावों से भी बेहतर प्रदर्शन है.. जब एनडीए को 125 सीटें मिली थीं…

इस जीत के पीछे बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सबसे बड़ा नाम है.. उन्होंने न सिर्फ अपनी पार्टी जदयू को मजबूत बनाया.. बल्कि पूरे गठबंधन को एकजुट रखा.. चुनाव से पहले कई अटकलें लगाई जा रही थीं.. कि नीतीश कुमार का कद कम हो गया है.. और बीजेपी उन्हें ‘दिखावटी सीएम’ बनाने की कोशिश करेगी.. लेकिन नतीजों ने साबित कर दिया कि नीतीश कुमार अभी भी बिहार की सियासत के सुल्तान हैं.. वहीं जब राज्य में नई सरकार गठन की कवायद जोरों पर है.. इस बीच दिल्ली दौरे, रातोंरात बुलाई गई बैठकों और विधानसभा भंग की प्रक्रिया ने राजनीतिक हलकों में हड़कंप मचा दिया है..

आपको बता दें कि बिहार चुनाव 2025 में मतदान का रिकॉर्ड स्तर होना.. सबसे बड़ी खासियत रही.. कुल 67.13 प्रतिशत मतदान हुआ.. जो पिछले चुनावों से 5 प्रतिशत ज्यादा है.. विशेषज्ञों का मानना है कि एनडीए की जीत का श्रेय महिलाओं को जाता है.. ‘द हिंदू’ के विश्लेषण के अनुसार नीतीश कुमार सरकार की योजनाओं जैसे ‘कन्या उत्थान’ (लड़कियों की शिक्षा और शादी के लिए सहायता).. और ‘मुख्यमंत्री बालिका बाइक योजना’ ने ग्रामीण महिलाओं को खूब लुभाया.. एनडीए ने विकास, कानून-व्यवस्था और रोजगार पर जोर दिया.. जबकि महागठबंधन जाति-आधारित राजनीति पर अटका रहा..

बीजेपी को 89 सीटें मिलने से वह गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी बन गई.. जो 2020 की 74 सीटों से 15 ज्यादा हैं.. जदयू की 85 सीटें भी शानदार हैं.. लेकिन बीजेपी की बढ़त ने सवाल खड़े कर दिए कि.. क्या अब नीतीश कुमार ‘छोटे भाई’ की भूमिका में आ जाएंगे.. चुनाव से पहले अमित शाह ने कई रैलियों में कहा था कि ‘सीएम का फैसला विधायक दल की बैठक में होगा’.. जिससे नीतीश समर्थकों में असंतोष फैला… लेकिन नीतीश ने 84 सभाओं का दौर चलाकर न सिर्फ अपनी छवि मजबूत की.. बल्कि एनडीए को बहुमत दिलाया.. याद कीजिए, चुनाव के दौरान संजय झा जैसे बीजेपी नेताओं के बयानों पर नीतीश ने मंच से ही तीखा प्रहार किया था..

बता दें कि नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर बिहार के उतार-चढ़ाव का आईना है.. 2005 से वे चार बार सीएम रह चुके हैं.. और अब पांचवीं बार शपथ लेने की तैयारी में हैं.. एनडीए की जीत ने उनके कद को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा दिया है.. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, नीतीश ने कहा कि यह जीत मेरे पिता की विरासत और बिहार के लोगों का विश्वास है.. बीजेपी के वरिष्ठ नेता गिरिराज सिंह ने स्पष्ट कहा कि नीतीश कुमार ही सीएम बने रहेंगे.. अटकलों का कोई स्थान नहीं है.. यह बयान उन अफवाहों को विराम देता है.. जो कह रही थीं कि बीजेपी अपना सीएम थोपना चाहती है..

लेकिन अंदरखाने की खबरें कुछ और बयां करती हैं.. 17 नवंबर को नीतीश कुमार ने राजभवन जाकर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से मुलाकात की.. कैबिनेट की आखिरी बैठक में विधानसभा भंग करने का प्रस्ताव पारित हुआ.. लेकिन नीतीश ने इस्तीफा नहीं दिया.. जदयू नेता विजय चौधरी ने कहा कि 19 नवंबर से विधानसभा भंग होगी.. तब तक नीतीश सीएम बने रहेंगे.. यह कदम राजनीतिक इतिहास में अनोखा है.. आमतौर पर चुनाव नतीजों के बाद तुरंत इस्तीफा दिया जाता है.. लेकिन नीतीश ने इसे टाल दिया.. सूत्र बताते हैं कि यह बीजेपी की गेम से बचने की रणनीति है.. चुनाव से पहले ही चर्चा थी कि अगर बीजेपी की सीटें ज्यादा आईं.. तो वे अपना चेहरा लाएंगी..

आपको बता दें कि 18 नवंबर की सुबह सबसे बड़ी खबर दिल्ली से आई.. जदयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह और संजय झा को रातोंरात विशेष विमान से दिल्ली बुलाया गया.. एनडीटीवी की लाइव रिपोर्ट के अनुसार अमित शाह, जेपी नड्डा, ललन सिंह.. और संजय झा के बीच तीन घंटे की बैठक चली.. बैठक के बाद सूत्रों ने बताया कि नीतीश की मांगें मान ली गई हैं.. नीतीश ही सीएम बने रहेंगे.. और बीजेपी ने इसे स्वीकार कर लिया..

बता दें कि विधानसभा अध्यक्ष को लेकर सबसे ज्यादा ठनी हुई है.. जदयू का दावा है कि विधान परिषद में उनका चेयरमैन है.. इसलिए अध्यक्ष जदयू का होना चाहिए.. बीजेपी प्रेम कुमार जैसे सीनियर नेता का नाम आगे बढ़ा रही है.. बैठक में यह तय नहीं हुआ.. लेकिन शाम तक फैसला होने की उम्मीद है.. बैठक के बाद ललन सिंह और संजय झा पटना लौटे.. ऐसा माना जा रहा है कि वे शाम को नीतीश से मिलेंगे.. और इस्तीफा प्रक्रिया पूरी होगी..

वहीं यह बैठक गठबंधन की मजबूती का प्रमाण है.. चुनाव से पहले संजय झा पर नीतीश का मंच से डांटना याद है.. वह विवाद अब सुलझ चुका लगता है.. एशियन न्यूज भारत के अनुसार मंत्रिमंडल विस्तार में संतुलन रखा गया है.. ताकि कोई असंतोष न रहे.. नीतीश कुमार का यह रुख अचानक नहीं है.. 2024 के लोकसभा चुनावों में जदयू ने 12 सीटें जीतीं, जो बीजेपी के 12 से बराबर थीं.. लेकिन विधानसभा में बीजेपी की बढ़त ने नीतीश को सतर्क कर दिया.. इंडिया टुडे की रिपोर्ट कहती है कि नीतीश को डर था कि विधायक दल की बैठक में बीजेपी कोई ‘खेल’ न कर दे.. इसलिए उन्होंने 17 को राजभवन गए.. लेकिन इस्तीफा टाल दिया.. यह रणनीति सफल रही.. क्योंकि अब बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया कि नीतीश ही चेहरा हैं..

आपको बता दें कि नीतीश की सक्रियता बीजेपी के लिए खतरे की घंटी भी है.. अगर गठबंधन टूटा.. तो इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर नीतीश बहुमत बना सकते हैं.. विधानसभा अध्यक्ष का पद इसलिए महत्वपूर्ण है.. क्योंकि यह फ्लोर टेस्ट और विश्वास मत में निर्णायक होता है.. जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव में 11 रिकॉर्ड बने.. जिसमें नीतीश की दसवीं शपथ का दावा भी शामिल है.. लेकिन सच्चाई यही है कि उनका अनुभव बेजोड़ है..

 

Related Articles

Back to top button